लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया को 'लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ' कहा जाता है और मीडिया स्वयं की ‘लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ’ जैसी उपाधियों पर गर्व भी करती है। परन्तु भारतीय मीडिया का वास्तविक चरित्र अत्यन्त घृणित है। भारतीय मीडिया मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के स्वार्थ साधन का ही एक उपकरण है। वास्तव में मीडिया केवल उन्हीं मामलों को उठाता है, जिन मामलों को उठाने पर मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को कोई क्षति पहुंचने की संभावना नहीं होती है। मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग शोषित जातियों विशेष रूप से अनुसूचित जातियों का दमन करने के लिये बलात्कार को एक साधन के रूप में उपयोग करता है। क्योंकि मीडिया भी इसी मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के नियंत्रण में है इसलिये यह मामले मीडिया में स्थान नहीं पाते हैं।
वर्ष 2012, 2013, 2014, 2015 और 2016 में सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में अनुसूचित जातियों की महिलाओं के साथ क्रमशः 1576, 2073, 2233, 2326 और 2541 बलात्कार के मामले पंजीकृत हुए।1 परन्तु क्या इनमें से एक भी मामले को मीडिया द्वारा महत्व दिया गया? देश भर में प्रतिदिन अनुसूचित जातियों के सदस्यों पर मनुवादियों द्वारा अत्याचार किये जाते हैं। परन्तु जो मीडिया किसी क्रिकेट खिलाड़ी को टीम में शामिल न करने को लेकर या किसी अभिनेता या अभिनेत्री के निजी जीवन को लेकर कई-कई दिनों तक समाचार व वाद-विवाद चलाता रहता है, वही मीडिया अनुसूचित जातियों पर होने वाली अत्याचार की घटनाओं की सुध भी नहीं लेता। अनूसूचित जातियों के उत्पीड़न के जिन मामलों को मीडिया में जगह मिलती भी है तो उनका स्वरूप केवल सूचनापरक होता है। उनके शीर्षक विशेष प्रकार से तिरस्कारपूर्ण बनाये जाते हैं उदाहण के लिए कुछ शीर्षक लिये जा सकते हैं " 'दलित' महिला से बलात्कार"
" 'दलित' आदमी को पीटा" आदि। जबकि यही घटनाएं अगर तथाकथित उच्च जातियों के साथ घटित होती हैं तो इनके शीर्षक कुछ इस प्रकार होते हैं " ' देश की बेटी' पर जुल्म, दोषियों को कठोरतम सजा मिले" आदि। इससे मीडिया की मनुवादी मानसिकता प्रदर्शित होती है। ऐसी स्थिति इसलिए है क्योंकि किसी भी प्रकार का मीडिया चाहे वह प्रिन्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया, उस पर उसी मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग का नियंत्रण है जो इस शोषक व्यवस्था से लाभ ले रहा है। वर्ष 2006 में मीडिया स्ट्डीज ग्रुप द्वारा किये गये राष्ट्रीय स्तर के प्रिन्ट व इलेक्ट्रानिक मीडिया संस्थानों के सर्वेक्षण से निम्न निष्कर्ष निकल कर आये:-
सभी प्रकार की प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विभिन्न धार्मिक समूहों के लोगों का प्रतिशत निम्नलिखित था:-
सारणी 12
मीडिया
की धार्मिक पृष्ठभूमि (प्रतिशत में)
|
हिन्दू
|
मुसलमान
|
ईसाई
|
सिख
|
भारतीय जनसंख्या में प्रतिशत
|
81
|
13
|
2
|
2
|
प्रिन्ट हिन्दी मीडिया में प्रतिशत
|
97
|
2
|
0
|
0
|
प्रिन्ट अंग्रेजी मीडिया में प्रतिशत
|
90
|
3
|
4
|
0
|
इलेक्ट्रानिक हिन्दी मीडिया में प्रतिशत
|
90
|
6
|
1
|
0
|
इलेक्ट्रानिक अंग्रेजी मीडिया में प्रतिशत
|
85
|
0
|
13
|
2
|
सभी प्रकार की मीडिया में प्रतिशत
|
90
|
3
|
4
|
1
|
सभी प्रकार की प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जातीय प्रतिनिधित्व निम्न प्रकार से था:-
सारणी-23
मीडिया में जातीय प्रतिनिधित्व (प्रतिशत में)
मीडिया में जातीय प्रतिनिधित्व (प्रतिशत में)
|
ब्राह्मण
|
कायस्थ
|
वैश्य/जैन
|
राजपूत
|
खत्री
|
गैर-द्विज उच्चजाति
|
अन्य पिछड़ी जाति
|
प्रिन्ट हिन्दी
|
59
|
09
|
11
|
08
|
05
|
0
|
08
|
प्रिन्ट अंग्रेजी
|
44
|
18
|
05
|
01
|
17
|
05
|
01
|
इलेक्ट्रानिक हिन्दी
|
49
|
13
|
08
|
14
|
04
|
0
|
04
|
इलेक्ट्रानिक अंग्रेजी
|
52
|
13
|
02
|
04
|
04
|
04
|
04
|
कुल
|
49
|
14
|
07
|
07
|
09
|
02
|
04
|
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया में विभिन्न जातियों के प्रतिनिधित्व में असमानता है। द्विज हिन्दुओं (द्विजों में ब्राह्मण, कायस्थ, राजपूत, वैश्य और खत्री शामिल हैं) की जनसंख्या 16 प्रतिशत है, लेकिन मीडिया में प्रमुख पदों पर उनकी हिस्सेदारी 86 प्रतिशत है। केवल ब्राह्मण (इसमें भूमिहार, त्यागी भी शामिल हैं) के हिस्से में 49 प्रतिशत है। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोग निर्णय लेने वाले पदों पर नहीं हैं। तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया के 315 प्रमुख पदों में से एक पर भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति नही है। इस विश्लेषण से अब मीडिया के मनुवादी-पूंजीवादी चरित्र को समझा जा सकता है। मनुवादी-पूंजीवादी संरचना के कारण ही मीडिया का चरित्र भी मनुवादी-पूंजीवादी है। इसी कारण ये लोग मनुवादी राजनीतिक पार्टियों और मनुवादी विचारधारा का प्रचार रहते हैं और शोषित वर्ग को अज्ञानता में डाले रहने के लिए ही अंधविश्वासों का प्रचार करते रहते हैं। इसी कारण शोषित वर्ग विशेषकर अनुसूचित जातियों पर प्रतिदिन होने वाले अत्याचारों को मीडिया महत्व नहीं देता।
इसलिये शोषित वर्ग को मनुवादी-पूँजीवादी मीडिया का बहिष्कार करने की आवश्यकता है। इस तरह से शोषित वर्ग मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के आर्थिक हितों पर प्रहार कर सकता है। इसके लिये निम्नलिखित कुछ तरीके अपना सकते है। शोषित वर्ग के प्रत्येक सदस्य को चाहिए कि:-
(1) वह मनुवादी-पूंजीवादी समाचार पत्रों का बहिष्कार करे अर्थात मनुवादी-पूंजीवादी समाचार पत्र ना खरीदे।
(2) केबल नेटवर्क, डी0टी0एच0 सेवा का बहिष्कार करे।
अगर शोषित वर्ग केवल इन दो उपायों का सफलतापूर्वक पालन करें तो मनुवादी-पूंजीवादी मीडिया को उल्लेखनीय आर्थिक और मनोवैज्ञानिक क्षति पहुंचा सकते हैं। इसलिये शोषित वर्ग को मनुवादी-पूंजीवादी मीडिया का बहिष्कार करने की अति आवश्यकता है।
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सन्दर्भ और टिप्पणियां
1. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की विभिन्न वार्षिक रिपोर्टें।
2. मीडिया और दलित, हंसराज सुमन, श्री नटराज प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2009, पृष्ठ-15.
3. मीडिया और दलित, हंसराज सुमन, श्री नटराज प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2009, पृष्ठ-16.
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