Thursday, March 14, 2019

सुविधाभोगी वर्ग ने विश्वासघात क्यों किया? PART 2


इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिये हमें सर्वप्रथम पिछले लगभग 70 वर्षों में शोषित जातियों में आये सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों और 'सुविधाभोगी वर्ग' के विचारों में आये परिवर्तनों का अध्ययन करना होगा।
वस्तुतः ब्रिटिश शासन काल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था में पूंजीवाद का प्रारम्भ हो चुका था। ब्रिटिश शासन की समाप्ति और भारत का संविधान लागू होने के बाद बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के त्याग और संघर्ष के परिणामस्वरूप शोषित जातियों को आत्मविकास के अवसर प्राप्त हुए। शोषित जातियों में व्याप्त हो चुकी चेतना के कारण अब मनुवादी वर्ग के लिये यह सम्भव नहीं रह गया था कि शोषित जातियों को प्राप्त इन अधिकारों को प्रत्यक्षतः समाप्त कर सके। यद्यपि परोक्ष रूप से मनुवादियों द्वारा यह किया जाता रहा है। इसके साथ ही देश में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विकास भी तीव्रता से होता रहा। इस प्रकार मनुवादी दासता में जकड़ी शोषित जातियों पर पूंजीवाद का प्रभाव भी पड़ता रहा। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के कारण मनुवादियों के लिये प्रायः यह सम्भव नहीं रहा कि वे लोग शोषित जातियों के उन शिक्षित, उच्च पदों पर आसीन और अपेक्षाकृत अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोगों से वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के अनुसार तिरस्कारपूर्ण और अपमानजनक व्यवहार कर सकें। इस कारण विवशतावश ही मनुवादियों को शोषित जातियों के इस 'सुविधाभोगी वर्ग' से संतोषजनक व्यवहार करना पड़ता है। परन्तु जहां यह विवशता नहीं होती वहां यही मनुवादी वर्ग शोषित जातियों के व्यक्तियों से तिरस्कारपूर्ण और अपमानजनक व्यवहार करने से नहीं चूकता है। इस परिस्थिति का शोषित जातियों के सुविधाभोगी वर्ग पर यह प्रभाव पड़ा कि इन लोगों को उन मनुवादी अत्याचारों को नहीं सहना पड़ रहा है जिन अत्याचारों को इनके पूर्वजों ने सहा और आज भी अधिकांश शोषित जातियों के विपन्न लोग सह रहे हैं। इस कारण सुविधाभोगी वर्ग में मनुवादी अत्याचारों, वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के विरुद्ध किसी प्रकार की प्रत्यक्ष चेतना का अस्तित्व नहीं है। इसी कारण इनमें वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था और मनुवादी व्यवस्था के उन्मूलन हेतु संघर्ष करने का दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति भी नहीं है।
पूंजीवाद के प्रभाव के कारण शोषित जातियों का यह सुविधाभोगी वर्ग निजी संपत्ति के प्रति अत्यधिक मोहग्रस्त हो चुका है। लेकिन क्योंकि यह भी सत्य है कि पूंजीवादी व्यवस्था में किसी भी प्रकार की संपत्ति मूलतः श्रमिक के शोषण से ही उत्पन्न होती है और भारत में श्रमिक वर्ग का अधिकांश हिस्सा शोषित जातियों से ही बना है। इसलिए परिणामस्वरूप शोषित जातियों का सुविधाभोगी वर्ग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शोषित जातियों का ही शोषण कर रहा है। परन्तु मनुवादी वर्ग का अस्तित्व भी शोषित जातियों के शोषण पर ही निर्भर है और क्योंकि शोषित जातियों का सुविधाभोगी वर्ग मनुवादियों के लिये 'बाहरी लोग' हैं इसलिये शोषित जातियों का 'सुविधाभोगी वर्ग' तब तक सरलतापूर्वक संपत्ति अर्जित नहीं कर सकता था जब तक वह मनुवादी वर्ग की 'आधीनतापूर्ण मित्रता' स्वीकार नहीं कर लेता।
इस प्रकार पूंजीवाद ने शोषित जातियों के सुविधाभोगी वर्ग पर प्रभाव डाला और उसने स्वार्थवश मनुवादी वर्ग की आधीनतापूर्ण मित्रता स्वीकार कर ली। जिसके कारण शोषित जातियों के शोषण में शोषित जातियों का यह सुविधाभोगी वर्ग ही मनुवादी वर्ग का सहयोगी बन गया। जिसके फलस्वरूप शोषित जातियों का यह सुविधाभोगी वर्ग शोषित जातियों के अपने ही लोगों के लिए अपरिचित बन गया है।
महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा था कि:-
"भौतिक जीवन की उत्पादन प्रणाली जीवन की आम सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक प्रक्रिया को निर्धारित करती है। मनुष्यों की चेतना उनके अस्तित्व को निर्धारित नहीं करती, बल्कि उलटे उनका सामाजिक अस्तित्व उनकी चेतना को निर्धारित करता है।"4
इससे स्पष्ट है कि शोषित जातियों के सुविधाभोगी वर्ग पर उसके उस सामाजिक परिवेश ने प्रभाव डाला जो उसके पूर्वजों से नितांत भिन्न था और परिणामस्वरूप उसकी चेतना में परिवर्तन उत्पन्न हो गया। वह जन्म से शोषित जातियों का था परन्तु चेतना से मनुवादी-पूंजीवादी बन गया। यही कारण है कि शोषित जातियों का यह सुविधाभोगी वर्ग शोषित जातियों की मुक्ति हेतु संघर्ष का नेतृत्व करने में असमर्थ रहा। शोषित जातियों का सुविधाभोगी वर्ग मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था से लाभान्वित हो रहा है इसीलिए वह कभी भी मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के उन्मूलन का नेतृत्व नहीं कर सकता जबकि यही मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था शोषित वर्ग के शोषण का मूल कारण है।
शोषित जातियों के सुविधाभोगी वर्ग को मनुवादी वर्ग ने भी अपने लाभ के लिये ही अपने साथ मिला लिया है। महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा है कि:-
"शासक वर्ग शासित वर्ग के योग्यतम लोगों को जितना ही अधिक आत्मसात कर सकता है, उसका शासन उतना ही अधिक स्थायी और खतरनाक हो जाता है।"5
मनुवादी वर्ग भी इस सत्य को जानता है और इसीलिए  उसने शोषित वर्ग के सुविधाभोगी वर्ग को अपना सहयोगी बना है। मनुवादी जानते हैं कि यदि शोषित वर्ग के बुद्धिजीवी वर्ग को ही शोषित वर्ग का शोषण करने में अपना सहयोगी बना लिया जाए तो शोषित वर्ग कभी भी कोई विद्रोह या क्रान्ति नहीं कर पायेगा। यही कारण है कि शोषित जातियों पर प्रतिदिन मनुवादी लोग अत्याचार करते रहते हैं परन्तु शोषित जातियां कोई विद्रोह नहीं कर पातीं। जिस प्रकार मस्तिष्क के अभाव में शरीर बेकार हो जाता है उसी प्रकार शोषित वर्ग के ईमानदार और दृढ़ निश्चयी बुद्धिजीवी लोगों के अभाव में शोषित वर्ग अंतहीन दासता का उन्मूलन करने में असमर्थ हो जाता है।
यही सुविधाभोगी वर्ग टुकडखोरों या चमचों को जन्म देता है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि शोषितों की मुक्ति हेतु मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के उन्मूलन के लिये किये जाने वाले संघर्ष में शोषितों को मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के साथ ही साथ शोषित वर्ग के ही इस सुविधाभोगी वर्ग से भी लड़ना पड़ेगा। इसलिये यदि शोषितों को अपने मुक्तिसंग्राम में सफल होना है तो उसे अपने शत्रुओं की स्पष्ट पहचान होना आवश्यक है। यहां यह स्पष्टीकरण भी आवश्यक है कि इस लेख में शोषित जातियों के सुविधाभोगी वर्ग की वर्गीय प्रवृत्ति और उसकी मानसिकता की विवेचना की गई है इसलिए इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है कि इसी सुविधाभोगी वर्ग से ही कुछ लोग यद्यपि अत्यंत अल्प संख्या में, शोषितों की मुक्ति हेतु ईमानदारीपूर्वक कार्य कर रहे हैं।
-------------------------------मैत्रेय
सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.       मूकनायक, प्रथम संपादकीय दिनांक 31 जनवरी 1920, बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर,
डॉ0 अम्बेडकर के प्रेरक भाषण, भाग-1, अनुवाद और संकलन- उपासक विनय कुमार वासनिक, प्रथम संस्करण- 2014, पृष्ठ- 13, सम्यक प्रकाशन,
और,
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 19, Edition 2005, Page- 2,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
2.       जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर,
बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 85, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 63,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
3.       दिनांक 18 मार्च 1956 को आगरा, उत्तर प्रदेश में बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिए गए भाषण का अंश,
डॉ0 अम्बेडकर के प्रेरक भाषण,भाग-1, अनुवाद एवं संकलन- उपासक विनय कुमार वासनिक, प्रथम संस्करण-2014, पृष्ठ- 132, सम्यक प्रकाशन।
4.       हिन्दी अनुवाद उपरोक्त लेख के लेखक द्वारा, A Contribution to the Critique of Political Economy (राजनीतिक अर्थशास्त्र की समालोचना में एक योगदान), कार्ल मार्क्स, प्रथम अंग्रेजी संस्करण- 2010, पृष्ठ- 26, प्रकाशक:- राहुल फाउंडेशन, लखनऊ।
5.       पूंजी खण्ड- 3 (Capital Volume 3), कार्ल मार्क्स, संपादक- फ्रेडरिक एंगेल्स, हिन्दी द्वितीय संस्करण 1988, पृष्ठ- 527, प्रगति प्रकाशन मॉस्को, सोवियत संघ (रूस)