Saturday, April 25, 2020

मनुवादी और साम्यवादी ठगों की धोखेबाजी


मनुवादी लोग सुबह-शाम शोषित जातियों को लोकसभा, राज्य विधान सभाओं, सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में संविधान प्रदत्त आरक्षण को पानी पी-पीकर कोसते रहते हैं और कहते हैं कि आरक्षण के कारण ये 'परम योग्य' लोग पिछड़ जाते है, जिससे देश का विकास प्रभावित हो रहा है इसलिये इस आरक्षण समाप्त कर देना चाहिये। परन्तु क्या ये मनुवादी लोग अपने दिए गए तर्कों के प्रति ईमानदार हैं? निम्नलिखित कुछ तथ्यों पर विचार करते हैं:-
(1) देश में सफाई कर्मचारियों में कोई भी मनुवादी व्यक्ति नहीं है।
(2) स्वच्छ भारत अभियान में ये मनुवादी लोग मनुवादी-पूंजीवादी दलाल मीडिया के फोटोग्राफों और वीडियो आदि में प्रायः झाड़ू पकड़े दिखाई देते हैं। लेकिन ये मनुवादी लोग कभी भी दुर्गन्धयुक्त और गंदगी से बजबजाते गटरों, सीवरों और नालियों की सफाई नहीं करते।
मनुवादी व्यवस्था द्वारा मनुवादियों ने सफाई का काम बलपूर्वक शोषित जातियों के मत्थे मढ़ दिया। इस व्यवस्था को समाप्त करके इन 'परम योग्य' मनुवादियों को इस काम में अपना हिस्सा प्राप्त करना चाहिये और अपनी योग्यता दिखानी चाहिये।
(3) सीमा पर शत्रु देश द्वारा और देश में आतंकवादियों, नक्सलवादियों, माओवादियों तथा अलगाववादियों द्वारा प्रायः सैनिकों की हत्या कर दी जाती है, लेकिन जब मृतक सैनिकों की नाम सूची जारी होती है उसमें मनुवादी व्यक्ति नहीं होते। जबकि सेना में 'आरक्षण' नहीं है। तो ये 'परम योग्य' लोग सेना में सिपाही (अधिकारी नहीं) बनने क्यों नहीं जाते?
सेना में जो मनुवादी लोग हैं भी, तो वो अधिकांशतः अधिकारियों की श्रेणी में हैं और इनकी तैनाती जोखिम वाली जगहों पर नहीं होती।
लेकिन ये मनुवादी लोग साम्प्रदायिक संगठनों में भरे हुए हैं और समाज के शोषित समूहों अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग, निर्धन मुसलमानों, शोषित जातियों की महिलाओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करते रहते हैं। ये मनुवादी 'वातानुकूलित कमरों' (Air-conditioned Rooms) में बैठकर घृणित राजनीति करते हैं और सबसे बड़े देशभक्त बनते हैं। ये अपने बच्चों को कभी भी सेना में सिपाही बनने नहीं भेजते। तब ये मनुवादी नहीं कहते कि सेना में 'आरक्षण' नहीं है इसलिये हम लोग अधिक से अधिक संख्या में सेना में भर्ती होंगे।
उपरोक्त तथ्यों पर विचार करने के बाद यह स्पष्ट है कि मनुवादियों और इनके मनुवादी संगठनों को देश की सुरक्षा से कुछ लेना-देना नहीं बल्कि इनका मूल उद्देश्य मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था की रक्षा करके समाज में मनुवादियों के वर्चस्व को बनाए रखना है। यही मनुवाद है। सामान्य सी बात है कि समाज में सभी लाभदायक जगहें, सभी लाभदायक पद ये मनुवादी हड़प लेना चाहते हैं और इसीलिए ये लोग शोषित जातियों को संविधान प्रदत्त आरक्षण को समाप्त करने के लिये आसमान सिर पर उठाये रहते हैं, लेकिन जोखिम वाली जगहों पर जाने में इनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है।
यहाँ यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि इस मुद्दे को इन मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठग भी नहीं उठाते। ये भारतीय साम्यवादी ठग 'श्रमिकों' और 'सर्वहारा (Proletariat)' की मुक्ति की बात करते हैं। लेकिन इन साम्यवादी ठगों से इनके 'सर्वहारा' के विषय में पूछा जाता है तो ये अपनी बगलें झाँकने लगते हैं। इनका आदर्श काल्पनिक सर्वहारा कारखानों में काम करता है, जाति व्यवस्था से बाहर रहता है, इनके बीच आंतरिक भेदभाव और मतभेद नहीं हैं तथा भारतीय समाज की संरचना का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन तथाकथित साम्यवादी ठगों के आदर्श काल्पनिक सर्वहारा में शोषित जातियों के सफाई कर्मचारी, सदियों से बंधुआ मजदूरी कर रहे शोषित जातियों के लोग, शोषित जातियों के भूमिहीन मजदूर, शोषित जातियों के मजदूर, सीमा पर मर रहे शोषित जातियों के सैनिक, आतंकवादियों और नक्सलवादियों-माओवादियों के हाथों मर रहे शोषित जातियों के सैनिक सम्मिलित नहीं हैं। जबकि ये सैनिक अत्यन्त निर्धन परिवारों से आते हैं।
तथाकथित साम्यवादी ठगों की शोषित जातियों के प्रति मानसिकता और इनके तथाकथित 'सर्वहारा' का वर्णन करते हुए मान्यवर श्री कांसीराम साहब ने कहा है कि:-
"कम्युनिस्ट तो अकालियों से भी बड़े ब्राह्मणवादी (मनुवादी) हैं। वे सर्वहारा की बात करते हैं, लेकिन किसी गरीब को नेता नहीं बनाते। दरियां बिछाने, झण्डे उठाने और नारे लगाने के लिए उन्होंने सर्वहारा लोगों को पकड़ा है। इलाहाबाद उपचुनाव में उन्होंने कहा था कि यह तो दिल्ली के तख्त की लड़ाई है, कांसीराम इधर क्यों आया है। इसके पास कोई घर-बार सम्पत्ति नहीं है तो यह दिल्ली के तख्त का दावेदार कैसे हो सकता है? वे तो मानते थे कि राजा साहब ही दिल्ली के तख्त के दावेदार हैं। उनके पास 8000 एकड़ से ज्यादा जमीन है, सामन्ती खानदान में पैदा हुए हैं। उद्योगपतियों का करोड़ों रुपया उनके साथ है एक इलेक्शन में करोड़ों रुपया लगा सकते हैं। प्रोलेटेरियत (सर्वहारा) वे उसी को कहते हैं जिसके पास कम से कम 8000 एकड़ जमीन हो। डिक्टेटरशिप ऑफ दि प्रोलेटेरियत यानि सत्ता ऐसे प्रोलेटेरियत के हाथ में होनी चाहिए, जैसे राजा साहब हैं।"1
इसके साथ ही यह भी कटु सत्य है कि आज तक देश में सफाई कार्य करते हुए जितने सफाई कर्मचारियों की मृत्यु हुई है उतनी तो आतंकवादियों की गोलियों से सैनिकों की भी मृत्यु नहीं हुई है। लेकिन ये बातें इन ढोंगी तथाकथित साम्यवादी ठगों के लिए कोई महत्व नहीं रखतीं। क्योंकि इनका उद्देश्य महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स और महान क्रान्तिकारी व्लादिमीर इलिच लेनिन की समतामूलक विचारधारा को साकार करना नहीं है बल्कि इन ढोंगी तथाकथित साम्यवादी ठगों का मूल उद्देश्य है मार्क्स और लेनिन के नाम पर साम्यवाद की ठेकेदारी करके शोषित वर्ग को भ्रमित करना जिससे ये ढोंगी तथाकथित साम्यवादी ठग मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध शोषित वर्ग के आक्रोश को गलत दिशा में मोड़कर सुरक्षित तरीके से ठंडा कर सकें। इस तरह ये ढोंगी तथाकथित साम्यवादी ठग मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिये 'सेफ्टी वाल्व (Safety Valve)' का काम कर रहे हैं। शोषित वर्ग को इन मनुवादियों और इनके सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठगों से सावधान रहने की आवश्यकता है। ये दोनों शोषित वर्ग को डसने के लिए तैयार हैं।
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सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.       संचेतना, अक्टूबर, 1989 में प्रकाशित साक्षात्कार, मा0 कांसीराम साहब के साक्षात्कार, सम्पादक- 0आर0 अकेला, संस्करण- 9 अक्टूबर 2011, प्रकाशक- आनन्द साहित्य सदन, सिद्धार्थ मार्ग, छावनी, अलीगढ़, पृष्ठ- 88.

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