Saturday, March 2, 2019

ढोंगी तथाकथित साम्यवादी


यदि कोई भारतीय विचारक , राजनीतिज्ञ या तथाकथित समाज सुधारक समानता, स्वतंत्रता और शोषितों के उत्थान की बात करता है लेकिन जाति व्यवस्था के उन्मूलन की चर्चा भी नहीं करता , तो वह शोषितों का उत्थान करने का केवल ढोंग कर है और ऐसा ढोंग वह शोषित वर्ग के आक्रोश को समाप्त करने के लिए करता है जिससे मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था की रक्षा की जा सके। ऐसे ही लोगों में से कुछ लोग स्वयं को साम्यवादी कहते हैं। परन्तु वास्तव में ऐसे लोग मनुवादी- पूंजीवादी वर्ग के तलवे चाटने वाले कुत्ते होते हैं। उनके द्वारा समानता की बातें करना केवल छलावा है। वर्तमान समय में भारत की तथाकथित साम्यवादी पार्टियां भी ऐसा ही ढोंग कर रही हैं। भारत में वर्ष 1925 में पहली साम्यवादी पार्टी श्री एम0 एन0 राय द्वारा गठित की गई थी। तब से आज तक लगभग 93 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और इन वर्षों में भारत में कुकुरमुत्तों की तरह साम्यवादी पार्टियां उत्पन्न हो चुकी हैं। लेकिन जब हम वर्तमान समाज में व्याप्त वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, अत्याचार, शोषण, अन्याय, असमानता, रूढ़िवाद आदि तथा इन तथाकथित साम्यवादी पार्टियों के कार्यकलापों का विश्लेषण करते हैं तब इन ढोंगी तथाकथित साम्यवादी पार्टियों की पोल खुल जाती है। मनुवाद जनित जाति व्यवस्था के कारण शोषित वर्ग भी हजारों जातियों में विभक्त है। इस जाति व्यवस्था की विशेषता श्रेणीगत असमानता है। श्रेणीगत असमानता के कारण विभिन्न जातियों में अन्य जातियों के प्रति ऊँच-नीच की भावना व्याप्त रहती है। इसलिए जब तक जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जाएगा तब तक किसी प्रकार की एकता, समानता और शोषण के अंत की बात करना शोषित वर्ग के साथ धोखाधड़ी है।
भारत के तथाकथित साम्यवादी लोग जाति व्यवस्था के उन्मूलन की बात ही नहीं करते लेकिन समानता लाने की डींगें हांकते रहते हैं। यह तथ्य उनके ढोंग को प्रकट कर देता है। इन तथाकथित साम्यवादियों के इस आचरण का कारण यह है कि भारत में आज तक निर्मित समस्त तथाकथित साम्यवादी पार्टियों का नियंत्रण सदैव उसी मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के हाथों में रहा जो इस शोषक व्यवस्था से लाभान्वित हो रहे हैं। वास्तव में यह ढोंगी हैं और यह लोग साम्यवाद का मुखौटा लगाकर शोषितों को ठग रहे हैं। साम्यवाद की आड़ में मनुवाद और पूँजीवाद का प्रचार-प्रसार करना ही इन लोगों का मुख्य उद्देश्य हैं। इन ढोंगियों के कारण ही महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स और महान क्रान्तिकारी व्लादिमीर इलिच लेनिन की विचारधारा को भारत में गहरा आघात पहुँच रहा है। मार्क्स और लेनिन के विचारों से प्रभावित होकर भारत की शोषित जातियां विद्रोह ना कर दें इसलिए इन मनुवादियों ने साम्यवाद का मुखौटा लगाकर साम्यवाद को विकृत करना आरम्भ कर दिया। यह मनुवादियों की कोई नयी चाल नहीं है बल्कि प्राचीन काल में जब गौतम बुद्ध ने अपनी विचारधारा से ब्राह्मणवादी व्यवस्था या मनुवादी व्यवस्था को क्षति पहुंचाना आरम्भ किया तो ये मनुवादी लोग बौद्ध धम्म और संघ में सम्मिलित हो गए तथा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात इन मनुवादियों ने बुद्ध धम्म की शिक्षाओं को विकृत करके उसमें ब्राह्मणवाद या मनुवाद को मिश्रित करना आरम्भ कर दिया। यह ढोंगी साम्यवादी शोषित वर्ग के महान उद्धारक बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का प्रत्येक स्तर पर घोर विरोध करते रहे। जबकि बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के विचार शोषित वर्ग की सामजिक, आर्थिक और राजनीतिक उन्नति करके एक शोषणमुक्त और समतामूलक समाज का निर्माण करने के लिए ही हैं। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की विचारधारा का सार जाति व्यवस्था का उन्मूलन करके सामाजिक और आर्थिक शोषण को समाप्त करना है। इस हेतु उन्होंने शोषित जातियों को संगठित होकर सत्ता प्राप्त करने के लिए कहा क्योंकि राजनीतिक सत्ता प्राप्त करके ही समाज में समानता लायी जा सकती है और शोषण को समाप्त किया जा सकता है। परन्तु तथाकथित साम्यवादी ढोंगी लोग जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रश्न को स्पर्श किये बिना ही समाज में एकता लाकर क्रान्ति करने का झूठा स्वप्न दिखाते हैं। जबकि यह लोग जानते हैं कि जाति व्यवस्था को समाप्त किये बिना ये लोग शोषित जनता को संगठित नहीं कर सकते। एक तथाकथित उच्च जाति का श्रमिक भी एक अनुसूचित जाति के श्रमिक से छुआछूत मानता है और उससे जाति व्यवस्था के अनुसार व्यवहार करता है। ऐसी स्थिति में ये ढोंगी तथाकथित साम्यवादी लोग जाति व्यवस्था का उन्मूलन किये बिना कैसे शोषित जनता में एकता उत्पन्न कर सकते हैं? यह असंभव है। परन्तु यह तथ्य ढोंगी साम्यवादी लोग भी जानते हैं और जानबूझकर यह लोग इस गलत तथ्य का प्रचार करते है जिससे यह लोग शोषित जातियों को भ्रमित कर सकें।
तथाकथित साम्यवादियों की इसी कपटता और उनकी सैद्धान्तिक गलती को प्रकट करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा है:-
"जो श्रमिक नेता हम पर दोषारोपण करते हैं निसन्देह रूप से भ्रमित हैं। उन्होंने कार्ल मार्क्स को पढ़ा है कि केवल दो ही वर्ग हो सकते हैं- स्वामी और श्रमिक और मार्क्स को पढ़कर वे सीधे तरीके से यह मान लेते हैं कि भारत में भी केवल स्वामी और श्रमिक ही हैं और पूंजीवाद के उन्मूलन के कार्यक्रम की ओर बढ़ जाते हैं। स्पष्ट रूप से यहां दो गलतियां हैं। एक गलती यह है कि जो केवल संभाव्य या आदर्श है उसे यथार्थ समझ लेना। मार्क्स ने कभी भी ऐसा जड़ मत व्यक्त नहीं किया कि समाज में केवल दो ही निश्चित वर्ग होते हैं यानि स्वामी और श्रमिक। वस्तुतः ऐसा कथन असत्य है और इसलिए इस मत की नींव पर कार्य करना खतरनाक है क्योंकि इसमें सफलता मिलना असम्भव है। यह उसी तरह असत्य होगा जैसे कि एक आर्थिक मानव या विवेकशील मानव या तार्किक मानव एक तथ्य है जो सभी वर्गों में पाए जाते हैं। अर्थशास्त्री सदैव विशेष सावधानी रखता है जब कभी वो अपने निष्कर्ष निकालने के लिए आर्थिक मानव को एक आधारभूत तथ्य के रूप में सामने रखता है कि- आर्थिक मानव का अस्तित्व केवल तभी हो सकता है यदि अन्य बातें समान हों। श्रमिक नेता इस सावधानी कि 'अन्य बातें समान हों' को भूल चुके हैं। यूरोप के लिये भी यह मान लेना गलत होगा कि मार्क्स ने जो कहा वो सत्य कहा था। "क्या जर्मनी में निर्धन और दमित व्यक्ति हैं? क्या फ्रांस में लुटे और बर्बाद शिल्पकार हैं? जबकि, वे एक प्रजाति, एक राष्ट्र, एक सम्प्रदाय, एक भूत, एक वर्तमान और एक भविष्य से सम्बंध रखते हैं। उन्हें संगठित करो।" यह प्रबोधन मार्क्स के समय में ही दिया गया था। क्या जर्मनी का निर्धन और दमित व्यक्ति फ्रांस के लुटे और बर्बाद शिल्पकार के साथ संगठित हो चुका है? 100 वर्ष बाद भी वे संगठित होना नहीं सीख पाए और पिछला युद्ध उन्होंने निर्दयी शत्रुओं की तरह लड़ा। यह भारत के सन्दर्भ में भी निश्चित ही गलत होगा। भारत में बिल्कुल स्पष्ट विभाजन नहीं पाया जाता। सभी श्रमिक एक हैं, एक वर्ग बनाते हैं यह एक आदर्श है जिसे प्राप्त करना है और यह एक बड़ी गलती होती कि इसे एक तथ्य मान लिया जाए। हम श्रमिकों की श्रेणियों को संगठित कैसे करेंगे? हम श्रमिकों के बीच एकता कैसे लाएंगे? श्रमिकों के एक समूह को श्रमिकों के अन्य समूहों का शोषण करने की अनुमति देने से यह नहीं होगा। उत्पीड़ित समूह को संगठित होने से रोक कर भी यह नहीं होगा। ऐसे ही शोषित समूह को अपने ऊपर किये जा रहे अन्याय के विरुद्ध लड़ने से रोकने से भी यह नहीं होगा। एकता स्थापित करने का सही मार्ग है कि उन कारणों का उन्मूलन किया जाए जो एक श्रमिक को प्रजाति और धर्म के आधार पर दूसरे श्रमिक का घोर विरोधी बनाते हैं। एकता स्थापित करने का सही मार्ग है कि श्रमिक को यह बताया जाए कि वह उन अधिकारों की मांग नहीं कर सकता जिन अधिकारों को वह अन्य श्रमिकों को देने के लिये स्वयं ही तैयार नहीं है। एकता स्थापित करने का सही मार्ग है कि श्रमिक को बताया जाये कि ये सामाजिक अन्तर जो अन्यायपूर्ण भेदभाव का परिणाम है, सैद्धान्तिक रूप से गलत हैं और श्रमिकों की एकता के लिये हानिकारक हैं। अन्य शब्दों में हमें समस्त श्रमिकों की एकता के लिये असमानता के जनक ब्राह्मणवाद को जड़ से उखाड़ना होगा। परन्तु ऐसा श्रमिक नेता कहाँ है जो श्रमिकों के बीच यह कर चुका हो? मैं पूंजीवाद के विरोध में जोशीले भाषण देने वाले श्रमिक नेताओं को सुन चुका हूँ। परन्तु मैंने श्रमिकों के बीच में ब्राह्मणवाद के विरोध में बोलने वाला एक भी श्रमिक नेता कभी नहीं सुना। इसके विपरीत इस विषय पर उनकी चुप्पी सन्देह पैदा करती है। जबकि उनकी यह चुप्पी उनके इस विश्वास के कारण है कि श्रमिकों के संगठन और एकता से ब्राह्मणवाद का कुछ लेना-देना नहीं है, या यह इस कारण है कि वे इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि ब्राह्मणवाद श्रमिकों के असंगठन में बहुत बड़ा कारक है, या यह उनकी शुद्ध अवसरवादिता के कारण है जो श्रमिकों का नेतृत्व करने की स्थिति को प्राप्त करने और ऐसा कुछ भी नहीं कहने, जिससे श्रमिकों की भावनाओं को ठेस पहुंचे में विश्वास करती है। मैं इसकी जांच करना नहीं रोक सकता। परन्तु मैं कहना चाहता हूं कि यदि श्रमिकों के असंगठन का मूल कारण ब्राह्मणवाद को स्वीकार किया जाता है तो श्रमिकों के बीच से उसे समाप्त करने के लिए गम्भीर प्रयत्न करने चाहिए। इसकी उपेक्षा करने या इसके बारे में चुप रहने से यह संक्रमण नहीं जाएगा। निश्चित रूप से इसके विषय में जानना होगा और इसे खोदकर उखाड़ना होगा। तभी और केवल तभी श्रमिकों की एकता का मार्ग सुरक्षित बनेगा।"1
स्पष्ट है कि तथाकथित साम्यवादी ढोंगी लोग साम्यवाद की ठेकेदारी कर रहे हैं। वर्तमान में भारत में जितनी भी साम्यवादी पार्टियां हैं वे सभी पूंजीपतियों के धन से चल रही हैं और पूंजीपतियों ने इन पार्टियों को इसीलिये बना रखा है कि यह पार्टियां शोषित वर्ग को भ्रम में डाले रहें तथा साम्यवाद को विकृत करके शोषित वर्ग के आक्रोश से मनुवादी-पूँजीवादी व्यवस्था की रक्षा करते रहें। वास्तव में यह उसी तरह है जैसे कि जो कुत्ता अपने मालिक के फेंके टुकड़ो पर पल रहा हो वो अपने मालिक को कभी नहीं काटता। ऐसे लोग विभिन्न 'ट्रेड यूनियनों' में भी भरे हुए हैं, जो केवल अपने नाम के आगे 'कामरेड' लिखने को लालायित रहते है जबकि ये लोग घोर मनुवादी-पूंजीवादी होते हैं। ये ढोंगी लोग केवल शोषित वर्ग के आक्रोश को समाप्त करने वाले 'सेफ्टी वाल्व' का कार्य करते हैं।
आजकल ये लोग एक और षड़यंत्र रच रहे हैं कि ये लोग बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर शोषित जातियों को भ्रम में डालने का प्रयास कर रहे है जिससे ये लोग शोषित जातियों के लोगों को भ्रमित करके लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के चुनावों में उनके मत प्राप्त कर सकें। इसके लिए मनुवादी-पूंजीवादी दलाल मीडिया की सहायता से ये लोग 'नायक' (HERO) पैदा कर रहे हैं। ऐसा ही निकट समय में निर्मित 'नायक' (HERO) 'कन्हैया' है। यह 'कन्हैया' नामक नायक केवल फ़िल्मी 'डायलॉगबाजी' करता है। लेकिन मनुवादियों द्वारा शोषित जातियों पर प्रतिदिन किये जा रहे अत्याचारों पर मौन धारण किये रहता है, यह जातिवाद पर गूढ़ और गोल-मोल भाषण देता है लेकिन जाति व्यवस्था तथा वर्ण व्यवस्था का उन्मूलन करने पर चुप्पी लगाए रहता है, यह बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का नाम लेता है लेकिन उनके समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण करने वाले विचारों पर एक शब्द नहीं बोलता। तथाकथित साम्यवादियों की असलियत का वर्णन करते हुए 'बिहार लेनिन' उपनाम से विख्यात श्री जगदेव प्रसाद के कहा था कि:-
"भारत में कम्युनिज्म के दुश्मन ही कम्युनिस्ट हैं- लेकिन हिन्दुस्तान में जो कम्युनिज्म के दुश्मन हैं वही कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं। हिन्दुस्तानी जार (राजा) और कुलक (जमींदार) कम्युनिस्ट पार्टी के महंत हैं। डांगे (श्रीपाद अमृत डांगे), नम्बूदरीपाद (0एम0एस0 नम्बूदरीपाद), ज्योति बसु और अन्य चोटी के कम्युनिस्ट नेता हिन्दुस्तानी जार (राजा) और कुलक (जमींदार) हैं। ये लोग सिर्फ द्विज (सवर्ण, मनुवादी) हैं बल्कि इनमें से कुछ लखपति और करोड़पति भी हैं। ये कभी सर्वहारा (शोषित) के दोस्त नहीं हो सकते। मार्क्स-लेनिन आज हिन्दुस्तान में होते तो तमाम कम्युनिस्ट नेताओं को सर्वहारा या शोषित का दुश्मन करार देते।
कम्युनिस्ट पार्टी (दक्षिणपंथी और वामपंथी) का नेतृत्व निछक्का (पूरी तरह से) द्विजों (सवर्णों, मनुवादियों) का नेतृत्व है। रूस वाले अमेरिका को साम्राज्यवादी मानते हैं, लेकिन हिन्दुस्तान में साम्राज्यवादी तो यहां के दस प्रतिशत द्विज (सवर्ण, मनुवादी) हैं, जिसने नब्बे प्रतिशत शोषितों को अपना गुलाम बनाकर रखा है। दुर्नीतिवश हिन्दुस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी इन्हीं साम्राज्यवादियों की कठपुतली है। इनसे सर्वहारा क्रान्ति की उम्मीद करना अव्वल दर्जे की बेवकूफी होगी। कहीं कुत्ते मांस की रखवाली करते हैं!"2
अमेरिकी पत्रकार श्री सेलिंग एस0 हैरीसन ने दिनांकों 21 और 28 फरवरी तथा 9 अक्टूबर 1953 को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का साक्षात्कार लिया था जिसमें साम्यवादियों पर टिप्पणी करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा कि:-
"साम्यवादी पार्टी वास्तव में कुछ ब्राह्मण लड़कों- डांगे और अन्य, के हाथों में थी। वे मराठा समुदाय और अनुसूचित जातियों को प्रभावित करने का प्रयत्न कर चुके हैं। परन्तु वे महाराष्ट्र में कोई स्थान नहीं बना पाए। क्यों? क्योंकि वे अधिकांशतः ब्राह्मण लड़कों का झुंड है। रूसियों ने भारत में साम्यवादी आंदोलन की जिम्मेदारी उनको सौंपकर बहुत बड़ी गलती की है। या तो रूसी लोग भारत में साम्यवाद की स्थापना नहीं चाहते थे- वे केवल ढोल पीटने वाले लड़के चाहते थे- या वे समझ नहीं पाए।"3
इसी प्रकार शहीद क्रान्तिकारी रोहित वेमुला ने इन तथाकथित साम्यवादी ठगों की पोल खोलते हुए कहा था कि:-
"ना वामपंथी (साम्यवादी), ना उदारवादी वामपंथी (उदारवादी साम्यवादी) और ना उग्र वामपंथी (उग्र साम्यवादी) लोग भारत के शोषितों के साथ खड़े हैं!"
अतः शोषित वर्ग को इन ढोंगियों अर्थात तथाकथित साम्यवादियों के भ्रमजाल में नहीं फंसना चाहिये तथा बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की शिक्षाओं को ग्रहण करके शोषणमुक्त और समतामूलक समाज के निर्माण हेतु संघर्ष करना चाहिये।
---------- मैत्रेय
 ---------------------------------------
सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.       Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 17, Part 3, Edition- 4 October 2003, Page- 179-180,  Punisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
2.       जगदेव प्रसाद वांङमय, सम्पादक एवं लेखक- डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद सिंह, शशिकला, प्रथम संस्करण- 2011, प्रकाशक- सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ- 18.
3.       Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 17 Part-1, First Edition 2003, Reprint 2014, Page- 425, Publisher:- Dr. Ambedkar Foundation, Ministry of Social Justice and Empowerment, Government of India.

No comments:

Post a Comment