Thursday, March 14, 2019

सुविधाभोगी वर्ग ने विश्वासघात क्यों किया? PART 1

सर्वप्रथम शोषितों से सम्बंधित निम्नलिखित कुछ घटनाओं और आंकड़ों का अध्ययन किया जाए:-
दिनांक 11 जुलाई 1997 को रमाबाई अम्बेडकर नगर, घाटकोपर, मुम्बई, महाराष्ट्र में मनुवादी पुलिस ने अनुसूचित जातियों के 11 व्यक्तियों को गोली से उड़ा दिया। बिहार राज्य के अरवल जिले के गांव में 1 दिसम्बर 1997 को मनुवादी वर्ग के लोगों द्वारा अनुसूचित जातियों के 58 लोगों का जनसंहार किया गया, जिनमें 27 महिलायें तथा 16 बच्चे भी थे, बिहार राज्य के जनपद भोजपुर के गांव बथानी टोला में 11 जुलाई 1996 को मनुवादी वर्ग के लोगों द्वारा अनुसूचित जातियों के 21 लोगों, जिनमें 11 महिलाएं, 6 बच्चे तथा 3 नवजात शिशु भी थे, का जनसंहार किया गया, महाराष्ट्र राज्य के भंडारा जनपद के खेरलांजी गांव में मनुवादी वर्ग के लोगों द्वारा अनुसूचित जातियों के चार व्यक्तियों की हत्या तथा उनके घर की महिलाओं को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र करके घुमाया गया तथा इसी जैसे अनगिनत जनसंहारों, बलात्कार सामूहिक बलात्कार के दोषी मनुवादी आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। भंवरी देवी सामूहिक बलात्कार मामला, एम0 मीना बलात्कार मामला, आर0 चित्रा बलात्कार मामला, मथुरा सामूहिक बलात्कार मामला, सुमन रानी बलात्कार मामला आदि मामलों में मनुवादी तथाकथित न्यायाधीशों द्वारा घोर पक्षपात करते हुए दोषियों को मुक्त कर दिया गया क्योंकि दोषी मनुवादी वर्ग के सदस्य थे।
जबकि भारतीय संविधान के अनुसार लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिये कुल 84 सीटें आरक्षित हैं। वर्ष 2014 में हुये लोकसभा के निर्वाचनों में भारतीय जनता पार्टी को अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित सीटों में कुल 42 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। जबकि वर्तमान समय मे भाजपा की कुल 271 सीटें हैं। इस प्रकार कुल 271 सीटों में से अनुसूचित जातियों की सीटें 42 हैं जो कि 15.50 प्रतिशत है। जबकि देखा जाए तो कुल 84 सीटों का 50 प्रतिशत अर्थात 42 सीटें भाजपा को मिली। इस प्रकार दोनों ही दृष्टियों से भाजपा को मिली सीटों में अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित सीटों का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश विधान सभा में अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित सीटों की कुल संख्या 86 है। इन 86 सीटों में से भाजपा के हिस्से में 66 सीटें हैं। इसी के साथ भाजपा के सहयोगी दलों अपना दल (सोनेलाल) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को मिली क्रमशः 3 2 सीटों को मिलाने पर यह स्पष्ट है कि अनुसूचित जातियों के 71 विधायक राज्य में वर्तमान में सत्ता पक्ष में हैं। जो कि भाजपा की वर्तमान में कुल सीटों अर्थात 311 में से 66 या 21.15 प्रतिशत है।
इस प्रकार केंद्र सरकार में 42 सांसद और उत्तर प्रदेश सरकार में 71 विधायक अनुसूचित जातियों के हैं। परन्तु इन 113 (42+71) लोगों को क्या किसी ने कभी अनुसूचित जातियों पर प्रतिदिन हो रहे अत्याचारों के विरोध में बोलते हुए देखा या सुना है? ऐसा क्यों है कि अनुसूचित जातियों के इतने अधिक सांसद और विधायक होने पर भी अनुसूचित जातियों पर मनुवादी अत्याचारों में वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखित संविधान लागू होने के परिणामस्वरूप शोषित जातियों के कई लोग उच्च शिक्षा, सरकारी नौकरियां,  उच्च सरकारी पदों आदि को प्राप्त करने में सफल हुए हैं और निम्न आर्थिक स्थिति से ऊपर उठ गए हैं। इस प्रकार शोषित जातियों में एक समूह निर्मित हो गया है जिसे संवैधानिक अधिकारों और अपनी आर्थिक स्थिति के कारण अधिकांशतः जातीय शोषण और भेदभाव का अनुभव नहीं करना पड़ता है। यद्यपि यह सत्य है कि मनुवादी समाज में किसी व्यक्ति की जाति उसके मरने के बाद भी नहीं बदलती। जो जिस जाति में जन्म लेता है उसी में मर जाता है।
जाति व्यवस्था के कारण जनित भेदभाव और पृथकता की भावना का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि:-
"हिन्दू धर्म में व्याप्त भेदभाव जितना अनुपम है, उतना ही निंदनीय भी है, क्योंकि भेदभावपूर्ण आचरण से हिन्दू धर्म का जो स्वरूप बनता है, वह हिन्दू धर्म की पवित्रता को शोभा नहीं देता। हिन्दू धर्म में जो जातियां हैं, वे ऊंच-नीच की भावना से प्रेरित होती हैं। हिन्दू समाज का स्वरूप एक मीनार की तरह है, जहां एक जाति उस मीनार की मंजिल के रूप में है। लेकिन एक बात यहां याद रखनी चाहिए कि इस मीनार की मंजिलों के बीच कोई सीढ़ी नहीं है। इसलिये एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाने का मार्ग नहीं मिलता है। जिस मंजिल में उसका जन्म हुआ, उसी में उसे मरना है। नीचे की मंजिल का मनुष्य कितना भी योग्य क्यों हो; उसके लिये ऊपर की मंजिल पर प्रवेश नहीं है तथा ऊपर की मंजिल का मनुष्य कितना भी अयोग्य क्यों हो, उसे नीचे की मंजिल पाए भेजने की शक्ति किसी में नहीं है।"1
यहीं पर मनुवादियों के इस व्यंग्य रूपी आरोप का भी उत्तर दे दिया जाए जो वे प्रायः शोषित जातियों के उन व्यक्तियों पर लगाते हैं जो किसी उच्च पद या आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत ठीक स्थिति में होते हैं, मनुवादी कहते हैं शोषित जाति का अमुक व्यक्ति अच्छी आर्थिक स्थिति में होने के बाद भी 'दलित' अर्थात शोषित और दमित ही है। तो इसका उत्तर बाबा साहेब के उपरोक्त उध्दरण में ही मिल जाता है। वास्तव में मनुवाद जनित वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था की यही विडम्बना है कि जो जिस जाति में जन्म लेता है उसी में मरता भी है। व्यक्ति की योग्यता, अयोग्यता, पद, प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति से उसकी जाति परिवर्तित नहीं होती। इसलिये यह 'मनुवादी व्यवस्था' के कारण ही सम्भव है कि शोषित जातियों के व्यक्ति चाहे जितने योग्य हों, चाहे जितनी भी अच्छी आर्थिक स्थिति में हों, चाहे जितने भी उच्च पद पर पहुंच जाएं परन्तु तब भी वो 'दलित' ही रहते हैं। यही कारण है कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचने के बाद भी शोषित जाति का व्यक्ति 'दलित' ही रहता है। यही है मनुवादी व्यवस्था की त्रासदी।
वास्तव में अनुसूचित जातियों का अतिसूक्ष्म अंश ही संवैधानिक प्रावधानों और संवैधानिक आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी सेवाओं में पहुंच पाया है। जबकि अनुसूचित जातियों के अधिकांश लोगों के पास तो भूमि है, ही नौकरियां हैं तथा ही उनके पास कोई व्यापार-व्यवसाय करने के लिए पूँजी है। वे केवल श्रमिकों के रूप में दैनिक मजदूरी करते हैं। इसलिए देश की कुल निर्धन जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग अनुसूचित जातियों से ही है।
यह स्वतः सिद्ध तथ्य है कि व्यवस्था परिवर्तन और शोषितों द्वारा अपनी मुक्ति के लिये सर्वप्रथम शर्त यह है कि शोषित लोगों में एक ईमानदार और परिश्रमी प्रबुद्ध वर्ग का निर्माण हो चुका हो जो शोषितों को बौद्धिक मार्गदर्शन प्रदान करने में सक्षम हो। शोषित जातियों के जो लोग संवैधानिक प्रावधानों का लाभ लेकर शिक्षित बनने और अपनी आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी करने में सफल हो गए हैं उन लोगों के समूह से ही यह अपेक्षा की जाती है कि वो शोषित जातियों के लोगों का मार्गदर्शन करेंगे और उनकी शोषण से मुक्ति के लिये संघर्ष करेंगे। क्योंकि अज्ञानता और उचित मार्गदर्शन के अभाव में कोई भी क्रान्ति सफल नहीं हो सकती। घोर मनुवादी अत्याचारों और शोषण सहने के बाद भी शोषित जातियां क्रान्ति क्यों नहीं कर पायीं इसका कारण बताते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि:-
"सामाजिक अन्याय के सम्बंध में कहीं से भी लिया गया कोई भी उदाहरण मनु के कानून के समक्ष फीका पड़ जाता है। अधिकांश जनता ने इन सामाजिक बुराईयों को क्यों सहन किया? विश्व के अन्य देशों में सामाजिक क्रान्तियाँ होती रही हैं। भारत में सामाजिक क्रान्तियाँ क्यों नहीं हुई, यह एक ऐसा प्रश्न है जो मुझे सदैव कष्ट देता रहा है। मैं इसका केवल एक ही उत्तर दे सकता हूँ और वह यह है कि चातुर्वर्ण्य की इस अधम व्यवस्था के कारण हिन्दुओं के निम्न वर्ग सीधी कार्यवाही करने में पूर्णतः अशक्त बन गए हैं। वे हथियार धारण नहीं कर सकते और हथियारों के बिना वे विद्रोह नहीं कर सकते थे। वे सभी हलवाहे थे या हलवाहे बना दिये गए थे और उन्हें हलों को तलवारों में बदलने की कभी अनुमति नहीं दी गयी। उनके पास संगीने नहीं थीं। इसलिये कोई भी व्यक्ति उन पर प्रभुत्व जमा लेता। चातुर्वर्ण्य के कारण वे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। वे अपनी मुक्ति का मार्ग नहीं सोच सके या ज्ञात नहीं कर सके। उन्हें सदैव दबाकर रखा गया। उन्हें अपने छुटकारे का तो रास्ता ही मालूम था और ही उनके पास साधन थे। उन्होंने अनन्त दासता से समझौता कर लिया और ऐसी नियति पर संतोष कर लिया, जिससे उन्हें कभी भी छुटकारा नहीं मिल सकता था। यह ठीक है कि यूरोप में भी शक्तिशाली व्यक्ति निर्बल व्यक्ति का शोषण करने में पीछे नहीं रहा। परन्तु वहां इतने शर्मनाक ढंग से निर्बल व्यक्ति का शोषण नहीं किया गया, जितना कि भारत में हिन्दुओं ने किया।"2
बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा शोषित जातियों को संवैधानिक आरक्षण का प्रावधान भी इसीलिए किया गया था कि शोषित जातियों में से जो लोग शिक्षित होकर आगे आएंगे वो ही लोग शोषित जातियों का नेतृत्व करेंगे और उनको शोषण से मुक्ति दिलाएंगे। परन्तु प्रश्न है कि क्या शोषित जातियों में निर्मित शिक्षित और आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति वाले वर्ग ने शोषित जातियों का उचित मार्गदर्शन किया? क्या सुविधाभोगी वर्ग ने शोषितों की मुक्ति हेतु संघर्ष किया?
वर्तमान स्थिति को देखकर कहा जा सकता है कि शोषित जातियों के सुविधाभोगी वर्ग के अधिकांश लोगों ने शोषित जातियों के अशिक्षित और निर्धन लोगों की मुक्ति हेतु कुछ नहीं किया और अपने ही स्वार्थों की पूर्ति में व्यस्त रहे। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने ऐसे ही लोगों का उल्लेख करते हुए कहा था कि:-
"मुझे पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया है। मुझे उम्मीद थी कि हमारे शिक्षित एवं उच्च शिक्षित लोग पढ़-लिख कर मेरे कार्य में हाथ बताएँगे। परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मैं देख रहा हूँ कि मेरे चारों तरफ पढ़े-लिखे क्लर्कों की भीड़ एकत्रित हो गई है जो सिर्फ अपना पेट पालने में लगी हुई है। मैंने आशा की थी कि शोषित शिक्षित लोग अपने दबे-कुचले भाईयों की सेवा करेंगे। पर इसका उलट ही मुझे यहां बाबुओं की भीड़ देखकर निराशा हुई है।"3
अब प्रश्न यह उठता है कि शोषित जातियों में जन्म लेने और बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के त्याग और संघर्ष के परिणामस्वरूप प्राप्त हुए संवैधानिक आरक्षण और अन्य अधिकारों के कारण शिक्षित होने, सरकारी नौकरी और उच्च पदों पर पहुंचने, सांसद और विधायक बनने के बावजूद भी यह सुविधाभोगी वर्ग शोषित वर्ग के अपने ही लोगों की मुक्ति हेतु कोई प्रयास क्यों नहीं करता है?

-----------------क्रमशः

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