Thursday, April 30, 2020

मनुवादी-पूंजीवादी मीडिया से सावधान


"मुझे संचार माध्यमों (Media) को नियन्त्रित करने दो और मैं किसी भी राष्ट्र को सुअरों के झुण्ड में परिवर्तित कर दूंगा।"
---------- जोसेफ गोबेल्स (नाजी प्रचार मंत्री)
नाजी तानाशाह एडोल्फ हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ गोबेल्स का उपरोक्त कथन कोई अतिश्योक्ति नहीं है बल्कि हिटलर का उद्भव ऐसे ही खतरनाक प्रचार का परिणाम था और सत्ता प्राप्ति के पश्चात नाजी शासन में संचार माध्यमों के दुरुपयोग के परिणामस्वरूप ही हिटलर की नाजी सरकार करोड़ों यहूदियों और अन्य लोगों का जनसंहार करने में सफल हुई। हिटलर ने मीडिया का उपयोग करके जनता की सोचने-समझने की क्षमता और स्वतंत्र चिंतन को इस सीमा तक विकृत कर दिया कि गैर-यहूदी जर्मनों को प्रत्येक यहूदी व्यक्ति अपना घोर शत्रु और अपनी निर्धनता सभी कष्टों का कारण प्रतीत होने लगा। हिटलर ने मीडिया का प्रयोग करके देश में यहूदियों के विरुध्द इस चरम सीमा तक घृणा का वातावरण बनाया कि जब हिटलर ने यहूदियों का जनसंहार करना आरम्भ किया तो गैर-यहूदी जर्मन जनता को लगा कि हिटलर एक महान कार्य कर रहा है और अब शीघ्र ही उनको निर्धनता और कष्टों से मुक्ति मिल जायेगी। परन्तु इतिहास ने सिध्द कर दिया है कि यह केवल हिटलर का षड़यंत्र था और इसने जर्मन जनता को अकल्पनीय विपत्ति में धकेल दिया। इस प्रकार हिटलर के कृत्य और जर्मन जनता की विपत्ति यह सिद्ध करते हैं कि मीडिया का दुरूपयोग किस सीमा तक जनसंहार और विनाश को जन्म देता है।
यह सत्य है कि प्रत्येक देश की सरकार मीडिया का प्रयोग अपने हित में करती हैं। यहां यह भी ज्ञात होना आवश्यक है कि मीडिया या संचार माध्यम के अंतर्गत प्रत्येक प्रकार का संचार माध्यम सम्मिलित है। इसमें समाचार पत्र, पुस्तकें, शैक्षिक पाठ्यक्रम की पुस्तकें, रेडियो, फ़िल्में, टेलीविजन के कार्यक्रम, समाचार चैनल, सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटक, तथाकथित सोशल मीडिया आदि सम्मिलित हैं। कहने का तात्पर्य है कि प्रत्येक वो साधन जो विचारों को लोगों के बीच पहुंचाने का माध्यम बनता है, मीडिया के अन्तर्गत आता है।
अब भारत की स्थिति पर विचार किया जाये। मनुवादी वर्ग ने प्राचीन काल से ही अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु और समाज में वर्चस्व बनाये रखने के लिये मीडिया पर कठोर नियंत्रण स्थापित कर दिया था। मनुवादी वर्ग ने शूद्रों और अस्पृश्यों आदि शोषितों द्वारा शिक्षा प्राप्त करने पर कठोर प्रतिबन्ध इसी कारण थोपा था। इसके फलस्वरूप मनुवादी वर्ग शोषित जातियों को मानसिक दास बनाने में सफल हो सका जिसके परिणामस्वरूप शोषित जातियों ने अपनी दासता को प्रबल विरोध किये बिना ही स्वीकार कर लिया। यदि हिटलर द्वारा मीडिया के दुरूपयोग और मनुवादियों द्वारा मीडिया के दुरूपयोग की तुलना की जाए तो निसंकोच यह स्वीकार करना पड़ेगा कि मनुवादियों ने मीडिया का दुरूपयोग हिटलर की अपेक्षा अत्यधिक कुशलता से किया। इसलिये मनुवादी वर्ग हजारों वर्षों से शोषितों को मानसिक और शारीरिक दास बनाये हुए हैं। इस तरह हिटलर ने शोर-शराबा मचाकर जितने लोगों का जनसंहार किया उससे कई गुना अधिक शोषितों का जनसंहार मनुवादियों ने चुपचाप कर दिया।
ब्रिटिश शासन काल में मनुवादियों की मीडिया पर पकड़ कुछ शिथिल हुयी और शोषित जातियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला। इस प्रकार शिक्षित होने और सबसे बढ़कर बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के संघर्षों के फलस्वरूप शोषित जातियों में चेतना आयी और उनको मानव अधिकार प्राप्त हुए। ब्रिटिश शासन के अंत के पश्चात मनुवादियों द्वारा किये जा रहे अपने शोषण के विरुध्द शोषित वर्ग के संघर्षों में वृद्धि हुई और अपने अधिकारों के प्रति उनमें जागरूकता आयी। इसी से भयभीत होकर मनुवादी लोग पुनः मीडिया पर कठोर नियंत्रण स्थापित करने के लिये प्रयासरत हैं। इसके लिए शिक्षा व्यवस्था को दूषित किया जा रहा है, शोषित वर्ग को अशिक्षित रखने के षड़यंत्र किये जा रहे हैं तथा शिक्षा को शोषित वर्ग की पहुँच से दूर किया जा रहा है, शोषितों के बीच मनुवादी विचारों को फैलाया जा रहा है, टेलीविजन, रेडियो, तथाकथित सोशल मीडिया, पुस्तकें, समाचार पत्र, समाचार चैनल आदि संचार माध्यमों पर नियंत्रण करके मनुवादी विचारों को फैलाया जा रहा है, शोषित जातियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की गलत छवि प्रचारित की जा रही है।
निष्कर्ष है कि शोषित वर्ग को मनुवादियों द्वारा मीडिया के दुरूपयोग के प्रति अत्यधिक सतर्क हो जाना चाहिये। मनुवादी-पूंजीवादी दलाल मीडिया की विश्वसनीयता शून्य है और यह शोषित वर्ग को धीमा जहर देकर उनकी तार्किक क्षमता, सोचने-समझने की शक्ति और स्वतंत्र चिंतन की क्षमता को विकृत करके उनको मानसिक दासता में जकड़ रही है जिससे उनकी शारीरिक दासता को स्थायी बनाया जा सके। इसलिये मनुवादी-पूंजीवादी मीडिया का बहिष्कार करने की अति आवश्यकता है। मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया के विरुध्द शोषितों की रणनीति यह होनी चाहिये कि शोषित वर्ग में जागरूकता फैला कर इस दलाल मीडिया की विश्वसनीयता समाप्त कर दें। इसके लिये मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया की असलियत का शोषितों में अधिक से अधिक प्रचार किया जाये। इसके साथ ही साथ प्रत्येक सम्भव छोटे-बढ़े साधनों को अपना कर शोषित वर्ग द्वारा स्वयं के मीडिया की रचना की जाए। वास्तव में शोषित वर्ग के सहयोग से निर्मित मीडिया द्वारा ही शोषित वर्ग मनुवादी-पूंजीवादी दलाल मीडिया का सामना कर सकता है। इसीलिए शोषित वर्ग के आर्थिक सहयोग द्वारा संचालित शोषित वर्ग के स्वतंत्र मीडिया पर विचार करते हुए महान क्रान्तिकारी व्लादिमीर इलिच लेनिन ने कहा है कि बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं। इसलिए शोषित वर्ग द्वारा स्थापित मीडिया से ही मनुवादी-पूंजीवादी दलाल मीडिया के षड्यंत्र को विफल किया जा सकता है। परन्तु इस कार्य को शोषित जातियों को ही सम्पन्न करना होगा। क्योंकि शोषित जातियाँ ही शोषित वर्ग का अधिकांश भाग है। शोषित जातियों में चेतना फैल रही है और वे संगठित हो रही हैं। जबकि शोषित वर्ग के अन्य घटक अभी मनुवादी मानसिकता की जकड़न में फंसे हुए हैं और मनुवादी मानसिकता के कारण ये घटक शोषित जातियों के साथ संगठित नहीं होते हैं। इसलिए शोषित वर्ग की मुक्ति का संघर्ष शोषित जातियों को ही लड़ना है। शोषित जातियों को ही मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करके समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण करना है। इस संघर्ष में 'अम्बेडकरवाद' ही शोषित जातियों का मार्गदर्शन कर सकता है।
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