Friday, June 5, 2020

मनुवादियों का दोगलापन


संयुक्त राज्य अमेरिका में हुए हमलों के बाद मनुवादी लोग अपने चहेते श्री डोनॉल्ड ट्रम्प को 'फासीवादी' और 'नस्लवादी' कहने लगे थे। हालांकि ये वही मनुवादी लोग हैं जिन्होंने श्री डोनॉल्ड ट्रम्प की विजय के लिये मनुवादी कर्मकांड जैसे यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ आदि किये थे। परन्तु जब से अमेरिका में इन मनुवादियों के स्वार्थों पर चोट लगने लगी है तब से ये मनुवादी प्रत्येक सामान्य और छोटी-से-छोटी बात को भी 'नस्लवाद' और 'फासीवाद' से जोड़कर दुष्प्रचारित कर रहे हैं। हालांकि यही मनुवादी लोग विदेशों में भी शोषित जातियों से घोर जातिगत भेदभाव करते हैं।
विदेशों में शोषित जातियों से जातिगत भेदभाव का उल्लेख करते हुई जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ0 विवेक कुमार लिखते हैं कि:-
"एक बेहद सामान्य रूप यह है कि स्कूलों से लेकर फैक्ट्रियों तक हर जगह दलितों को उनकी जाति से पुकारकर उनका उपहास उड़ाया जाता है। दूसरे, दलित और तथाकथित ऊंची जातियों के बच्चों के बीच अंतर्जातीय विवाह में ऊंची जातियों के बच्चों के परिजनों द्वारा अड़ंगे लगाना। कास्ट वाच यूके (Caste Watch UK) ने इंग्लैंड में जातीय भेदभाव सिध्द करने के कई उदाहरण दिए हैं।"1
डॉ0 विवेक कुमार आगे लिखते हैं:-
"मार्क जुगेर्समेयर ने 'रिलिजन एज सोशल विजन' में लिखा है कि जाट सिख, दलितों को उनकी जाति से संबोधित करने से नहीं हिचकते। साऊथ हॉल पर वेस्ट एंड रोड स्थित एक पब का नाम ही एक जाति विशेष के नाम पर रख दिया गया है, क्योंकि इसके अधिकांश ग्राहक दलित हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि समूचे औद्योगिक इंग्लैंड में सिखों और दलितों में झगड़े होना आम है। इनमें लोगों को जान से हाथ भी धोना पड़ा है। इसके अलावा जाट सिखों ने दलितों के निर्देशन में काम करने से इंकार कर दिया है। कास्ट वाच 2004 से वार्षिक सम्मेलन आयोजित कर रहा है। नवीनतम सम्मेलन आस्टन यूनिवर्सिटी, बर्मिंघम में 30 अगस्त, 2008 को आयोजित किया गया। इसका विषय था, 'जाति और संबद्धता: समुदायों में भिड़ंत' सम्मेलन में मौजूद प्रतिनिधियों ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जातीय भेदभाव का दबाव स्वीकार किया। इंग्लैंड में जातीय भेदभाव की पांच श्रेणियां चिन्हित की गईं। पहली है स्कूलों में शिक्षकों और सहपाठियों द्वारा दलित छात्रों को जातिसूचक सम्बोधनों से पुकारना। दूसरा, जब एक दलित युवक तथाकथित उच्च जाति की लड़की से शादी करता है तो उसे या युगल को लड़की के घरवालों की तरफ से तिरस्कार, हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ता है। अंतर्जातीय विवाह के अनेक मामलों में दलित युवकों की पिटाई की जाती है। नौजवान दलित महसूस करते हैं कि इंग्लैंड जैसे अपेक्षाकृत समतामूलक राष्ट्र में भी उनके लिये जीवनसाथी का चुनाव मुश्किल हो गया है। तीसरे, फैक्ट्रियों और पबों में दलितों के खिलाफ हिंसा की जा रही है और उन्हें जातिसूचक नामों से संबोधित किया जा रहा है। चौथे, इंग्लैंड में विभिन्न भारतीय धार्मिक संगठनों में दलितों को समान अवसर और समान दर्जा नहीं दिया जाता। मजबूर होकर दलितों ने पूरे इंग्लैंड में अलग संगठन और अलग पूजास्थल स्थापित किये हैं। यही नहीं तथाकथित उच्च जातियों द्वारा तैयार किये गए गानों में ऐसे प्रसंग होते हैं जो दलितों की अस्मिता और पहचान पर चोट करते हैं तथा जिनमे छिपे निहितार्थ दलितों के लिये अपमानजनक होते हैं।"2
यह तो केवल कुछ ही उदाहरण हैं जो वास्तविक स्थिति की एक झलक प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार जब मनुवादी वर्ग स्वयं ही विदेशों में शोषित जातियों के साथ जातिगत भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है तब वह किस मुंह से विदेशियों पर 'नस्लवादी' और 'फासीवादी' होने का आरोप लगाता है? क्या यह मनुवादी वर्ग का दोगलापन नहीं है?
इसी प्रकार ये मनुवादी लोग शोषित जातियों, आदिवासियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर मनुवादियों के घोर अत्याचारों की कभी भी भर्त्सना नहीं करते। ये घटनाएं इनको स्वाभाविक लगती हैं। साथ ही मनुवादी लोग कभी भी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था की निंदा भी नहीं करते। इसी तरह ये मनुवादी लोग मनुवादी संगठनों द्वारा किये किये जाने वाले जातीय और साम्प्रदायिक दंगों की भी भर्त्सना नहीं करते। इन मनुवादियों को ये सब 'फासीवाद' और 'नस्लवाद' नहीं लगता है।
वास्तव में जब मनुवादी लोग विदेशों में अपने कुकर्मों और स्त्री-प्रसंगों के कारण शराबखानों, जुआघरों आदि में अपमानित होते हैं या मारे जाते हैं तो भारत का मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया बाल्टियां भर-भर के आंसू बहाता है और 'नस्लवाद' तथा 'रंगभेद' के भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग करके समानता, स्वतंत्रता और मैत्री आदि मानवाधिकारों के गीत गाता है। क्योंकि ऐसा करके यह मनुवादी वर्ग विदेशों में 'मलाई' खाने के अपने स्वार्थों को सुरक्षित रखना चाहता है। यद्यपि यही मनुवादी लोग 'अफ्रीकी मूल' के लोगों से घोर नस्लवादी और रंग भेद का व्यवहार करते हैं तथा विदेशों में बसे शोषित जातियों के लोगों से भी घोर जातिगत व्यवहार करते हैं।
परन्तु क्या आज तक किसी ने शोषित जातियों पर मनुवादियों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के संबंध में मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया और मनुवादियों द्वारा समानता, स्वतंत्रता, मैत्री आदि मानवाधिकारों का नाम लेकर वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को उन्मूलित करने की बातें करते हुए सुना है? जबकि वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था तो रंगभेद और नस्लभेद से भी घृणित और शोषक व्यवस्थाएं हैं। रंगभेद और नस्लभेद में तो एक रंग और नस्ल के लोग अन्य रंग और नस्ल के लोगों से भेदभाव करते हैं परन्तु फिर भी उनको उनके मानवाधिकारों से वंचित नहीं करते। जबकि वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में तो समान रंग और नस्ल के लोगों को ही मानवाधिकारों से वंचित करके उनको अस्पृश्य माना जाता है तथा उनसे पशुओं से भी निम्न स्तर का व्यवहार किया जाता है। मनुवादी वर्ग का काला व्यक्ति भी शोषित जातियों के काले लोगों को अस्पृश्य ही मानता है। परन्तु फिर भी मनुवादी वर्ग और मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया इन करोड़ों शोषितों के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चुप्पी साधे रहता है। प्रश्न है क्यों? इसका उत्तर यह है कि भारतीय समाज में अल्पसंख्यक मनुवादी वर्ग ही शोषक वर्ग है जो शोषित जातियों के शोषण पर अय्याशियां कर रहा है। इस मनुवादी वर्ग को वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था से लाभ मिल रहा है क्योंकि ये इन मनुवादियों के वर्चस्व को शोषितों पर बनाये रखने में सहायक हैं। इसीलिये मनुवादी वर्ग वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के उन्मूलन पर चुप्पी साधे रहता है और इन शोषक व्यवस्थाओं के स्थायित्व हेतु कार्य करता है। जबकि विदेशों में इन मनुवादियों के स्वार्थों की पूर्ति के मार्ग में विदेशियों की रंगभेदी और नस्लवादी मानसिकता बाधा डालती हैं और यह बाधा विदेशों में वहां के शोषक वर्ग और शोषित वर्ग दोनों की ओर से उत्पन्न होती है। इस विषय पर यहां अधिक विचार करने से विषयान्तर हो जायेगा इसलिये सरल शब्दों में यही कह रहा हूँ कि भारतीय समाज का 'सर्वाधिक सफेद' मनुवादी व्यक्ति भी विदेशियों के सामने 'काला' ही दिखाई पड़ता है।
इस प्रकार विश्लेषण से स्पष्ट है कि जब मनुवादी वर्ग समानता, स्वतंत्रता, मैत्री आदि मानवाधिकारों की बात करता है तो उसका वास्तविक अर्थ वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के अनुसार केवल मनुवादियों की समानता, स्वतंत्रता, मैत्री आदि मानवाधिकार ही होता है। इन मनुवादियों के मानवाधिकारों की परिभाषा में शोषित जातियों के मानवाधिकार सम्मिलित नहीं होते। यहीं पर इन मनुवादियों की निकृष्ट मानसिकता और उनका दोगला चरित्र प्रकट हो जाता है।
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सन्दर्भ और टिप्पणियां
1.       प्रजातंत्र में जाति, आरक्षण एवं दलित, डॉ0 विवेक कुमार, सम्यक प्रकाशन, प्रथम संस्करण 2014, पृष्ठ- 34.
2.       प्रजातंत्र में जाति, आरक्षण एवं दलित, डॉ0 विवेक कुमार, सम्यक प्रकाशन, प्रथम संस्करण 2014, पृष्ठ- 34-35.