Friday, April 24, 2020

'मनुवादी आरक्षण' और शोषित जातियां (PART-1)


मनुस्मृति के निम्नलिखित प्रावधानों पर ध्यान दीजिए:-
मनुवादियों ने वर्ण व्यवस्था के अनुसार चारों वर्णों के कार्य निश्चित कर दिए थे:-
अध्यापनं अध्ययनं यजनं याजनं तथा।
दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राह्मणानां अकल्पयत्।।1.88।।
1.88. स्वयंभू मनु ने ब्राह्मणों के लिये वेदाध्ययन, वेदों की शिक्षा देना, यज्ञ करना, अन्य को यज्ञ करने में सहायता देना और अगर वह धनी है, तो दान देना और अगर निर्धन है, तो दान लेना- ये कर्तव्य निश्चित किये हैं।
प्रजानां रक्षणं दानं इज्याध्ययनं एव च।
विषयेष्वप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समासतः।।1.89।।
1.89. प्रजा की रक्षा करना, दान देना, यज्ञ करना, वेदों का अध्ययन करना, विषयों में आसक्ति नहीं रखना, संक्षेप में, क्षत्रियों के कर्तव्य निर्धारित किये गए हैं।
पशूनां रक्षणं दानं इज्याध्ययनं एव च।
वणिक्पथं कुसीदं वैश्यस्य कृषिं एव च।।1.90।।
1.90. पशुपालन, दान देना, यज्ञ करना, शास्त्रों को पढ़ना, व्यापार करना, ब्याज पर ऋण देना और खेती करना वैश्यों के कर्तव्य निश्चित किये गए हैं।
एकं एव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत्।
एतेषां एव वर्णानां शुश्रूषां अनसूयया।।1.91।।
1.91. सर्वोच्च सत्ता ब्रह्मा ने शूद्रों के लिये एक ही मुख्य कर्तव्य निश्चित किया है और वह है उच्च उक्त वर्णों की खुशी-खुशी सेवा करना।
अध्यापनं अध्ययनं यजनं याजनं तथा।
दानं प्रतिग्रहश्चैव षट्कर्माण्यग्रजन्मनः।।10.75।।
10.75. वेदों का अध्ययन और अध्यापन करना, अपने लिये और दूसरों के लिये यज्ञ करना, दान देना और दान लेना, ये छः कार्य ब्राह्मण के लिये निर्दिष्ट हैं।
मनुवादियों ने राज्य शक्ति का प्रयोग करके वैश्यों और शूद्रों को बलपूर्वक उनके लिये निश्चित कार्यों को करने के लिये बाध्य किया:-
वैश्यशूद्रौ प्रयत्नेन स्वानि कर्माणि कारयेत्।
तौ हि च्युतौ स्वकर्मभ्यः क्षोभयेतां इदं जगत्।।8.418।।
8.418. राजा सावधानीपूर्वक वैश्यों और शूद्रों को अपना-अपना कर्तव्य (जो उनके लिये निर्धारित हैं) करने के लिये बाध्य करे क्योंकि अगर वे अपने कर्तव्यों से विरत होते हैं तब वे इस समस्त संसार को अस्त-व्यस्त कर डालेंगे।
वाणिज्यं कारयेद्वैश्यं कुसीदं कृषिं एव च।
पशूनां रक्षणं चैव दास्यं शूद्रं द्विजन्मनाम्।।8.410।।
8.410. राजा को वैश्य को व्यापार करने, रुपया सूद पर देने, खेती-बाड़ी करने, पशु उधार देने और शूद्र को द्विजों की सेवा करने का आदेश देना चाहिये।
मनुवादियों ने ब्राह्मणों के लिए निर्धारित कार्यों और उनके लिये निर्धारित आय के साधनों को अन्य वर्णों-जातियों को करने से प्रतिबंधित किया:-
अधीयीरंस्त्रयो वर्णाः स्वकर्मस्था द्विजातयः।
प्रब्रूयाद्ब्राह्मणस्त्वेषां नेतराविति निश्चयः।।10.1।।
10.1. तीन प्रकार की द्विज जातियां (वर्ण) अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के साथ-साथ (वेद का) अध्ययन करें, लेकिन इनमें से (केवल) ब्राह्मण उसका अध्यापन करें, अन्य दो करें, यह एक सुस्थापित सत्य है।
सर्वेषां ब्राह्मणो विद्याद्वृत्त्युपायान्यथाविधि।
प्रब्रूयादितरेभ्यश्च स्वयं चैव तथा भवेत्।।10.2।।
10.2. लोगों की आजीविका के जो भी साधन धर्म ने निश्चित किये हैं उनका ज्ञान ब्राह्मण को होना चाहिये, इसी के अनुकूल वह दूसरों को निर्देश (आदेश) दे और स्वयं भी धर्म के अनुसार जीवनयापन करे।
त्रयो धर्मा निवर्तन्ते ब्राह्मणात्क्षत्रियं प्रति।
अध्यापनं याजनं तृतीयश्च प्रतिग्रहः।।10.77।।
10.77. ब्राह्मणों और क्षत्रियों में से क्षत्रियों के लिये वे तीन कार्य वर्जित हैं जो ब्राह्मणों के लिये निर्दिष्ट हैं, अर्थात अध्यापन, अन्य के लिये यज्ञ-कर्म और दान स्वीकार करना।
यो लोभादधमो जात्या जीवेदुत्कृष्टकर्मभिः।
तं राजा निर्धनं कृत्वा क्षिप्रं एव प्रवासयेत्।।10.96।।
10.96. निचली जाति का कोई व्यक्ति यदि लोभवश ऊंची जाति वाले व्यक्ति के व्यवसाय को अपना कर जीवनयापन करता है तब राजा उसकी सम्पत्ति छीन ले और उसे निर्वासित कर दे।
मनुवादियों ने राज्य शक्ति का प्रयोग करके समाज में विभाजन को बलपूर्वक बनाये रखा:-
स्वादानाद्वर्णसंसर्गात्त्वबलानां रक्षणात्।
बलं संजायते राज्ञः प्रेत्येह वर्धते।।8.172।।
8.172. जातियों के एक-दूसरे में विलय को रोकने से राजा की शक्ति बढ़ती है तथा वह उस जीवन में और मृत्यु के बाद समृद्धिवान होता है।
मनुवादियों ने 'न्यायाधीश' का पद ब्राह्मणों के लिये 'आरक्षित' कर दिया:-
यदा स्वयं कुर्यात्तु नृपतिः कार्यदर्शनम्।
तदा नियुञ्ज्याद्विद्वांसं ब्राह्मणं कार्यदर्शने।।8.9।।
8.9. परन्तु यदि राजा अभियोगों की जांच स्वयं नहीं करता तब उसे इन पर विचार करने के लिये विद्वान ब्राह्मण को नियुक्त करने चाहिये।
यज्ञ आदि कार्य ब्राह्मणों की आय के साधन हैं अर्थात ब्राह्मण, पूजा-पाठ, यज्ञ आदि किसी ईश्वर भक्ति की भावना के कारण नहीं बल्कि कमाई के साधन के होने के कारण करता है:-
षण्णां तु कर्मणां अस्य त्रीणि कर्माणि जीविका।
याजनाध्यापने चैव विशुद्धाच्च प्रतिग्रहः।।10.76।।
10.76. परन्तु इस (ब्राह्मण) के लिये निर्दिष्ट छः कार्यों में से तीन कार्य उसकी आजीविका के साधन हैं, अर्थात अन्य के लिये यज्ञ-कर्म, अध्यापन और सदाचारी व्यक्तियों से दान लेना।
ब्राह्मणों को मृत्यु दण्ड से छूट मिली हुई थी चाहे वो कितना भी जघन्य अपराध करें:-
मौण्ड्यं प्राणान्तिकं दण्डो ब्राह्मणस्य विधीयते।
इतरेषां तु वर्णानां दण्डः प्राणान्तिको भवेत्।।8.379।।
8.379. ब्राह्मण के लिये मृत्यु दण्ड के स्थान पर उसका सिर्फ सिर मुंडा देना निश्चित किया गया है, लेकिन अन्य जातियों (के लोगों) को वास्तव में मृत्यु दण्ड भुगतना होगा।
मनुवादियों ने ब्राह्मणों को सभी जीवों, सम्पत्ति और वर्णों-जातियों का स्वामी बना दिया:-
उत्तमाङ्गोद्भवाज्ज्येष्ठ्याद्ब्रह्मणश्चैव धारणात्।
सर्वस्यैवास्य सर्गस्य धर्मतो ब्राह्मणः प्रभुः।।1.93।।
1.93. ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने के कारण, ज्येष्ठ होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है।
सर्वं स्वं ब्राह्मणस्येदं यत्किं चिज्जगतीगतम्।
श्रैष्ठ्येनाभिजनेनेदं सर्वं वै ब्राह्मणोऽर्हति।।1.100।।
1.100. पृथ्वी पर जो कुछ भी है वह सब ब्राह्मणों का है अर्थात ब्राह्मण अच्छे कुल में जन्म लेने के कारण इन सभी वस्तुओं का स्वामी है।
वैशेष्यात्प्रकृतिश्रैष्ठ्यान्नियमस्य धारणात्।
संस्कारस्य विशेषाच्च वर्णानां ब्राह्मणः प्रभुः।।10.3।।
10.3. जाति की विशिष्टता से, उत्पत्ति-स्थान की श्रेष्ठता से, अध्ययन एवं व्याख्यान आदि द्वारा नियम के धारण करने से और यज्ञोपवीत-संस्कार आदि की श्रेष्ठता से ब्राह्मण ही सब वर्णों का स्वामी है।1
इसी प्रकार के प्रावधान अन्य स्मृतियों में भी हैं। इससे स्पष्ट है कि मनुवादियों ने ही सर्वप्रथम 'आरक्षण' का अविष्कार किया और समाज के सभी लाभदायक स्थानों को मनुवादियों के लिये ही 'आरक्षित' कर दिया। विभिन्न लाभदायक व्यवसायों और विशेषाधिकारों पर केवल मनुवादियों को ही 'आरक्षण' द्वारा एकाधिकार प्राप्त था। मनुवादी लोग प्रायः कहते हैं कि उनको सभी लाभदायक स्थितियां और विशेषाधिकार उनकी तथाकथित 'योग्यता' के कारण मिले किसी 'आरक्षण' के कारण नहीं! परन्तु भारत के प्राचीन या आधुनिक इतिहास का अध्ययन करने पर ये मनुवादी लोग ही 'घोर अयोग्य' सिद्ध होते हैं। वास्तव में मनुवादियों के इस तर्क में कोई बल नहीं है और यह एक खोखला तर्क हैं। प्राचीन काल से भारतीय संविधान के लागू होने तक समाज के प्रत्येक क्षेत्र में इन्ही मनुवादियों का एकछत्र वर्चस्व था। लेकिन भारत के इतिहास का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह देश हजारों वर्षों तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। विदेशियों के सैकड़ों आक्रमण हुए। विदेशी घूमते-टहलते इस देश में आते थे और यहाँ अपने साम्राज्य स्थापित करते थे। ईरान का शासक डेरियस प्रथम, मेसीडोनिया का शासक अलेक्जेंडर, इंडो-ग्रीक, बैक्ट्रिया के शासक, कुषाण, शक, हूंण, मंगोल, अरब, तुर्क, मुग़ल, पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी आदि लोग जिनका वर्णन लिखित इतिहास में भी नहीं है, ने भारत को हजारों वर्षों तक दास बनाये रखा। जबकि उस समय राज्य और प्रशासन के सभी पदों पर यही 'परम योग्य' मनुवादी लोग आसीन थे। तब इन परम योग्य मनुवादी लोगों के रहते भारत दास क्यों बना रहा? ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में भी भारत की प्रगति शून्य रही। अक्सर आपने पढ़ा या सुना होगा कि जैसे ही विदेशों में विज्ञान के क्षेत्र में कोई खोज होती है या कोई नया अविष्कार होता है तो मनुवादी लोग बिना एक क्षण व्यर्थ किये कहने लगते हैं कि इनके वेदों और शास्त्रों में यह अविष्कार या खोज पहले से ही मौजूद है। लेकिन कोई भी विवेकशील व्यक्ति इनकी बकवास पर विश्वास नहीं करता और विवेकशील लोग इनकी खिल्ली उड़ाते हैं। आज करोड़ों वर्षों पुराने जीवाश्म, डायनासोरों के जीवाश्म, प्राचीन वस्तुएं मिल गयीं हैं लेकिन आज तक इन मनुवादियों का 'पुष्पक विमान' नहीं मिला। मनुवादी  कहते है कि 'शून्य' की खोज इन्ही लोगों ने की है। लेकिन यदि गहन अध्ययन किया जाए तो यह ज्ञात होगा कि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि किस व्यक्ति ने शून्य की खोज की? फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि शून्य की खोज जिस व्यक्ति ने की वह मनुवादी ही था? यदि यह मान भी लिया जाए कि शून्य की खोज इन लोगों ने ही की है तो उसके बाद क्या यह लोग चादर तान कर सो गए? यदि यह इतने ही ज्ञानी थे तो भारत विज्ञान में इतना पिछड़ा हुआ क्यों है? यदि इन मनुवादियों के वेदों और शास्त्रों में ही सभी आधुनिक अविष्कार पहले से ही लिख दिए गए हैं तो क्यों वर्तमान की मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपये विकसित देशों से तकनीकी खरीदने में व्यय करते हैं और वेदों की सहायता से स्वयं ही अत्याधुनिक तकनीक विकसित क्यों नहीं कर लेते? यदि मनुवादियों के शास्त्रों में समस्त आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान पहले से ही था तो फिर ये मनुवादी लोग शौचालय और सेफ्टी टैंक जैसा अत्यावश्यक अविष्कार क्यों नहीं कर पाए। जबकि शौचालय को सभ्यता का सिंहासन कहा जाता है। इससे प्रमाणित हो जाता है कि मनुवादियों का उपरोक्त दावा केवल सफेद झूठ है।
वास्तव में इस स्थिति का कारण यह है कि इन मनुवादियों का स्वार्थ शोषित वर्ग को अज्ञानी और अन्धविश्वासी बनाये रखने में ही था। इन्होंने शोषित वर्ग को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा। उनको अन्धविश्वास में जकड़ दिया। इसके लिये ही उन्होंने वेद, पुराण, स्मृतियां आदि लिखे। उनका स्वार्थ ज्ञान-विज्ञान की खोज में नहीं बल्कि स्मृति आदि लिखने में था। इसीलिए उन्होंने ज्ञान-विज्ञान की ओर से आँखे बंद कर ली। ज्ञान और बुद्धि किसी की पैतृक सम्पत्ति नहीं होती। जिसे अवसर और अनूकूल वातावरण मिलता है वह ज्ञानी बन सकता है। लेकिन मनुवाद तो अज्ञानियों के बीच ही फलता-फूलता है।
आज भी जिस किसी भी क्षेत्र में देखिये वहां इन्ही 'परम योग्य' मनुवादियों का वर्चस्व है फिर भी हर तरफ घोर भ्रष्टाचार व्याप्त है। आज तक जितने भी घोटाले हुए हैं उन घोटालों के पीछे यही मनुवादी लोग हैं। इन्ही मनुवादियों और मनुवादी व्यवस्था के कारण भारत अत्यधिक पिछड़ा हुआ है। इसी के कारण भारत पर घोर विपत्ति छाई हुई है।
इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि इन मनुवादियों को विभिन्न लाभदायक स्थितियां और विशेषाधिकार इन मनुवादियों की तथाकथित योग्यता के कारण नहीं बल्कि 'मनुवादी आरक्षण' के कारण मिले! यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि मनुवादियों को यह 'मनुवादी आरक्षण' किसी 'अर्जित योग्यता' के आधार पर नहीं बल्कि 'वंशानुगत रूप से वर्ण और जाति विशेष में जन्म लेने के आधार' पर मिला है।
1931 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में केवल 1,55,555 ब्रिटिश व्यक्ति थे जिनमें से 1,10,137 ब्रिटिश पुरुष और 45,418 ब्रिटिश महिलाएं थीं। जबकि 1931 में भारत की कुल जनसंख्या 27.9 करोड़ थी। 1941 में भारत की जनसंख्या 31.9 करोड़ और 1951 में 36.1 करोड़ थी। इस प्रकार 1931 में भारतीयों की जनसंख्या ब्रिटिश लोगों की जनसंख्या से 180 गुना अधिक थी, तब प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि अपने से 180 गुना अधिक जनसंख्या को ब्रिटिश लोगों ने कैसे अपना दास बना लिया?
इसका उत्तर यह है कि भारतीय समाज वर्ण विभाजित और जाति विभाजित है। इसी के साथ यह भी अति महत्वपूर्ण है कि यह विभाजन 'श्रेणीगत असमानता (Graded Inequality)' के सिद्धांत के अनुसार है। इसके कारण तथाकथित उच्च जातियां अर्थात मनुवादी लोग लाभदायक स्थिति में हैं जबकि तथाकथित निम्न जातियां शोषित हैं। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के कारण मनुवादियों ने बहुसंख्यक शोषित जातियों को मानसिक दासता में जकड़ दिया। शोषित जातियों को अशिक्षित, अज्ञानी, विपन्न और अन्धविश्वासी बनाकर मनुवादी स्वयं समाज के सर्वेसर्वा और नेतृत्वकर्ता बन बैठे! इसी कारण ब्रिटिश लोगों को जब इस मनुवादी सामाजिक स्थिति का ज्ञान हुआ तो उन्होंने इन मनुवादियों को अपने तंत्र में सम्मिलित कर लिया। ब्रिटिशों और मनुवादियों के बीच हुए इस धूर्ततापूर्ण गठबंधन से दोनों को ही लाभ मिला। ब्रिटिशों को भारत को दास बनाने और बनाये रखने में सरलता हुई तो मनुवादियों को भी सत्ता सुख, सम्पत्ति तथा राज्य शक्ति प्राप्त हो गयी। इस बीच इन मनुवादियों को इस बात की जरा भी ग्लानि नहीं हुई कि वे लोग अपने ही देशवासियों को ब्रिटिशों का दास बना कर देशद्रोह कर रहे हैं क्योंकि देशवासी तो पहले से ही इन मनुवादियों के दास थे! इतिहास से भी स्पष्ट है कि इन मनुवादियों ने प्रत्येक विदेशी आक्रांता को भारत को दास बनाने में सहयोग किया है। इस प्रकार भारत को ब्रिटिशों ने नहीं बल्कि इन मनुवादियों ने ब्रिटिशों का दास बनाया था। इसी प्रकार आज ये मनुवादी लोग भारत को पश्चिमी पूँजीवादी देशों का दास बना चुके हैं।
(क्रमशः)

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