Thursday, June 4, 2020

तथाकथित चिकित्सक अर्थात मनुवादी हत्यारे


महान यूनानी दार्शनिक और चिकित्सा विज्ञान के पितामह हिप्पोक्रेट्स (0पू0 460-0पू0 370) द्वारा एक शपथ की रचना की गई और आज विश्व के अधिकांश देशों में जिनमें भारत भी सम्मिलित है चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थियों को हिप्पोक्रेट्स की वह शपथ सूक्ष्म संशोधन करके ग्रहण करवाई जाती है। हिप्पोक्रेट्स की उपरोक्त शपथ गृहण करने के उपरांत ही कोई चिकित्सक सार्वजनिक रूप से अपना चिकित्सकीय कार्य कर सकता है। हिप्पोक्रेट्स की वह शपथ है:-
"मैं अपोलो वैद्य, एस्क्लीपिअस, हाईजीईआ, पिनाका और सारे देवी-देवताओं की शपथ लेता हूँ और उन्हें साक्षी मानकर कहता हूँ कि मैं अपनी योग्यता और परीक्षण-शक्ति के अनुसार इस शपथ का निर्वहन करूँगा।
जिस व्यक्ति ने मुझे यह विद्या सिखायी है, मैं उसका उतना ही हार्दिक सम्मान करूँगा जितना अपने माता-पिता का करता हूँ। मैं जीवन भर उसके साथ मिलकर कार्य करूँगा और यदि उसे कभी धन की आवश्यकता हुई, तो उसकी सहायता करूँगा। उसके परिवार को अपने भाई समझूँगा और अगर वे चाहें, तो किसी शुल्क या शर्त के बिना उन्हें यह विद्या सिखाऊँगा। मैं केवल अपने पुत्रों, अपने गुरू के पुत्रों और उन सभी विद्यार्थियों को यह विद्या सिखाऊंगा जिन्होंने चिकित्सा के नियम के अनुसार चिकित्सक की शपथ ली है।
मैं उन्हें चिकित्सा के सिद्धान्त सिखाऊँगा, मौखिक अनुदेश दूँगा और जितना शेष ज्ञान मैंने सीखा हैं, वो सब उन्हें सिखाऊँगा।
मैं अपनी योग्यता और परीक्षण-शक्ति के अनुसार रोगी की चिकित्सा उसके स्वास्थ्य लाभ के लिये अवश्य करूँगा; परन्तु कभी भी उसको हानि पहुंचाने और उसके साथ अन्याय करने का दृष्टिकोण नहीं अपनाऊंगा।
मैं किसी के माँगने पर भी उसे विष नहीं दूँगा और ना ही ऐसी औषधि लेने का परामर्श दूँगा। उसी तरह मैं किसी भी स्त्री को गर्भपात कराने की औषधि नहीं दूँगा। मैं पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अपने जीवन और अपनी विद्या की रक्षा करूँगा। मैं किसी की शल्य-चिकित्सा नहीं करूँगा, उसकी भी नहीं जिसके किसी अंग में पथरी हो गयी हो, बल्कि यह कार्य उनके लिए छोड़ दूँगा जिन्हें शल्य-चिकित्सा की विद्या आती है।
मैं जिस किसी रोगी के घर में प्रवेश करूँगा, उसके लाभ के लिए ही कार्य करूँगा, किसी के साथ जानबूझकर अन्याय नहीं करूँगा, प्रत्येक प्रकार के बुरे कार्यों से, विशेषतः स्त्रियों और पुरुषों के साथ लैंगिक संबंध रखने से दूर रहूँगा, यद्यपि वे दास हों या स्वतंत्र मनुष्य। चिकित्सा के समय या अन्य अवसर पर, यदि मैंने रोगी के व्यक्तिगत जीवन से सम्बंधित कोई ऐसी बात देखी या सुनी हो जिसे दूसरों को बताना सर्वथा गलत होगा, तो मैं उस बात को अपने तक ही सीमित रखूँगा, जिससे रोगी का अपयश हो।
यदि मैं इस शपथ को पूरा करूँ और कभी इसके विरुद्ध जाऊँ, तो मेरी प्रार्थना है कि मैं अपने जीवन और विद्या का आनंद उठाता रहूँ और लोगों में सदा के लिए मेरा सम्मान रहे; परन्तु यदि मैंने कभी इस शपथ का उल्लंघन किया और झूठा प्रमाणित हुआ, तो इस प्रार्थना का सर्वथा विपरीत प्रभाव मुझ पर हो।"
हिप्पोक्रेट्स की शपथ को पढ़ने भर से ही इसमें व्याप्त महान उत्तरदायित्व, करुणा, दार्शनिकता और मानवीयता का आभास हो जाता है। आज से लगभग 2400 वर्ष पूर्व रचित उपरोक्त शपथ द्वारा महान हिप्पोक्रेट्स ने एक चिकित्सक को करुणा और मानवीयता से पूर्ण ऐसा मनुष्य बनने का उत्तरदायित्व सौंपा है कि यदि उसे अपने किसी घोर शत्रु की भी चिकित्सा करनी पड़े तो भी वह अपने सम्पूर्ण ज्ञान और योग्यता से किसी पूर्वाग्रह और द्वेष भावना के बिना उसकी चिकित्सा करे और उसे स्वास्थ्य लाभ पहुंचाये। क्योंकि किसी व्यक्ति को जीवन देना सर्वोच्च मानव सेवा है तथा एक चिकित्सक अपने ज्ञान और योग्यता द्वारा यही कार्य करता है।
परन्तु यह भी सत्य है कि मानव उस निम्नतम स्तर को भी बहुत सरलता से प्राप्त कर लेता है जिसे अमानवीयता की पराकाष्ठा कहते हैं। शोषक समाज में चिकित्सा कार्य को जिस निम्नतम स्तर तक कलंकित किया जा सकता है इसका ज्ञान भी होना चाहिये।
जब भी विश्व के समाजों में निकृष्टतम सामाजिक व्यवस्थाओं पर विचार किया जाता है तब सर्वाधिक निकृष्टतम सामाजिक व्यवस्था के रूप में वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर आधारित मनुवादी सामाजिक व्यवस्था ही सामने आती है। मनुवादी व्यवस्था ने चिकित्सा के महान कार्य को अपनी निकृष्ट मनुवादी मानसिकता द्वारा दूषित करके चिकित्सक को जीवनदाता से हत्यारे के रूप में परिवर्तित कर दिया है। इसकी एक झलक बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा रचित आत्मकथा 'वीसा की प्रतीक्षा में (Waiting For A Visa)' में मिलती है:-
"यह उदाहरण काठियावाड़ के एक गाँव के एक अछूत स्कूल-अध्यापक का है, जो गाँधी के समाचार पत्र यंग इण्डिया के 12 दिसम्बर, 1929 के अंक में प्रकाशित निम्नलिखित पत्र में उजागर होता है। इस पत्र में उन कठिनाइयों का वर्णन किया गया है, जिनका अनुभव उसे एक हिन्दू डॉक्टर को अपनी पत्नी को देखने के लिये मनाने की प्रक्रिया में हुआ था। उसकी पत्नी ने हाल में ही एक बच्चे को जन्म दिया था और डॉक्टरी देख-भाल के अभाव में उसकी पत्नी और बच्चे दोनों की मृत्यु हो गई थी। पत्र में लिखा था:-
"इस महीने की 5 तारीख को मेरी पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया। 7 तारीख को वह बीमार हो गई और उसे दस्त लग गए। उसकी ताकत जैसे जवाब देने लगी और उसकी छाती में सूजन गई। उसकी साँस उखड़ने लगी और उसकी पसलियों में भयंकर पीड़ा होने लगी। मैंने एक डॉक्टर से कहा परन्तु उसने कहा कि वह मेरे घर नहीं जाएगा और वह बच्चे की जांच करने को भी तैयार नहीं था। फिर मैंने नगर सेठ और गरासिया दरबार से संपर्क किया और उनसे मदद की गुहार की। नगर सेठ ने मेरी ओर से आश्वासन दिया कि डॉक्टर को उसकी फीस के दो रुपये दे दिए जायेंगे। तब वह डॉक्टर इस शर्त पर आया कि उसकी जाँच हरिजन बस्ती के बाहर करेगा।
मैं अपनी पत्नी और नवजात शिशु को बस्ती के बाहर ले गया। तब डॉक्टर ने अपना थर्मामीटर एक मुसलमान को दिया, जिसने इसे मुझे दिया और मैंने अपनी पत्नी को दिया और उसका काम हो जाने के बाद उसे उसी प्रक्रिया से वापस किया। रात के लगभग 10 बजे थे और डॉक्टर ने थर्मामीटर को एक लैम्प की रोशनी में देखकर बताया कि रोगी को निमोनिया हो गया है। फिर डॉक्टर चला गया और उसने दवा भेज दी। मैं बाजार से थोड़ी अलसी लेकर आया और रोगी पर उसका इस्तेमाल किया। बाद में डॉक्टर ने उसे देखने से मना कर दिया, हालांकि मैंने उसे उसकी फीस के दो रुपये दे दिए थे। बीमारी खतरनाक है और एक ईश्वर ही है जो हमारी मदद करेगा।
मेरी जीवन-ज्योति बुझ गई है। वह आज दोपहर बाद लगभग 2 बजे चल बसी।"
अछूत स्कूल-अध्यापक का नाम नहीं दिया गया है। इसी तरह डॉक्टर का नाम भी नहीं दिया गया है। ऐसा उस अछूत अध्यापक के अनुरोध पर किया गया, जिसे प्रतिक्रिया (बदले) का भय था। लेकिन यहां जो तथ्य दिए गए हैं, वे निर्विवाद हैं।
इस घटना पर कोई टिप्पणी करना आवश्यक नहीं है। डॉक्टर ने पढ़ा-लिखा होने के बावजूद थर्मामीटर लगाने और गम्भीर रूप से रोगी स्त्री की चिकित्सा करने से इंकार कर दिया। उसके द्वारा स्त्री का इलाज करने से मना करने के फलस्वरूप उस स्त्री की मृत्यु हो गई। उस डॉक्टर को उस आचार-संहिता की अवहेलना करने पर भी उसके अन्तःकरण ने उसे नहीं कचोटा, जिसकी उसके व्यवसाय पर बाध्यता है। हिन्दू किसी अछूत को छूने की अपेक्षा अमानवीय होना अधिक पसन्द करेगा।"1
वर्तमान समय में भी इस स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला के जौनपुर, उत्तर प्रदेश संस्करण में दिनांक 24 मई 2018 को पृष्ठ 3 पर प्रकाशित समाचार जिसका शीर्षकडॉक्टर समेत छह पर वाद दर्ज, पैसे देने से इन्कार करने पर मरीज को स्ट्रेचर से ढकेलने मौत होने का आरोपके अंतर्गत प्रकाशित सूचना है:-
"अनुसूचित जाति के वृद्ध बीमार मरीज को पहले तो डॉक्टर उनके स्टाफ ने छूने के लिए 1000 रुपये मांगे। विरोध करने पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर अपमानित किया और स्ट्रेचर से धकेल दिया। इससे वृद्ध की मौत हो गई। हत्या का आरोप लगाते हुए वादी ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया, जिस पर सीजेएम ने डॉक्टर स्टाफ समेत छह लोगों पर वाद दर्ज कर थाने से  रिपोर्ट तलब किया है।
केशव प्रसाद गौतम निवासी परसूपुर, मछलीशहर ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया कि 17 मई 2018 को उसके पिता नरेंद्र की तबीयत बहुत खराब थी। वह बाइक से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मछलीशहर पिता को ले गया वहां पहुंच कर डॉक्टर को आवाज देते हुए अंदर से स्ट्रेचर लाया।
पिता को उस पर लिटाया और इमरजेंसी बताते हुए तुरंत इलाज करने के लिए डॉक्टर से कहा। तब डॉक्टर, उनकी नर्स और फार्मासिस्ट वगैरह ने जातिसूचक शब्दों से अपमानित करते हुए कहा कि मरीज को छूने की 1000 रुपये फीस लूंगा। विरोध पर आग बबूला हो गए। डॉक्टर उनके स्टाफ ने जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया गालियां दी। बीमार पिता को स्ट्रेचर से धकेल दिया। झटके से गिरने आघात से उसके पिता की वहीं मृत्यु हो गई। दाह संस्कार के बाद थाना मछलीशहर पुलिस अधीक्षक को घटना की सूचना दी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।"2
इस तरह स्पष्ट है कि वर्तमान समय में भी इस स्थिति में रत्ती भर परिवर्तन नहीं हुआ है। जैसे-जैसे मनुवादी और पूंजीवादी व्यवस्था में गठजोड़ बढ़ रहा है वैसे-वैसे ही शोषित वर्ग का शोषण अत्यधिक तीव्र गति से बढ़ रहा है। शोषित वर्ग पर मनुवादी और पूंजीवादी व्यवस्था की दोहरी मार पड़ रही है। चिकित्सकों द्वारा गुर्दा आदि अंगों की चोरी करना, भ्रूणहत्या करना, अकारण गर्भपात करना, हानिकारक दवाईयों का शोषितों पर अवैध परीक्षण करना आदि कुकृत्य किये जा रहे हैं। भारत में ब्रिटिश शासनकाल से ही अधिकांश तथाकथित चिकित्सक वास्तव में भाड़े के मनुवादी हत्यारों के रूप में ही कार्य कर रहे हैं।
यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि भारत में शोषित वर्ग का अधिकांश भाग शोषित जातियों से ही निर्मित है। यही शोषित जातियाँ खेतों, कारखानों, असंगठित क्षेत्रों आदि स्थानों में श्रम द्वारा उत्पादन करती हैं। शोषित जातियों के खून-पसीने पर मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग की अय्याशियां चल रही हैं। परन्तु शोषित जातियाँ घोर निर्धनता और अभावों में जीवन-यापन करने को विवश हैं। शोषित जातियों के खून-पसीने द्वारा मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं परन्तु शोषित जातियों को घोर अज्ञानता और अशिक्षा की स्थिति में रखा जाता है। शोषित जातियों के खून-पसीने से मनुवादी-पूंजीवादी लोग चिकित्सक बनकर शोषित जातियों को लूटने और उनकी हत्यायें करने में व्यस्त रहते हैं।
शोषित जातियों के लोग इन मनुवादी हत्यारों के सामने तड़प-तड़प कर दम तोड़ देते हैं परन्तु यह मनुवादी हत्यारे उनकी चिकित्सा नहीं करते। इसको विस्तार से समझने की आवश्यकता है। मनुवादी वर्ग द्वारा निर्मित वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के अनुसार शोषित जातियों को शिक्षा प्राप्त करने, सम्मानपूर्ण व्यवसाय करने और संपत्ति अर्जित करने का अधिकार नहीं था। इसके कारण शोषित जातियाँ घोर निर्धनता में जीवन यापन करने को विवश कर दी गईं। यद्यपि शोषित जातियाँ ही उत्पादक वर्ग हैं। इस प्रकार सदियों की निर्धनता, शोषण और दमन के फलस्वरूप शोषित जातियाँ विपन्न ही रहीं जबकि मनुवादी वर्ग के पास सम्पत्ति संचित होती रही। ब्रिटिश शासन की समाप्ति के पश्चात यही स्थिति बनी रही। आज भी निर्धन जनता का अधिकांश भाग शोषित जातियाँ ही हैं। जब यह तथाकथित चिकित्सक अर्थात मनुवादी हत्यारे शोषित वर्ग के किसी रोगी को देखते हैं तो उसकी आर्थिक स्थिति का अनुमान लगा लेते हैं जिससे उसकी सामाजिक स्थिति का भी अनुमान हो जाता है। तब ये डकैत अर्थात मनुवादी चिकित्सक उससे अत्यधिक शुल्क की मांग करते हैं और वह रोगी किसी तरह उनका शुल्क दे देते हैं तो ये मनुवादी हत्यारे दूर से ही लापरवाही से उसका निरीक्षण करके उसे घटिया दवाईयां लिख देते हैं और अन्य जाँचों के नाम पर उससे अधिक से अधिक धन निचोड़ लेते हैं। इन मनुवादी हत्यारों की दवाईयों का भी उस रोगी पर कोई लाभदायक प्रभाव नहीं होता। यदि वह रोगी इन मनुवादी हत्यारों को उनके अत्यधिक शुल्क का भुगतान नहीं कर पाते तब यह तथाकथित चिकित्सक उस रोगी से ऐसे आँखे फेर लेते हैं जैसे कि उनके सामने रोगी मानव नहीं बल्कि कोई निर्जीव, तुच्छ और घृणित वस्तु पड़ी हो।
इन तथाकथित चिकित्सकों अर्थात मनुवादी हत्यारों को हिप्पोक्रेट्स की शपथ को लात मारकर घोर अमानवीयता प्रदर्शित करने में किसी शर्म का अनुभव नहीं होता क्योंकि मनुवाद इनको शोषित जातियों से घृणा करने की ही घुट्टी पिलाता है। मनुवादियों की दृष्टि में शोषित जातियाँ गन्दी नाली के कीड़े से भी निकृष्ट और घृणास्पद होती हैं और उनको मानव नहीं माना जाता। मनुवाद मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग को शोषित जातियों का खून चूसकर अय्याशी करना ही सिखाता है। शोषित जातियों के शोषण पर ही मनुवादियों का अस्तित्व टिका हुआ है।
इससे स्पष्ट है कि यदि हिप्पोक्रेट्स भारत में जन्म लेते तो उन्होंने अपनी शपथ में इन मनुवादियों को चिकित्सक बनने के सर्वथा अयोग्य घोषित किया होता।
इस प्रकार मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के कारण चिकित्सा सुविधा शोषित वर्ग की पहुँच से बहुत दूर हैं। सदियों की निर्धनता, वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप देशी तथा विदेशी आधुनिक सुविधा वाले चिकित्सकीय संस्थान और चिकित्सालय शोषित वर्ग की पहुँच के बाहर हैं और इसके साथ ही साथ तथाकथित चिकित्सक अर्थात मनुवादी हत्यारे शोषित वर्ग के लिये जल्लाद बने हुए हैं।
इस स्थिति में तब तक परिवर्तन नहीं आएगा जब तक शोषित वर्ग मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करके समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण नहीं करता। इस संघर्ष में अम्बेडकरवाद ही शोषित वर्ग का मार्गदर्शन कर सकता है।
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सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.       वीसा की प्रतीक्षा में, (Waiting For A Visa), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, प्रथम संस्करण 2010, पृष्ठ 37-38, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली।
2.       दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला के जौनपुर, उत्तर प्रदेश संस्करण में दिनांक 24 मई 2018 को पृष्ठ 3 पर प्रकाशित समाचार जिसका शीर्षक "डॉक्टर समेत छह पर वाद दर्ज, पैसे देने से इन्कार करने पर मरीज को स्ट्रेचर से ढकेलने मौत होने का आरोप" के अंतर्गत प्रकाशित सूचना।

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