Saturday, May 30, 2020

ब्राह्मणवाद या मनुवाद का अर्थ

                ब्राह्मणवाद को लेकर बहुत भ्रांतियां फैली हुई हैं। ब्राह्मणवाद का अर्थ क्या है? ब्राह्मणवाद किन लोगों में पाया जाता है? आदि प्रश्नों को लेकर बहुत विवाद होता रहता है। इसलिए ब्राह्मणवाद' को समझना अत्यंत आवश्यक है। यहां यह भी जान लेना चाहिये कि 'ब्राह्मणवाद' को 'मनुवाद' भी कहा जाता है। यद्यपि बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने 'ब्राह्मणवाद (Brahmanism)' शब्द का ही प्रयोग किया है। वास्तव में 'ब्राह्मणवाद' केवल जातिवाद ही नहीं है बल्कि यह जातिवाद से बढ़कर है। 'ब्राह्मणवाद' ने ही 'वर्ण व्यवस्था', 'जाति व्यवस्था', 'जातिवाद', 'जातीय भेदभाव', 'स्त्रियों की निम्न स्थिति' और शोषित जातियों की विपन्नता को जन्म दिया है।
                 वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था तथा ब्राह्मणों द्वारा समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है कि ब्राह्मणों ने सर्वप्रथम समाज को वर्ण व्यवस्था के अनुसार बांटा तत्पश्चात उन्होंने वर्ण व्यवस्था से जाति व्यवस्था का सृजन किया। अतः ब्राह्मणों ने समाज को विखंडित किया। तथाकथित हिन्दू धर्म और राज्य सत्ता का उपयोग करके ब्राह्मणों ने समाज के उत्पादन साधनों और सारी संपत्ति पर अपना और अपने सहयोगियों अर्थात ब्राह्मणवादियों या मनुवादियों का प्रभुत्व स्थापित कर दिया तथा समाज में अपने लिए लाभदायक स्थिति निर्मित कर ली। लेकिन क्योंकि ब्राह्मण समुदाय शोषित जातियों के शोषण पर ही निर्भर रहा इसलिये उन्होंने इन शोषित जातियों को समाज में निम्न स्तर पर बनाये रखने और अपनी प्रमुखता को स्थायी रखने के लिए भी तथाकथित हिन्दू धर्म और राज्य सत्ता का आश्रय लिया। इस कार्य में सहयोग के लिये ब्राह्मणों ने 'श्रेणीगत असमानता (Graded Inequality)' के सिद्धांत को जन्म दिया। जिसका अर्थ है कि वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर ब्राह्मण होगा तथा अन्य वर्ण और जातियाँ भले ही ब्राह्मणों से निम्न स्तर पर होंगी लेकिन वे निम्नता के समान स्तर पर नहीं होंगी बल्कि उनमें भी श्रेणीक्रम होगा। इस प्रकार जाति व्यवस्था में सर्वोच्च स्थान पर ब्राह्मण जातियाँ और निम्नतम स्थान पर अनुसूचित जातियाँ (जिन्हें अस्पृश्य जातियाँ भी कहा जाता है) होती हैं। अन्य जातियाँ इन दोनों सीमाओं के मध्य में आती हैं। इस प्रकार जाति व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य जातियाँ उनसे निम्न स्तर पर हैं किंतु वे निम्नता के समान स्तर पर नहीं हैं। इसी कारण जाति व्यवस्था से सभी जातियाँ समान रूप से पीड़ित भी नहीं हैं। इसी श्रेणीगत असमानता के सिद्धांत के अनुसार आर्थिक संसाधनों और सम्पत्ति का भी असमान वितरण किया गया। अनुसूचित जातियों को शिक्षा प्राप्त करने और सम्पति अर्जित करने के अधिकार से वंचित तो किया ही गया इसके साथ ही साथ उनको मानवीय स्तर से भी नीचे गिराया गया। उनको मानसिक दास बना दिया गया जिससे उनकी शारीरिक दासता स्थाई हो जाए। इस कार्य में ब्राह्मणों ने अन्य जातियों से भी सहयोग लिया और इसके बदले में उन जातियों को लाभ मिला। ब्राह्मणों द्वारा अपनी इस सर्वोच्च स्थिति को बनाये रखने हेतु प्रत्येक उपाय, प्रत्येक साधन, प्रत्येक छल-प्रपंच और धोखाधड़ी को अपनाया गया। ब्राह्मणों ने सदैव अपने स्वार्थों को समाज, राज्य और देश हित से ऊपर रखा।
               इसके साथ ही ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के स्थायित्व के लिये ही स्त्रियों पर भी अनेक प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये तथा उनका दमन किया। जिससे निम्न वर्गों और उच्च वर्गों के बीच की स्त्रियों और पुरुषों के बीच किसी प्रकार के सम्बन्ध ना बन पाए जिनसे वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को आघात पहुंचे। इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिये मनुस्मृति का अध्ययन किया जा सकता है।
               बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने ब्राह्मणवाद को परिभाषित करते हुए कहा है:-
"इस ब्राह्मणवाद के दर्शन के 6 मूलभूत सिद्धान्त हैं यथा:-
(1) विभिन्न वर्गों में सोपानीकृत असमानता (Graded Inequality)
(2) शूद्रों और अस्पृश्यों को अस्त्र-शस्त्र रखने पर पूर्णतः रोक,
(3) शूद्रों और अस्पृश्यों के लिये शिक्षा के द्वार बंद होना,
(4) सत्ता और अधिकार से शूद्रों और अस्पृश्यों को पूर्णतः वंचित रखना,
(5) शूद्रों और अस्पृश्यों को सम्पत्ति संचय से वंचित रखना, और
(6) स्त्रियों की पूर्ण अधीनता एवं दमन,
              असमानता ब्राह्मणवाद का आधिकारिक सिद्धान्त है और निम्न वर्गों द्वारा समानता के लिये प्रयास करने पर उनका दमन करने के असीम अधिकार ब्राह्मणवादियों को प्राप्त हैं। विश्व में कुछ देश ऐसे हैं जहां शिक्षा कुछ लोगों तक ही पहुंची है। परंतु भारत अकेला एक ऐसा देश है, जहाँ प्रबुध्द वर्ग- नामतः, ब्राह्मणों ने शिक्षा पर एकाधिकार ही नहीं कर रखा है बल्कि निम्न वर्गों का शिक्षा ग्रहण करना अपराध मान कर जीभ काट लेने की सजा अथवा अपराधी के कान में पिघला हुआ सीसा डालने की व्यवस्था की हुई है। इसका परिणाम यह हुआ कि ब्राह्मणों ने सदियों तक शासित जातियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा।"1
             एक अन्य स्थान पर ब्राह्मणवाद या मनुवाद को परिभाषित करते हुए, इसकी व्याप्ति और शोषित जातियों पर इसके पड़ने वाले प्रभाव का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा है:-
"मेरी मान्यतानुसार 'ब्राह्मणवाद यानि स्वतन्त्रता, समानता और मैत्री का नकार'। इस अर्थ में यह सभी वर्गों में व्याप्त है और सिर्फ ब्राह्मणों तक ही सीमित नहीं है यद्यपि वे उसके निर्माता हैं। ब्राह्मणवाद सभी जगह व्याप्त है और सभी वर्गों के विचारों तथा कृत्यों को नियंत्रित करता है, यह अविवादित तथ्य है। यह भी सत्य है कि ब्राह्मणवाद कुछ वर्गों को विशेषाधिकार देता है। यह कुछ अन्य वर्गों को अवसर की समानता से वंचित करता है। ब्राह्मणवाद का प्रभाव केवल अंतर्जातीय खान-पान या अंतर्जातीय विवाह सम्बन्धों जैसे सामाजिक अधिकारों तक ही सीमित नहीं है। यदि वैसा भी होता तो कदाचित किसी को आपत्ति नहीं होती। परन्तु वैसा नहीं है। यह सामाजिक अधिकारों को पार करके नागरिक अधिकारों तक व्याप्त हो जाता है। सार्वजनिक कुओं का पानी, सार्वजनिक आवागमन, सार्वजनिक भोजनालयों का उपयोग नागरिक अधिकारों में आता है। वह सब जो सार्वजनिक उपभोग के लिए उद्धिष्ट हो या सार्वजनिक कोष के द्वारा व्यवस्थित किया जाता हो प्रत्येक नागरिक के लिए खुला होना चाहिए। परन्तु ऐसे करोड़ों लोग हैं जिनके इन नागरिक अधिकारों को नकारा जाता है। क्या कोई सन्देह कर सकता है कि यह ब्राह्मणवाद का परिणाम है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रभावशाली है और जो अब भी एक जीवित विद्युत तार की तरह कार्य कर रहा है? ब्राह्मणवाद इतना सर्वव्यापी है कि यह आर्थिक अवसरों के क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। शोषित वर्ग के एक श्रमिक को लीजिए और उसके अवसरों की एक ऐसे श्रमिक के साथ तुलना कीजिए जो शोषित वर्ग से सम्बन्धित नहीं है। उसे क्या अवसर मिल रहे हैं? वह किस अवस्था में कार्य कर रहा है या वहां उसकी प्रगति होती है? यह कुख्यात है कि ऐसे अनेक व्यवसाय हैं जो शोषित वर्ग के श्रमिक के लिए इसलिये बन्द हैं क्योंकि वह अस्पृश्य है।"2
               इस प्रकार स्पष्ट है कि ब्राह्मणों और उनके सहयोगियों द्वारा स्वतन्त्रता, समानता और मैत्री के आदर्शों का उल्लंघन करते हुए समाज के प्रत्येक क्षेत्र में ब्राह्मणों की सर्वोच्चता को बनाये रखने तथा शोषित जातियों की दासता को स्थायी रखने का सिद्धांत ही 'ब्राह्मणवाद' या 'मनुवाद' है तथा इस सिद्धांत को मानने वाले लोग ही चाहे वो किसी भी धर्म,  सम्प्रदाय, लिंग या जाति के हों 'ब्राह्मणवादी' या 'मनुवादी' कहलाते हैं।
               यहाँ इस विषय पर भी चर्चा कर ली जाए कि तथाकथित बुद्धिजीवी कहते हैं कि शूद्रों और अस्पृश्यों में भी जातियाँ-उपजातियां पायी जाती हैं और वे भी आपस में जातिभेद मानते हैं। यह बात सही है और इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन प्रश्न यह है कि इस स्थिति के लिये वास्तविक रूप से उत्तरदायी कौन है? किसने उनके मस्तिष्क में जाति व्यवस्था का विष घोला है? ये ब्राह्मण और उनके सहयोगी लोग ही हैं जिन्होंने अपनी उच्चता और लाभदायक स्थिति को बनाए रखने के लिये शूद्रों और अस्पृश्यों को भी जाति व्यवस्था के अनुसार व्यवहार करने के लिये बाध्य किया जिससे वे अपने शोषण की समाप्ति हेतु ब्राह्मणवादियों या मनुवादियों के वर्चस्व का उन्मूलन करने के लिये संगठित ना हो पाए। यदि किसी ने इस स्थिति के विरुध्द कार्य किया और तथाकथित निम्न जातियों को संगठित करने का प्रयास किया तो ब्राह्मणोंवादियों या मनुवादियों ने उसे प्रताड़ित किया और उसकी हत्या तक कर दी। ब्राह्मणोंवादियों या मनुवादियों ने शूद्रों और अस्पृश्यों को शिक्षा से वंचित रखा और उन्हें अंधविश्वासों में जकड़े रखा। यह देखते हुए इस बात से कोई असहमत नहीं हो सकता है कि शूद्रों और अस्पृश्यों में व्याप्त जातिगत व्यवहार के लिये यह ब्राह्मणवादी ही उत्तरदायी हैं। ब्राह्मणों और उनके समर्थकों की इसी कुटिलता पर बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा है कि पहले तुम ब्राह्मण लोग शूद्रों और अस्पृश्यों के गले में पहाड़ जैसा पत्थर बांध देते हो फिर यदि वह उस पत्थर को अपने गले से निकाल कर मुक्त होना चाहते हैं तो तुम ब्राह्मण लोग ही उन पर लाठियां बरसाते हो और फिर कहते हो कि देखो ये उस पत्थर से मुक्त ही नहीं हो रहे! वर्तमान समय में भी जब निम्न जातियों के महिला-पुरुष अंतर्जातीय विवाह कर लेते हैं तो ब्राह्मण और इनके समर्थक इसको दुष्प्रचारित करते हैं और उनके परिजनों का अपमान करते हैं जिससे अन्य लोग भयभीत होकर यह कार्य ना करें जबकि ये ब्राह्मणवादी या मनुवादी लोग यदि अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाह करते हैं तो इसको उदारता और प्रगतिशीलता के उदाहरण के रूप में महिमामंडित करते हैं।
              इसलिए शोषित जातियों के जो लोग जातिगत भेदभाव का व्यवहार करते भी हैं तो वे ऐसा सैकड़ों वर्षों की दासता से उपजी अज्ञानता और चेतना के अभाव के कारण करते हैं जिसके लिये शोषित जातियों के वे लोग दोषी नहीं हैं। परन्तु शोषित जातियों की इस मनुवादी मानसिकता का लाभ मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग को ही मिलता है। क्योंकि मनुवादी मानसिकता के कारण ही शोषित जातियाँ संगठित नहीं हो पातीं। इस प्रकार एक ओर तो शोषित जातियाँ ब्राह्मणवाद या मनुवाद द्वारा उत्पीड़ित हो रहीं हैं परन्तु दूसरी ओर वे स्वयं मनुवादी मानसिकता से ग्रस्त होकर ब्राह्मणवाद या मनुवाद से संक्रमित भी हैं।
             अतः यदि शोषित जातियों को अपने शोषण का उन्मूलन करना है तो उसे सर्वप्रथम मनुवादी मानसिकता से बाहर निकलना होगा। इसके बाद ही शोषित जातियों में एकता स्थापित हो सकती है। इस तरह स्थापित एकता के द्वारा ही शोषित वर्ग को संगठित किया जा सकता है और मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करना सम्भव हो सकेगा। परन्तु इस कार्य में शोषित वर्ग को मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादियों से सावधान रहने की आवश्यकता है क्योंकि ये तथाकथित साम्यवादी ठग पूंजीवाद के विरुद्ध तो 'शाब्दिक युद्ध' करते भी हैं परन्तु ब्राह्मणवाद या मनुवाद के विरूद्ध एक शब्द नहीं कहते या उसकी भ्रामक व्याख्या करते हैं।
                                            
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सन्दर्भ और टिप्पणियां
1. कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया (What Congress and Gandhi have done to the Untouchables), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, सम्यक प्रकाशन, प्रथम संस्करण 2008, पृष्ठ- 213-214, 
तथा,
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 9, Publisher- Dr. Baba Saheb Ambedkar Source Material Publication Committee, Higher Education Department, Government of Maharashtra, Reprint Edition May 2015, Page- 215 and 468.
2. Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 17, Part 3, Edition- 4 October 2003, Page- 177-178,  Punisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.

बांटो और राज करो नीति के जनक

यदि मनुवादियों के व्यवहार और उनकी मानसिकता का अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्ट दिखाई देगा कि मनुवादियों ने केवल एक ही शिक्षा ग्रहण की है और वो है अपने अतिरिक्त अन्य सभी जातियों, सम्प्रदायों, धर्मों आदि से घृणा करना। जिस तरह आज मनुवादी लोग मुसलमानों को लक्षित करके साम्प्रदायिक राजनीति कर रहे हैं पहले यही मनुवादी लोग बौद्धों के विरुध्द घृणा का प्रचार किया करते थे। शुंग वंश के ब्राह्मण शासक पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा की थी कि "जो मुझे एक भिक्खु का सिर देगा उसे मैं 100 स्वर्ण मुद्राएं दूंगा!" पुष्यमित्र शुंग ने लाखों बौद्धों का भीषण जनसंहार किया था। पुष्यमित्र शुंग ने ही मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए 84000 स्तूपों को नष्ट कर दिया था। बंगाल के गौड़ वंश के ब्राह्मण राजा शशांक ने विश्व प्रसिद्ध बोधगया के बोधिवृक्ष को कटवा दिया था और बौद्धों का घोर उत्पीड़न किया था। मनुवादी लोग आदि शंकराचार्य के गुण गाते रहते हैं परन्तु उसने ही पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में घूम-घूमकर स्थानीय मनुवादी राजाओं के द्वारा बौद्धों का जनसंहार करवाया तथा बौद्ध विहारों और चैत्यों को नष्ट करवाया। आज भी बौद्धों के प्रति मनुवादियों की घृणा में कोई कमी नहीं आयी है। आज भी देश में बौद्ध स्थलों और बौद्धों पर मनुवादी अत्याचार हो रहे हैं परन्तु मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया इन सूचनाओं को दबा देता है। इस प्रकार मनुवादियों का इतिहास ही अन्य समुदायों से घृणा करने का रहा है। वास्तव में 'मनुवाद' लोगों को जन्म लेते ही अपने अतिरिक्त अन्य सभी व्यक्तियों, समुदायों आदि से 'अत्यधिक घृणा' करने की शिक्षा देता है। ऐसा क्यों है? इसका उत्तर जानने के लिये हमें भारतीय समाजिक व्यवस्था का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।

भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर आधारित मनुवादी समाज है। जाति व्यवस्था मनुष्यों को क्षैतिज ढंग से ही नहीं बल्कि उर्ध्वाधर ढंग से भी विभाजित करती है। प्रत्येक जाति अन्य जातियों से श्रेणीक्रम में ऊपर या नीचे होती है। इस श्रेणीक्रम के अनुसार ही उनके सामाजिक सम्मान, अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का निर्धारण किया गया है। इस श्रेणीक्रम में नीचे से ऊपर जाने पर सम्मान और अधिकारों में वृध्दि होती जाती है जबकि ऊपर से नीचे जाने पर तिरस्कार और कर्तव्यों में वृध्दि तथा सम्मान और अधिकारों में कमी होती जाती है। इसे ही श्रेणीगत असमानता कहा जाता है। मनुवाद जनित वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था और श्रेणीगत असमानता के कारण प्रत्येक मनुवादी व्यक्ति अपने और अपनी जाति के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों और जातियों से घृणा करता है। मनुवादियों के लिये अपने स्वार्थ और अपने जातीय हित ही सर्वोपरि हैं। मनुवादियों की समाज विरोधी मानसिकता के विषय में बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि:-

"हिन्दुओं में उस चेतना का सर्वथा अभाव है, जिसे समाजविज्ञानी 'समग्र वर्ग की चेतना' कहते हैं। उनकी चेतना समग्र वर्ग से सम्बंधित नहीं है। प्रत्येक हिन्दू में जो चेतना पायी जाती है, वह उसकी अपनी ही जाति के बारे में होती है।"1

मनुवादियों ने वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था द्वारा समाज को परस्पर संघर्षरत अनेक टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जाति व्यवस्था के कारण मनुवादी लोगों की मानसिकता किस प्रकार विकृत हो चुकी है इसका वर्णन करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है:-

"जाति प्रथा का हिन्दुओं की नैतिकता पर प्रभाव सामान्यतया सोचनीय है। जाति प्रथा ने सामूहिक चेतना को मार दिया है। जाति प्रथा ने सामूहिक कल्याण की भावना को नष्ट कर दिया है। जाति प्रथा के कारण किसी भी विषय पर सार्वजनिक सहमति का होना असम्भव हो गया है। हिन्दुओं के लिए उनकी जाति ही जनता है। उनका उत्तरदायित्व अपनी जाति तक सीमित है। उनकी निष्ठा अपनी जाति तक सीमित है। गुणों का आधार भी जाति ही है और नैतिकता का आधार भी जाति ही है। सही व्यक्ति के प्रति (अगर वह उनकी अपनी जाति का नहीं है) उनकी सहानुभूति नहीं होती। गुणों की कोई सराहना नहीं है, जरूरतमंद के लिये सहायता नहीं है। दुखियों की पुकार का कोई जवाब नहीं है। अगर सहायता है तो वह केवल जाति मात्र तक सीमित है। सहानुभूति है लेकिन अन्य जातियों के लोगों के लिए नहीं।"2

मनुवादियों ने सत्ताधारी प्रभुत्व वर्ग बनने के लिये ही समाज को विखंडित करके सामाजिक एकता को असम्भव बना दिया। मनुवादी वर्ग यद्यपि सत्ताधारी वर्ग है परन्तु वह एक अल्पसंख्यक वर्ग है जबकि शोषित वर्ग यद्यपि शासित वर्ग है तथापि बहुसंख्यक वर्ग है। मनुवादियों ने समाज को विखंडित करके उसे शत्रु समुदायों के संघर्षरत समूह में परिवर्तित कर दिया। क्योंकि यदि बहुसंख्यक शोषित वर्ग संगठित हो जाएगा तो वह मनुवादियों की सत्ता को उखाड़ कर फेंक देगा। यही कारण है कि मनुवादी वर्ग समाज में विरोधी हितों वाले अन्य सभी समुदायों से घृणा करता है तथा सामाजिक एकता को असम्भव बनाने अर्थात समाज को विखंडित रखने के लिये घृणा का प्रचार करता रहता है। इस प्रकार "बांटो और राज करो" नीति के वास्तविक जनक मनुवादी ही हैं और मनुवादियों की घृणा फैलाने की नीति का मूल उद्देश्य भी लोगों को बांट कर राज करना ही है। यहां इस प्रश्न पर विचार करना भी उचित होगा कि क्या मनुवादियों के 'हृदय परिवर्तन' द्वारा शोषित वर्ग के शोषण का उन्मूलन किया जा सकता है? इसका उत्तर है नहीं। क्योंकि जिस प्रकार खून चूसने वाली जोंक का अस्तित्व ही खून चूसने पर निर्भर है और उसे इसका कोई संज्ञान नहीं है कि जिस प्राणी का खून चूसा जा रहा है उसको कितनी पीड़ा हो रही होगी, उसी प्रकार मनुवादी वर्ग का अस्तित्व भी शोषित वर्ग के शोषण करने पर ही आधारित है और मनुवाद ने मनुवादियों की मानसिकता को इतना विकृत कर दिया है कि उसे इस बात का आभास ही नहीं होता कि उसके स्वार्थों के कारण करोड़ों लोगों का अत्यधिक शोषण हो रहा है। समाज में अपना वर्चस्व बनाये रखने और सत्ताधारी वर्ग बने रहने के लिये ही मनुवादी वर्ग सुनियोजित साम्प्रदायिक और जातीय दंगे करवाता है, शोषित वर्ग की स्त्रियों से बलात्कार और सामूहिक बलात्कार करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुवादियों को समझाकर या उनका हृदय परिवर्तन करके शोषित वर्ग के शोषण का उन्मूलन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार वर्तमान व्यवस्था अर्थात मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन किये बिना शोषित वर्ग के शोषण का अंत नहीं किया जा सकता तथा समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण भी नहीं किया जा सकता।

वास्तव में समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की शिक्षाओं को अपनाकर ही किया जा सकता है। इसलिए शोषितों को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के दिखाए मार्ग पर चलते हुए मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ कर समतामूलक और शोषणमुक्त समाज के सपने को साकार करने के लिये संघर्ष करना चाहिये।

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सन्दर्भ और टिप्पणियां

1.       जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर,

बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड-1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 70, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,

और

Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 50, Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.

2.       जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर,

बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड-1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 77-78, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,

और

Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 56-57,

Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.