मनुवादियों को प्रायः ही अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में संविधान प्रदत्त आरक्षण का विरोध करते हुए देखा जा सकता है। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग को यह संवैधानिक आरक्षण बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के संघर्षों के फलस्वरूप मिला है इसलिए इसको 'अम्बेडकरवादी आरक्षण' भी कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि ऐसा करने से मनुवादियों को मिल रहे 'मनुवादी आरक्षण' से इसे अलग करना सरल हो जाता है। 'मनुवादी आरक्षण और शोषित जातियां' नामक
लेख में मनुवादी आरक्षण के विषय में विस्तार से वर्णन किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मनुवादी लोग 'अम्बेडकरवादी आरक्षण' का विरोध करते हैं परन्तु स्वयं 'मनुवादी आरक्षण' का लाभ ले रहे हैं। इस प्रत्यक्ष विरोध के अलावा मनुवादी लोग षड़यंत्र द्वारा अम्बेडकरवादी आरक्षण में सेंध भी लगा रहे हैं और शोषित जातियों को अम्बेडकरवादी आरक्षण से वंचित भी कर रहे हैं।
मनुवादी व्यवस्था के कारण ब्राह्मण वर्ण स्वयं को सर्वोच्च मानता है तथा वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था का कट्टर समर्थक भी है। परन्तु मनुवादियों ने संविधान प्रदत्त आरक्षण में सेंध लगाने के लिये कुछ ब्राह्मण जातियों को षड़यंत्रपूर्वक अन्य पिछड़ा वर्ग सम्मिलित कर दिया है। सारणी-1 में
ब्राह्मण जातियों के नाम और उन राज्यों के नाम दिए गए हैं जिनमें उनको अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किया गया है।
सारणी-11
ब्राह्मण जातियाँ जो अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित हैं
क्रमांक
|
ब्राह्मण जाति
|
राज्य
|
1
|
दकोत या जोशी ब्राह्मण
|
राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली
|
2
|
महा ब्राह्मण
|
राजस्थान
|
3
|
स्थानिक ब्राह्मण
|
कर्नाटक
|
4
|
दैवद्यना ब्राह्मण
|
कर्नाटक
|
5
|
विश्वकर्मा या विश्व ब्राह्मण
|
-
|
6
|
बरुजीबी ब्राह्मण
|
बंगाल
|
7
|
राजापुर सारस्वत ब्राह्मण
|
केरल और कर्नाटक
|
8
|
स्थाथा श्री वैष्णव
|
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु
|
9
|
मराठी ब्राह्मण
|
केरल
|
10
|
बैरागी ब्राह्मण
|
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश
|
11
|
गोस्वामी ब्राह्मण
|
असोम, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़
|
12
|
मणिपुरी ब्राह्मण
|
असोम
|
इस प्रकार ये ब्राह्मण समाज में सर्वोच्च स्थान का दावा करते हैं और अपनी जाति पर घमण्ड भी करते हैं परन्तु शूद्र जातियों अर्थात अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों के हिस्से में सेंध लगाकर संवैधानिक आरक्षण का लाभ ले रहे हैं।
शोषित जातियों को अम्बेडकरवादी आरक्षण से वंचित करने का जो दूसरा तरीका मनुवादियों ने अपनाया है यह है कि तथाकथित न्यायपालिका में 'मनुवादी आरक्षण' से तथाकथित न्यायाधीश बने हुए मनुवादियों ने संविधान का उल्लंघन करते हुए संवैधानिक आरक्षण पर 'अधिकतम सीमा' का प्रतिबन्ध लगा दिया और साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग में तथाकथित 'क्रीमी लेयर' का प्रावधान ठूंस दिया।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) द्वारा 55वें और 61वें चक्र के सर्वेक्षणों द्वारा प्राप्त आंकड़ों को सम्मिलित करके निकाले गए निष्कर्षों के आधार पर कुल जनसंख्या का जाति और धर्म के अनुसार प्रतिशत वितरण सारणी-2 के अनुसार है:-
सारणी-22
विभिन्न धार्मिक
समूहों में जातीय समूहों की जनसंख्या का प्रतिशत वितरण
क्रमांक
|
धार्मिक
समूह
|
अनुसूचित
जातियां
|
अनुसूचित
जनजातियां
|
अन्य
पिछड़ा वर्ग
|
सामान्य
वर्ग/अन्य
|
1
|
हिन्दू
|
22.2%
|
5%
|
42.8%
|
26%
|
2
|
इस्लाम
|
0.0%
|
0.5%
|
39.2%
|
59.5%
|
3
|
ईसाई
|
0.0%
|
23.8%
|
41.3%
|
39.7%
|
4
|
सिख
|
19.1%
|
0.9%
|
2.4%
|
77.5%
|
5
|
जैन
|
0.0%
|
2.6%
|
3.0%
|
94.3%
|
6
|
बौद्ध
|
89.5%
|
7.4%
|
0.4%
|
2.7%
|
7
|
जोरोस्ट्रीयन
|
0.0%
|
15.9%
|
13.7%
|
70.4%
|
8
|
अन्य
|
2.6%
|
82.5%
|
6.25%
|
8.7%
|
|
कुल
|
19.7%
|
8.5%
|
41.1%
|
30.8%
|
2011 की जनगणना के आधार पर विभिन्न धार्मिक समूहों में जातीय समूहों की जनसंख्या सारणी-3 के अनुसार है:-
सारणी-33
विभिन्न धार्मिक
समूहों में जातीय समूहों की जनसंख्या का वितरण 2011 की जनगणना के
आधार पर (करोड़
में)
क्रमांक
|
धार्मिक
समूह
|
धार्मिक
समूहों की कुल जनसंख्या
|
अनुसूचित
जातियां
|
अनुसूचित
जनजातियां
|
अन्य
पिछड़ा वर्ग
|
सामान्य
वर्ग/अन्य
|
1
|
हिन्दू
|
96.63
|
21.45
|
04.83
|
41.36
|
25.12
|
2
|
इस्लाम
|
17.23
|
0
|
00.086
|
06.75
|
10.25
|
3
|
ईसाई
|
02.79
|
0
|
00.664
|
01.15
|
01.11
|
4
|
सिख
|
02.08
|
00.53
|
00.018
|
00.05
|
01.61
|
5
|
जैन
|
00.45
|
0
|
00.0135
|
00.0135
|
00.424
|
6
|
बौद्ध
|
00.85
|
00.76
|
00.0034
|
00.0034
|
00.023
|
7
|
जोरोस्ट्रीयन*
|
|
0
|
|
|
|
8
|
अन्य
|
00.90
|
00.02
|
00.743
|
00.0681
|
00.08
|
|
कुल
|
121.08
|
23.85
|
10.29
|
49.77
|
37.29
|
*जोरोस्ट्रीयन की कुल जनसंख्या मात्र 57264 है
सारणी 3 से स्पष्ट है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की कुल जनसंख्या 83.91 करोड़ है। जो देश की कुल जनसंख्या का 69.30 प्रतिशत हुआ। जबकि सामान्य श्रेणी की कुल जनसंख्या 37.29 करोड़ है। जिसमें से 25.12 करोड़
अर्थात 67.36 प्रतिशत जनसंख्या केवल हिन्दू सवर्ण जातियों की है।
जबकि केन्द्र सरकार की नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जातियों को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 7.5 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत संवैधानिक आरक्षण प्राप्त है। जो कुल मिलाकर 49.5 प्रतिशत हुआ। मनुवादी तथाकथित न्यायाधीशों के तुगलकी फरमान के अनुसार संवैधानिक आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत ही हो सकती है। यद्यपि विशेष परिस्थितियों में आरक्षण की यब सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो सकती है परन्तु इसकी भी समीक्षा उच्चतम न्यायालय में बैठे मनुवादी तथाकथित न्यायाधीश ही करेंगे। जिनके निर्णय सदैव शोषित जातियों के विपक्ष में ही आते हैं। इसी प्रकार विभिन्न राज्य सरकारें अपने राज्य की सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का प्रावधान करती हैं। लेकिन यहां भी विशेष परिस्थितियों को छोड़कर आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। इसी के साथ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्य के सामान्य श्रेणी में चयन को भी प्रतिबंधित कर दिया है। अर्थात अनुसूचित जातियों के सदस्य उनके लिये आरक्षित स्थानों में ही चुने जाएंगे भले ही प्रतियोगी परीक्षा में उनके अंक सामान्य श्रेणी के सदस्य से भी अधिक आये हों, यही
स्थिति अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग की भी है।
इस प्रकार मनुवादियों ने षड़यंत्र द्वारा 83.91 करोड़
लोगों अर्थात 69.30 प्रतिशत लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करते हुए उन्हें केवल 49.50 प्रतिशत आरक्षण में ठूंस दिया है। जबकि सामान्य श्रेणी के 37.29 करोड़
लोगों के लिये 50.50 प्रतिशत अघोषित आरक्षण का प्रावधान कर लिया है। इसी तरह मनुवादी न्यायपालिका द्वारा संविधान का उल्लंघन करते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए क्रीमी लेयर का प्रावधान करके मनुवादियों ने करोड़ों लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया है।
यह भी विचार योग्य प्रश्न है कि सामान्य श्रेणी के लिये 50.50 प्रतिशत अघोषित आरक्षण का लाभ कौन ले रहा है?
सारणी 3 से स्पष्ट है कि सामान्य श्रेणी के लगभग 37.29 करोड़
लोगों में से लगभग 25.12 करोड़
अर्थात 67.36 प्रतिशत लोग हिन्दू सवर्ण जातियों के हैं। जबकि 10.25 करोड़
अर्थात 27.49 प्रतिशत लोग इस्लाम की उच्च जातियों के हैं। इस प्रकार केवल सवर्ण हिन्दू और उच्च जातियों के मुसलमान मिलकर ही सामान्य श्रेणी के लगभग 94.85 प्रतिशत भाग का निर्माण करते हैं। अन्य धर्मों के सामान्य श्रेणी के लोग मिलकर लगभग 5 प्रतिशत भाग का ही निर्माण कर पाते हैं। परन्तु जब हम सरकारी सेवाओं और शिक्षण संस्थाओं में मुसलमानों की स्थिति पर विचार करते हैं तो सच्चर समिति की रिपोर्ट के आधार पर सारणी-4 के अनुसार सूचना प्राप्त होती है:-
सारणी-44
सरकारी सेवाओं में मुसलमानों की प्रतिशत स्थिति
क्रमांक
|
क्षेत्र/विभाग
|
मुसलमान कर्मियों का प्रतिशत
|
1
|
राज्य स्तरीय विभाग
|
6.3
|
2
|
रेल विभाग
|
4.5
|
3
|
बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक
|
2.2
|
4
|
सुरक्षा एजेंसियां
|
3.2
|
5
|
डाक विभाग
|
5.0
|
6
|
विश्वविद्यालय
|
4.7
|
|
उपरोक्त सभी विभाग सम्मिलित
|
4.9
|
7
|
सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम
|
7.2
|
8
|
आई0ए0एस0,आई0पी0एस0 व आई0एफ0एस0
|
3.2
|
इस प्रकार सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में मुसलमानों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में जो मुसलमान हैं उनमें अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य श्रेणी, दोनों समूहों से चयनित मुसलमान सम्मिलित हैं। इससे स्पष्ट है कि सामान्य श्रेणी को मिले 50.50 प्रतिशत अघोषित आरक्षण का सामान्य श्रेणी के मुसलमान पर्याप्त लाभ नहीं ले पाते हैं और यही स्थिति अन्य धार्मिक समूहों के सामान्य श्रेणी में आने वाले लोगों की भी स्थिति है। इस प्रकार सामान्य श्रेणी को मिले 50.50 प्रतिशत अघोषित आरक्षण का सम्पूर्ण लाभ केवल 25.12 करोड़
हिन्दू सवर्ण जातियों के लोग अर्थात मनुवादी लोग ही ले रहे हैं।
अतः मनुवादियों ने 83.91 करोड़
लोगों लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करते हुए उन्हें केवल 49.50 प्रतिशत आरक्षण में ठूंस दिया है। जबकि सामान्य श्रेणी के लिये 50.50 प्रतिशत अघोषित आरक्षण का पूरा लाभ 25.12 करोड़
मनुवादी लोग ले रहे हैं।
शोषित जातियों को अम्बेडकरवादी आरक्षण से वंचित करने के लिये मनुवादियों का तीसरा तरीका जाली जाति प्रमाणपत्र बनवा कर सरकारी नौकरी आदि प्राप्त कर लेना है। मार्च 2017 में
केन्द्रीय जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में कहा कि केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों में कुल 1832 कर्मचारियों ने जाली जाति प्रमाणपत्र बनवा कर नौकरियां प्राप्त की और कई वर्षों से नौकरी कर रहे हैं। इससे विभिन्न राज्य सरकारों के अधीन नौकरियों में जाली प्रमाणपत्र द्वारा नौकरी कर रहे मनुवादियों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है। इसी तरह जाली प्रमाणपत्र बनवा कर शिक्षण संस्थाओं में शोषित जातियों हेतु आरक्षित स्थानों और शोषित जातियों हेतु आवंटित छात्रवृत्तियां मनुवादियों द्वारा हड़प जाना सामान्य घटना है।
इस प्रकार मनुवादी लोग 'मनुवादी आरक्षण' का लाभ तो हजारों वर्षों से ले ही रहे हैं इसके साथ ही शोषित जातियों को संविधान प्रदत्त 'अम्बेडकरवादी आरक्षण' में भी सेंध लगाकर शोषित जातियों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर रहे हैं। यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक शोषित जातियां अपने अधिकारों के प्रति चेतनाशून्य और असंगठित बनी रहेंगी तथा चुपचाप सिर झुकाकर मनुवादियों के अत्याचारों को सहती रहेंगी। इसलिए शोषित जातियों को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की शिक्षाओं को ग्रहण करके संगठित होने और मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करने की आवश्यकता है।
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सन्दर्भ और टिप्पणियां
1. अन्य
पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा प्रदत्त सूचना के आधार पर।
2. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा
प्रदत्त आंकड़े और सूचनाओं के आधार पर।
3. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन
द्वारा प्रदत्त आंकड़े और सूचनाओं और 2011 की जनगणना के आधार पर लेखक द्वारा की गई गणनायें।
4. सच्चर
समिति की रिपोर्ट वर्ष 2006 के अनुसार।
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