Friday, April 24, 2020

'मनुवादी आरक्षण' और शोषित जातियां (PART-2)


ये मनुवादी लोग ब्रिटिशों के साथ भारत के लोगों के शोषण में किस स्तर तक संलग्न थे इसकी झलक वर्ष 1943 में मद्रास प्रेसिडेंसी में उच्च सरकारी सेवाओं में कुंडली मार कर बैठे मनुवादियों की संख्या और उनकी जनसंख्या को देख कर मिल जाती है। सारणी 1 और 2 देखिये:-
सारणी – 1 2
राजपत्रित पद:-
समुदाय
अनुमानित जनसंख्या लाखों में
जनसंख्या का प्रतिशत
सम्पूर्ण राजपत्रित पदों (2200) में प्राप्त पदों की संख्या
की  गयी नियुक्तियों का प्रतिशत।
ब्राह्मण
15
03
820
37
ईसाई
20
04
190
09
मुसलमान
37
07
150
07
डिप्रेस्ड क्लासेस
70
14
25
1.5
गैर-ब्राह्मण
आगे बढे हुए
गैर-ब्राह्मण
113
22
620
27
पिछड़ा वर्ग
245
50
50
02
गैर-एशियाई और
एंग्लो-इंडियन




अन्य समुदाय





सारणी – 2 3
अराजपत्रित पद:-
समुदाय
सौ रुपये से अधिक वाले कुल पद- 7500
35 रुपये से अधिक वाले पद- 20782
नियुक्त पदों की संख्या
नियुक्ति किये गए पदों का प्रतिशत
नियुक्त पदों की संख्या
नियुक्ति किये गए पदों का प्रतिशत
ब्राह्मण
3280
43.73
8812
42.4
ईसाई
750
10
1655
08
मुसलमान
497
6.63
1624
7.8
डिप्रेस्ड क्लासेस
39
0.52
144
0.69
गैर-ब्राह्मण
आगे बढे हुए
गैर-ब्राह्मण और
पिछड़ा वर्ग
2543
33.9
8440
40.6
गैर-एशियाई और
एंग्लो-इंडियन
372
05
83
0.4
अन्य समुदाय
19
0.5
24
0.11

इसी प्रकार आज भी मनुवादियों ने 'मनुवादी आरक्षण' के कारण ही केंद्र और राज्य सरकारों तथा अन्य सरकारी, अर्धसरकारी या स्वायत्त संस्थानों में अधिकतम पद कब्जा रखे हैं। इसके अतिरिक्त समाज में अन्य सभी लाभदायक स्थानों पर 'मनुवादी आरक्षण' के कारण ही इन मनुवादियों का कब्जा है।
'मनुवादी आरक्षण' के कारण ही अकूत सम्पत्ति और शक्ति के स्रोत तथाकथित हिन्दुओं के मन्दिरों, मठों, आश्रमों, गौशालाओं आदि इन मनुवादियों के कब्जे में हैं। इन मन्दिरों में कितनी अकूत सम्पत्ति है इसका अनुमान सारणी 3 देखकर लगाया जा सकता है।
सारणी- 3
क्रमांक
तथाकथित हिन्दू धर्म के मन्दिर
मन्दिरों की आकलित कुल सम्पत्ति
1
पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुनन्तपुरम, केरल
1.2 लाख करोड़ रुपये
2
तिरुमला तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर, तिरुमला, आंध्र प्रदेश
52000 करोड़ रुपये (आय-650 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष)
3
पुरी जगन्नाथ मन्दिर, पुरी, उड़ीसा
250 करोड़ रुपये
4
वैष्णो देवी, जम्मू-कश्मीर
वार्षिक आय 500 करोड़ रुपये
5
सिद्धिविनायक मन्दिर, मुम्बई, महाराष्ट्र
वार्षिक आय 320 करोड़ रुपये

यह तो केवल एक झलक भर है। इसी प्रकार के करोड़ों मन्दिर सम्पूर्ण देश में हैं जिनमें सदियों से सम्पत्ति संचित हो रही है। मनुस्मृति से स्पष्ट ही है कि ये सब मन्दिर केवल मनुवादियों की आय के स्रोत हैं। इस प्रकार 'मनुवादी आरक्षण' के कारण ही मनुवादी लोग संपत्ति के इन अक्षय स्रोतों के स्वामी बने बैठे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार स्थिर मूल्यों (वर्ष 2011-12 के) पर वर्ष 2016-17 में भारत का सकल घरेलु उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) 121.65 लाख करोड़ रुपये और चालू मूल्यों पर 152.51 लाख करोड़ रुपये था। इससे स्पष्ट है कि देश के सभी करोड़ों मन्दिरों में संचित सम्पत्ति देश के सकल घरेलु उत्पाद से भी कई गुना अधिक है। क्योंकि अकेले पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुनन्तपुरम, केरल की अनुमानित सम्पत्ति देश के सकल घरेलु उत्पाद की एक प्रतिशत से भी अधिक है। वास्तव में मन्दिरों में संचित यह अथाह सम्पत्ति शोषित जातियों के शोषण से ही उत्पन्न होती है। इसलिए इस सम्पत्ति की वास्तविक स्वामी शोषित जातियां ही हैं परन्तु वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था जनित 'मनुवादी आरक्षण' के कारण इस अथाह सम्पत्ति को मनुवादी वर्ग हड़प रहा है।
इस प्रकार मनुवादी वर्ग ही 'आरक्षण' से सर्वाधिक लाभान्वित वर्ग है। परन्तु यही मनुवादी लोग बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग को प्रदत्त संवैधानिक आरक्षण का घोर विरोध करते हैं। यहां यह भी जान लेना चाहिये कि 'मनुवादी आरक्षण' मनुवादियों की विलासिता के लिये है जबकि इसके विपरीत 'अम्बेडकरवादी आरक्षण' मनुवादियों द्वारा हजारों वर्षों से शोषित हो रही शोषित जातियों के सशक्तिकरण हेतु है जिससे ये शोषित जातियां मनुवादी दासता से मुक्त हो सकें।
वास्तव में अम्बेडकरवादी आरक्षण प्रतिनिधित्व के लिए दिया गया है, क्योंकि वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के कारण मनुवादियों द्वारा जिन समुदायों का हजारों वर्षों से शोषण किया जा रहा है, उनको शासन, प्रशासन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व देने के लिए ही अम्बेडकरवादी आरक्षण का प्रावधान किया गया, जिससे ये लोग अपने समुदाय की उन्नति हेतु शासन-प्रशासन में अपने समुदाय की समस्याओं को उठा सकें और समुदाय का हित कर सकें। यही लोकतंत्र का सिद्धांत है। भारत के लोगों ने तथाकथित स्वाधीनता संग्राम में यही तर्क दिया था कि ब्रिटिश लोग यहाँ के लोगों के प्रतिनिधि नहीं है इसलिए ये लोग भारत के लोगों का कल्याण नहीं कर सकते। यहाँ अच्छे शासन का प्रश्न नहीं था बल्कि स्वदेशी शासन का था। ब्रिटिश जितना भी अच्छा शासन चलाते लेकिन वो स्वीकार्य नहीं था, क्योंकि वो लोकतंत्र के सिद्धांत के विरुद्ध था। इसीलिए यहाँ के लोगों ने अपने प्रतिनिधियों द्वारा शासन चलाने के लिये स्वतंत्रता की मांग की। यही बात जाति व्यवस्था में शोषित जातियों पर भी लागू होती है। तथाकथित उच्च जातियों के लोग भले ही कितने भी उदार, सहिष्णु और कुशल क्यों ना हों लेकिन वो कभी भी शोषित जातियों के प्रतिनिधि नहीं हो सकते, इसलिए वो शोषित जातियों का कल्याण भी नहीं कर सकते। इसीलिए अम्बेडकरवादी आरक्षण का प्रावधान किया गया। अम्बेडकरवादी आरक्षण देने का प्रावधान भारत सरकार अधिनियम 1935 से ही है और यह गोलमेज सम्मेलन में  बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के कार्यों तथा ब्रिटिश सरकार से बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के संघर्षों का परिणाम है। अम्बेडकरवादी आरक्षण के मूल में समानता का सिद्धांत निहित है और यह समानता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में होनी चाहिये। अर्थात आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में। जबकि मनुवादियों को प्राप्त हो रहे मनुवादी आरक्षण के मूल में असमानता का सिद्धांत निहित है। मनुवादी आरक्षण शोषित जातियों के शोषण का कारण है। यहाँ यह बात भी ध्यानपूर्वक विचार करने की है कि मनुवादी लोग अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग को प्राप्त हो रहे आरक्षण का विरोध तो करते हैं लेकिन वो ऐसा किसी सिद्धांत और तर्क के आधार पर नहीं करते हैं क्योंकि आरक्षण के जन्मदाता और आरक्षण से सर्वाधिक लाभान्वित होने वाले मनुवादी लोग ही हैं। वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था वास्तव में आर्थिक संसाधनों का विषमतापूर्ण विभाजन ही है। इसके साथ ही यह ऐसा विभाजन है जिसे राज्य सत्ता के बल पर स्थायी रखा गया। इस विषमतापूर्ण विभाजन में तथाकथित उच्च जातियों ने लाभदायक आर्थिक संसाधनों को अपने अधिकार में रखा और शोषित जातियों को संसाधनहीन बनाए रखा। तथाकथित उच्च जातियों ने लाभदायक व्यवसायों, पदों, धन, भूमि आदि पर अपना अधिकार कर लिया और निकृष्ट व्यवसायों को शोषित जातियों के ऊपर थोप दिया। शोषित जातियों को राज्य के कानूनों और धार्मिक प्रथाओं द्वारा संपत्ति अर्जित करने, शिक्षा प्राप्त करने, सम्मान और गरिमापूर्ण मानव जीवन जीने के नैसर्गिक अधिकारों से वंचित रखा गया। वर्ण व्यवस्था की रक्षा करना प्रत्येक हिन्दू राजा का प्राथमिक कर्त्तव्य था। यदि शोषित जातियों के किसी सदस्य ने इसका उल्लंघन करने का प्रयास किया तो उसको कठोर दंड दिए गए, उसका वध किया गया, कान में सीसा पिघला कर डाला गया और जीभ काट ली गयी। जिसे इस विषय में अधिक जानने की उत्सुकता हो उसे भारतीय इतिहास, तथाकथित हिन्दू धर्म के शास्त्रों और विशेष रूप से मनुस्मृति का अध्ययन करना चाहिए। इन प्रावधानों के कुछ उदाहरण लेखक ने ऊपर दे दिए हैं।
मनुवादियों के 'मनुवादी आरक्षण' का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि:-
"मनुस्मृति के अध्ययन से पता चलेगा कि शासक वर्ग के नेतृत्वकर्ता और मुख्य तत्व ब्राह्मण ने राजनीतिक शक्ति अपने बौद्धिक बल से प्राप्त नहीं की। बौद्धिकता पर किसी का एकाधिकार नहीं होता। इन्होंने तो निकृष्टतम साम्प्रदायिकता के आधार पर अपना प्रभुत्व बनाये रखा। मनुस्मृति के विधान के अनुसार पुरोहित के पद, सम्राट के पुरोहित और प्रधानमंत्री, उच्च  न्यायालय के न्यायाधिपति न्यायाधीशों और सम्राट के मंत्रियों के पद ब्राह्मणों के लिये सुरक्षित थे। यहां तक कि सेना के सेनापति के पद पर ब्राह्मण के होने के आदेश दिए गए थे चाहे वह अनुपयुक्त ही क्यों हो! वे सभी ब्राह्मणों के लिये आरक्षित थे। ब्राह्मण अपने वर्ग के लिये लाभ और सत्ता  के आरक्षण से ही संतुष्ट नहीं थे। वे जानते थे कि केवल आरक्षण ही पर्याप्त नहीं है। गैर-ब्राह्मण जातियों में, ब्राह्मणों के समान योग्यता वाले लोगों द्वारा मुख्य पदों को प्राप्त करने और ब्राह्मणों के आरक्षण को उखाड़ फेंक देने की वाले लोगों के आंदोलन की संभावनाओं को समाप्त करना भी ब्राह्मणों ने आवश्यक समझा। ब्राह्मणों ने समस्त अधिशासी पदों को अपने लिये आरक्षित करने के साथ-साथ शिक्षा पर ब्राह्मणों का एकाधिकार स्थापित करने के लिये विधान बनाये। जैसा कि पहले ही संकेत किया जा चुका है ब्राह्मणों ने विधान बनाकर हिन्दू समाज के निम्नतर वर्ग के लिये शिक्षा प्राप्त करना अपराध घोषित कर दी। जिसका उल्लंघन करने वाले को कठोर तथा अमानुषिक दंड, जैसे अपराधी की जीभ कटवा लेना और उसके कान में पिघलता हुआ सीसा डलवा देना, की व्यवस्था की गई।"4
निष्कर्ष है कि मनुवादियों द्वारा शोषित जातियों को संविधान प्रदत्त आरक्षण का विरोध सैद्धांतिक दृष्टिकोण के कारण नहीं किया जाता बल्कि मनुवादियों के स्वयं के स्वार्थों के कारण किया जाता है क्योंकि मनुवादी लोग तो स्वयं ही आरक्षण से सबसे अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। वास्तव में मनुवादी लोग शोषित जातियों को मिल रहे संसाधनों को भी हड़प कर उनको घोर दासता की स्थिति में बनाये रखना चाहते हैं, इसीलिये मनुवादी लोग शोषित जातियों को प्राप्त हो रहे संवैधानिक अम्बेडकरवादी आरक्षण का विरोध करते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मनुवादी लोग 'मनुवादी आरक्षण' के विरोधी नहीं हैं बल्कि 'अम्बेडकरवादी आरक्षण' के विरोधी हैं। इसीलिये शोषित जातियां 'आरक्षण' के पक्ष में चाहे जितने तर्क दें परन्तु मनुवादी लोग शोषितों को मिल रहे 'आरक्षण' का विरोध करना नहीं छोड़ेंगे। अतः यदि शोषित जातियों को मनुवादी वर्ग पर विजय प्राप्त करनी है तो शोषित जातियों को उत्पादन साधनों पर अधिकार करने हेतु संघर्ष करने की आवश्यकता है। इसके लिये शोषित जातियों को मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठगों से सावधान रहते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के दिखाए मार्ग पर चलना होगा!
----------------------------------------
सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.       मनुस्मृति के उपरोक्त समस्त प्रावधान और हिन्दी अनुवाद इस पुस्तक से लिये गए हैं :- प्राचीन भारत में क्रान्ति और प्रतिक्रान्ति (Revolution and Counter-Revolution in Ancient India), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, सम्यक प्रकाशन, संस्करण 2012.
इसके साथ ही पुस्तक मनुस्मृतिः, पण्डित रामेश्वरभट्टकृतया, सम्पादक- बी0 एस0 रावत, प्रथम संस्करण 2015, प्रकाशक- सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली का भी सन्दर्भ लिया जा सकता है।
2.       कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया? (What Congress and Gandhi Have Done to The Untouchables), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, सम्यक प्रकाशन, संस्करण- 2008, पृष्ठ- 207
और Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 9, Edition 1991, Reprint 2015, Page-207, Publisher:- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
3.       कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया? (What Congress and Gandhi Have Done to The Untouchables), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, सम्यक प्रकाशन, संस्करण- 2008, पृष्ठ- 207
और Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 9, Edition 1991, Reprint 2015, Page-207, Publisher:- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
4.       कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया (What Congress and Gandhi have done to the Untouchables), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, सम्यक प्रकाशन, प्रथम संस्करण 2008, पृष्ठ- 225,
और,
बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 16, तृतीय संस्करण 2013, पृष्ठ- 236-237, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 9, Edition 1991, Reprint 2015, Page- 230-231, Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.

No comments:

Post a Comment