Monday, February 11, 2019

बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर और वर्तमान भारतीय राजनीति

                वर्तमान भारतीय राजनीति में एक नयी प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। वह यह है कि आज देश का प्रत्येक मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दल बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के नाम क प्रयोग कर रहा है। यदि एक तरह से देखा जाए तो यह स्वागत योग्य प्रवृत्ति है। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर इस देश के 'राष्ट्र निर्माता' हैं और 'राष्ट्र निर्माता' के लिए हृदय में सम्मान होना देश के प्रत्येक नागरिक का परम कर्तव्य है। देश में 'राष्ट्र निर्माता' का सर्वोच्च स्थान होता है जिसकी तुलना भूत, भविष्य और वर्तमान काल के किसी भी व्यक्ति से नहीं की जा सकती। जो स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका में जॉर्ज वाशिंगटन और रूस में व्लादिमीर इलिच 'लेनिन' का है वही स्थान भारत में बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का है। अतः बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर इस देश के प्रत्येक नागरिक के लिये पूजनीय हैं। यहाँ एक बात और कहना चाहूंगा कि जिस प्रकार भारतीय समाज में कुछ सन्तानें वयस्क होने पर अपने माता-पिता को ही ठोकर मार देती हैं, उनका तिरस्कार करती हैं और स्वार्थों के वशीभूत होकर अपने माता-पिता के त्याग और संघर्ष को भुला देती हैं उसी प्रकार यदि देश के कुछ स्वार्थी और नीच मानसिकता के लोग 'राष्ट्र निर्माता' बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के त्याग और संघर्ष को भुला देते हैं तो इससे उन स्वार्थी और नीच मानसिकता के लोगों की नीचता ही प्रकट होती है इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं होता।
                 अब हम इस बात पर विचार करते हैं कि विभिन्न मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दलों द्वारा बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के नाम का जो प्रयोग किया जा रहा है कहीं उसमें कोई स्वार्थ तो नहीं छुपा हुआ है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दल बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के नाम का उपयोग केवल शोषित वर्ग को धोखा देकर चुनावों में शोषित जातियों का समर्थन तथा उनके मत (VOTE) प्राप्त करने के लिये कर रहे हैं? आज चाहे मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दल राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी आदि हों या मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी दल सी0पी0आई0, सी0पी0एम0 आदि हों, सभी दल बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का नाम जप रहे हैं और उनकी विचारधारा को साकार करने का एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर दावा कर रहे हैं। क्या इन दावों में कुछ सच्चाई भी है या ये केवल खोखले दावे हैं?
                इसके लिये हमें सर्वप्रथम बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की विचारधारा को समझने की आवश्यकता है। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का उद्देश्य समानता, स्वतंत्रता और मैत्री पर आधारित समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण करना था। वह वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, स्त्री-पुरुष असमानता, साम्प्रदायिक और धार्मिक भेद-भाव, सामाजिक असमानता, आर्थिक असमानता और राजनीतिक असमानता का उन्मूलन करके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते थे। वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिये उन्होंने कहा कि तथाकथित हिन्दू धर्म के शास्त्रों में लोगों के विश्वास का उन्मूलन करने से ही वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था का उन्मूलन हो सकता है क्योंकि वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को तथाकथित हिन्दू धर्म की धार्मिक स्वीकृति मिली हुई है। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक 'जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste)' में इसका विवेचन किया है, उन्ही के शब्दों में:-
"अंतर्जातीय विवाह और अंतर्जातीय सहभोज के लिये आंदोलन करना और उनका आयोजन करना कृत्रिम साधनों से किये जाने वाले, बलात् भोजन करने के सामान है। प्रत्येक पुरुष और स्त्री को शास्त्रों के बंधन से मुक्त कराइये, शास्त्रों द्वारा प्रतिष्ठापित हानिकर धारणाओं से उनके मस्तिष्क को स्वतंत्र कराइये, फिर देखिये, वह आपके कहे बिना अपने आप अंतर्जातीय सहभोज और अंतर्जातीय विवाह का आयोजन करेंगे।"1
               स्त्री-पुरुष समानता के लिये बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने स्त्रियों की शिक्षा पर बल दिया। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने दिनांक 4 अगस्त 1913 को कोलंबिया विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका से श्री शिवनाक गांवकर को लिखे पत्र में कहा:-
"तब हमें निश्चित रूप से मान लेना चाहिये कि हम जल्द ही बेहतर दिन देखेंगे और हमारी प्रगति और बढ़ जायेगी। यदि पुरुष शिक्षा के साथ-साथ महिला शिक्षा भी चलती रहे, जिसका परिणाम आपको अपनी पुत्री के शिक्षित होने पर देखने को मिल सकता है।"2
              बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 39(d) को सम्मिलित करके स्त्री और पुरुष दोनों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन का प्रावधान किया। इसी प्रकार श्रमिकों, महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग आदि को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के संघर्ष के परिणामस्वरूप ही अधिकार प्राप्त हो पाए हैं। लेकिन बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर इस सत्य से भी भिज्ञ थे कि उनके इतने त्याग और संघर्ष के फलस्वरूप शोषित वर्ग को जो अधिकार प्राप्त हुए हैं उनको छीनने के लिए मनुवादी वर्ग प्रत्येक सम्भव साधन अपनाएगा। इसलिये बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने शोषित वर्ग को 'शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो' का नारा दिया जिससे शोषित वर्ग स्वयं अपने अधिकारों को प्राप्त करने और उनकी रक्षा करने की लड़ाई लड़ने में सक्षम बन सके। शोषित वर्ग के कल्याण से सम्बंधित संविधान के बहुत से प्रावधानों में मनुवादियों द्वारा बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की इच्छा के विरुद्ध संशोधन करके उनको प्रभावहीन कर दिया गया था, इससे बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर बहुत दुखी हुए और उनका यही दुख दिनांक 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में दिए गए उनके भाषण में भी प्रकट हुआ:-
"26 जनवरी 1950 को हम विरोधी भावनाओं से परिपूर्ण जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। राजनीतिक जीवन में हम समता का व्यवहार करेंगे और सामाजिक और आर्थिक जीवन में असमानता का। राजनीति में हम एक व्यक्ति के लिये एक मत और एक मत का एक ही मूल्य के सिद्धांत को मानेंगे। अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में अपनी सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के कारण एक व्यक्ति का एक ही मूल्य के सिद्धांत का हम खंडन करते रहेंगे। इन विरोधी भावनाओं से परिपूर्ण जीवन को हम कब तक बिताते चले जायेंगे? यदि हम इसका बहुत काल तक खंडन करते रहेंगे तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डाल देंगे। हमें इस विरोध को यथासम्भव शीघ्र ही मिटा देना चाहिये। अन्यथा जो असमानता से पीड़ित हैं वे लोग इस राजनीतिक लोकतंत्र की उस रचना का विध्वंस कर देंगे जिसका निर्माण इस (संविधान) सभा ने इतने परिश्रम के साथ किया है।"3
                इस प्रकार बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने शोषित वर्ग को इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये यथासम्भव शांतिपूर्ण साधनों को अपनाने के लिये कहा है लेकिन उन्होंने 'क्रान्ति' की संभावना से भी असहमति प्रकट नहीं की है। संक्षेप में यही बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की विचारधारा है। इसका विस्तार से अध्ययन करने के लिये शोषित वर्ग को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखित पुस्तकों का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिये।
               अब हम इस पर विचार करते हैं कि जो मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दल बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का नाम जप रहे हैं क्या वास्तव में वो बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की विचारधारा को साकार कर रहे हैं या बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के नाम का केवल अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिये उपयोग कर रहे हैं?
                 सर्वप्रथम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय कांग्रेस आदि उनके सहयोगी दलों पर विचार करते हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर0एस0एस0) का उद्देश्य देश में तथाकथित हिन्दू धर्म पर आधारित राज्य व्यवस्था की स्थापना करना है। इस तथाकथित हिन्दू राज्य व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के अनुसार लोगों के अधिकार व कर्तव्य निश्चित होंगे तथा सवर्णों के अतिरिक्त सभी लोगों को मूलभूत मानव अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाएगा। दूसरे शब्दों में शोषित वर्ग के लिये यह असमानतापूर्ण, अन्यायपूर्ण और शोषक राज्य व्यवस्था होगी। इसकी स्थापना के लिये यह साम्प्रदायिक और जातीय दंगों, धार्मिक उन्माद, मनुवादी अत्याचार और शोषित वर्ग के धन के लुटेरे मनुवादियों की धनशक्ति का उपयोग कर रही हैं। इस प्रकार भाजपा और आर0एस0एस0 की मूल विचारधारा 'मनुवाद' है तथा इनका उद्देश्य बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा रचित भारत के संविधान को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाप्त करके मनुवादी व्यवस्था पर आधारित राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करना है। इस प्रकार यह स्पष्ट है भारतीय जनता पार्टी और राष्टीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा 'मनुवाद' तथा 'अम्बेडकरवाद' एक-दूसरे के सर्वथा विपरीत हैं।
यही स्थिति राष्ट्रीय कांग्रेस की भी है। कांग्रेस स्वयं को प्रगतिशील दल के रूप में प्रचारित करती है। लेकिन क्या यह सत्य है? कांग्रेस की घोर मनुवादी और साम्प्रदायिक मानसिकता के विषय में जानने के लिए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की पुस्तक 'कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया (What Congress and Gandhi have done to the Untouchables)' का अध्ययन करना चाहिये। मैं यहाँ पर उक्त पुस्तक में से केवल कुछ उद्धरण ही दे रहा हूँ:-
"वल्लभभाई पटेल कांग्रेस हाई कमान के अग्रिम पंक्ति के सदस्य है। वे केवल इसी भावना से ओत-प्रोत नहीं है कि वे शासक वर्ग से सम्बंधित हैं, वरन उनमें से कुछ लोग इस विचार के हैं कि निम्न जातियों के लोग तिरस्कार करने योग्य हैं और उन्हें दास बने रहना चाहिये तथा कभी शासन करने की इच्छा नहीं करनी चाहिये। वास्तव में उन्हें सर्वसाधारण में ऐसे विचार प्रकट करने में किसी प्रकार की लज्जा और पश्चाताप नहीं प्रतीत हुआ। 1918 में जब गैर-ब्राह्मण लोगों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों ने विधानसभाओं में अपने पृथक प्रतिनिधित्व के लिये आंदोलन आरम्भ किया, तो तिलक (बालगंगाधर) ने शोलापुर में हुई जन सभा में कहा कि "मैं नहीं समझ पा रहा कि तेल निकालने वाले तेली, तमोली, धोबी इत्यादि गैर-ब्राह्मण और पिछड़े वर्ग के लोग विधानसभाओं में क्यों जाना चाहते हैं?" तिलक के विचार से उन वर्गों का कार्य है आदेशों और कानूनों को मानना, क़ानून बनाने की कामना करना नहीं। वर्ष 1942 में लॉर्ड लिनलिथिगो ने विभिन्न वर्गों के 52 गणमान्य भारतीय प्रतिनिधियों को इस बात पर विचार करने के लिये आमंत्रित किया कि उस समय युद्ध (उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था) के अवसर पर भारत सरकार को सहानुभूतिपूर्वक सहयोग देने के लिये कदम उठाये जाने के सम्बन्ध में उनकी क्या राय है? उन आमंत्रित व्यक्तियों में अनुसूचित जातियों के सदस्य भी थे। वल्लभभाई पटेल को वायसराय का यह विचार पसंद नहीं आया कि निम्न जातियों की ऐसी भीड़ आमंत्रित की जाए। उस घटना के तुरंत बाद वल्लभभाई पटेल ने अहमदाबाद में हुई जन सभा में कहा- 'वायसराय ने हिन्दू महासभा के नेताओं को आमंत्रित किया, मुस्लिम लीग के नेताओं को बुलाया है और तेलियों, मोचियों तथा अन्य लोगों को आमंत्रित किया।' यद्यपि पटेल ने अपनी ईर्ष्यालु और कटाक्ष भाषा में तेलियों और मोचियों का नाम विशेष तौर पर लिया परंतु उनका भाषण इस बात का संकेत है कि शासक वर्ग और कांग्रेस हाई कमान के सदस्य इस देश के पिछड़े वर्गों के प्रति कैसी भावनाएं रखते थे।4
               वर्तमान समय में भी कांग्रेस की यही मानसिकता है। शोषित वर्ग का शोषण करने के अतिरिक्त कांग्रेस ने कुछ नहीं किया। वास्तव में जब भाजपा जैसे दलों की राजनीति आरम्भ हुई तब कांग्रेस ने प्रगतिशीलता और धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगा लिया। जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल भी मनुवादियों के ही 'घर' हैं। इनकी राजनीति भी मनुवाद और शोषित वर्ग के धन के लुटेरे मनुवादियों की धनशक्ति पर ही आधारित है।
               अब तथाकथित साम्यवादियों के व्यवहार पर भी विचार कर लेना आवश्यक है क्योंकि भारतीय तथाकथित साम्यवादी लोग शोषित वर्ग के लिये ही संघर्ष करने का दावा करते हैं। परन्तु आज तक का इतिहास है कि इन तथाकथित साम्यवादियों ने कभी भी शोषित जातियों पर मनुवादियों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के विरुध्द संघर्ष नहीं किया। इसके विपरीत उन्होंने सदैव मनुवादियों का ही साथ दिया है। ब्रिटिश शासन में जब बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर शोषित वर्ग के उत्थान हेतु संघर्ष कर रहे थे तब यह तथाकथित साम्यवादी उनके घोर विरोधी रहे और मनुवादियों का साथ देते रहे। इन तथाकथित साम्यवादियों की मनुवादी मानसिकता का वर्णन डॉ0 महादेव लालजी शहारे और डॉ0 नलिनी अनिल गजभिये द्वारा लिखित पुस्तक 'बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर की संघर्षयात्रा एवं सन्देश' में मिलता है, इसी पुस्तक से:-
"जनवरी 1952 के आमचुनाव में दक्षिण बम्बई से शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। बाबा साहेब के विरोध में नारायणराव काजरोलकर थे। बाबा साहेब को 123576 तथा काजरोलकर को 237950 वोट मिले। 50 हजार वोट रद्द हो गए, जो कि सुरक्षित स्थान के लिये हिन्दुओं द्वारा दिये जाने वाले थे। हिन्दुओं ने वोट फाड़ दिए किन्तु बाबा साहेब को वोट नहीं दिये। पी0 एन0 राजभोज लोकसभा के लिये तथा बी0 सी0 काम्बले विधानसभा के लिये निर्वाचित हुए। दिल्ली में बाबा साहेब ने एक बयान में कहा कि चुनावी धांधली की चुनाव आयुक्त द्वारा जांच होनी चाहिये। वे अपनी हार से दुखी नहीं थे किंतु कम्युनिस्ट (साम्यवादी) नेता डांगे (श्रीपद अमृत) ने उनकी पराजय के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगाया, इस पर उन्हें खेद हुआ।"5
             एक और घटना का उल्लेख करते हुए डॉ0 सुरेंद्र अज्ञात ने लिखा है:-
"कम्युनिस्ट नेता डांगे (श्रीपाद अमृत डांगे) ने 1935 में यह शर्मनाक आह्वान किया था कि अम्बेडकर को वोट देने की अपेक्षा वोट फाड़ कर फेंक दो।"6
              इन तथाकथित साम्यवादियों की कार्यपद्धति और मनुवादी मानसिकता का परिचय बाबा साहेब के अनुयायी रहे परिनिर्वृत सोहनलाल शास्त्री जो अस्पृश्य समुदाय से ही थे, द्वारा लिखित पुस्तक 'बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर के सम्पर्क में पच्चीस वर्ष' द्वितीय संस्करण 2013, सम्यक प्रकाशन, दिल्ली में भी मिलता है। उक्त पुस्तक के पृष्ठ 154 से श्री सोहनलाल शास्त्री के ही शब्दों में:-
"बाबा साहेब ने अपने कथन की पुष्टि में तेलंगाना का उदाहरण दिया कि अछूत खेत मजदूरों ने तेलंगाना में बड़े-बड़े जमींदारों की भूमि छीनने में साम्यवादियों के साथ मिलकर संघर्ष किया। उनमें से सैकड़ो व्यक्ति मर भी गए। जब जमीन के बंटवारे का समय आया तो ऊंची जाति के साम्यवादियों ने अछूतों को कहा कि तुम तो खेत मजदूर हो, तुम जमीन लेकर क्या करोगे? जमीन तो उन लोगों को ही मिलेगी जो जमींदारी का काम करते हैं। अर्थात कम्मे, रेड्डी आदि जमींदार। तुम्हें खेत मजदूरी में मेहनताना मिल जायेगा। तुम्हारी मजदूरी की दर हम दुगुना कर देंगे, किंतु तुम्हे जमीन का स्वामी नहीं बनाया जा सकता। क्या यही उदाहरण सारे भारत में  साम्यवादी राज स्थापित होने से चरितार्थ नहीं होगा? जरूर होगा।"
             इस उद्धरण से इन तथाकथित साम्यवादियों की धोखेबाजियों और छल-कपट का पता लगता है। ये लोग मरने-कटने के लिए शोषित जातियों का उपयोग करते हैं लेकिन जब लाभों के न्यायपूर्ण विभाजन की बात आती है तो ये तथाकथित साम्यवादी लोग शोषित जातियों की पीठ में छुरा भोंक देते हैं।
              उपरोक्त पुस्तक के पृष्ठ 155 पर ही इन तथाकथित साम्यवादियों की मनुवादी मानसिकता का भी उल्लेख मिलता है, श्री सोहनलाल शास्त्री के ही शब्दों में:-
"बाबा साहेब का कहना था कि भारत के साम्यवादी जात-पाँत पर तो विचार करते ही नहीं। करेंगे भी क्यों, क्योंकि वह तो जन्मजात उच्च जातियों में पैदा हुए हैं। जिन जातियों को नीचा माना गया है उनका अनादर और अपमान केवल इसलिये ही होता है कि वह निंदित कुलों में जन्मे हैं। भारत का साम्यवादी नेता अपने पितरों का तर्पण करता है। श्राद्ध में विश्वास रखता है। माथे पर धार्मिक चिन्ह (तिलक) आदि लगाने में भी संकोच नहीं करता। मनु द्वारा चारों वर्णों के लिये प्रदान की गयी उपाधियों को या नाम के पश्चात् प्रयोग करने वाले उपनामों अथवा खिताबों को भी जोड़ता है जैसे:- जोशी, नंबूदरीपाद, डांगे, गुप्त आदि , यह सब सवर्ण सूचक चिन्ह हैं। इन उपाधियों से स्पष्ट हो जाता है कि वह किस वर्ण से सम्बन्ध रखते हैं। भारत के प्राचीन साम्राज्यवाद अर्थात चातुर्वर्ण पर प्रहार करना तो वह जानते ही नहीं और ना ही करना चाहते हैं।"
              उपरोक्त पुस्तक के ही पृष्ठ 156 पर तथाकथित साम्यवादियों के छल-कपट और बौद्धिक बेईमानी को उजागर किया गया है;
"लोकमान्य गंगाधर तिलक ने भारत में सर्वप्रथम यह जयघोष किया था कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। किंतु जब समाज सुधारकों ने प्रश्न किया कि जो लोग आज भारत में ऊंच- नीच तथा जाति भेद की विषमता के कारण सवर्ण समाज से पीड़ित हैं, अति दरिद्र तथा समाज में अनादरित और अपमानित हैं, उनका जन्मसिद्ध अधिकार सामाजिक समता क्यों नहीं है? उन्हें सामाजिक और धार्मिक समता जो सवर्णो के हाथ में है पहले देनी चाहिये तब विदेशियों से स्वराज्य प्राप्ति का अधिकार लेना बनता है। तब लोकमान्य तिलक ने उसका उत्तर दिया कि वह हमारा घरेलु मामला है स्वराज्य प्राप्ति के बाद देखा जायेगा। इसी तरह आज का भारतीय साम्यवादी नेता आर्थिक क्रांति को जन्मसिद्ध अधिकार मानता है किंतु वर्ण व्यवस्था, जात-पाँत, ऊंच-नीच की भावना जो इस देश में भरी पड़ी है, जब उसे मिटाने के लिये साम्यवादियों से कहा जाता है तो वह तिलक की भाषा में बोलते हैं कि यह तो हमारा घरेलु मामला है और आर्थिक क्रांति के पश्चात् यह भेद स्वयं ही मिट जाएगा।"
              उपरोक्त पुस्तक के पृष्ठ 157-158 पर भी इन ढोंगियों तथाकथित साम्यवादियों के ढोंग को उजागर किया गया है। श्री सोहनलाल शास्त्री के शब्दों में :-
"दूसरी मिसाल है पी0 सी0 जोशी की। वह भी भारत के प्रसिद्ध साम्यवादी नेता रहे हैं। एक बार मैं एक अछूत जूते बनाने वाले (चमार) को उनके कार्यालय आसिफ अली रोड, दिल्ली में एक सिफारिश कराने के लिए ले गया। यह जूता बनाने वाला अछूत व्यक्ति आगरा में 'भारत शू कम्पनी' के नाम से जूता तैयार कराता था। इसके पास जूते बनाने वाले काफी कारीगर थे जो सभी अछूत थे। उन दिनों के बनिया, गुप्ता लाखों रूपए के जूते 'भारत शू कम्पनी' से खरीद कर रूस को भेजते थे और काफी लाभ कमाते थे। 'भारत शू कम्पनी' का अछूत मालिक मेरे पास आया और उसने कहा कि हम अपने हाथों से जूते तैयार करते हैं मगर इसका विशेष लाभ हमें नहीं मिलता, जबकि गुप्ता (बनिया) हमसे जूते खरीदकर रूस को बेचकर लाखों रुपए कमा रहा है। हम चाहते हैं कि हम सीधा माल रूस को भेजें और जो लाभ एक बनिया कमाता है वह हम दस्तकार कमाएं। इससे अछूत और निर्धन कारीगरों को लाभ होगा। मुझे उसका यह विचार अच्छा लगा। मैं पी0 सी0 जोशी के पास उसे लेकर गया और सारी वार्ता कह सुनाई। जोशी ने मुझे कहा कि तुम चाहते हो कि बनिया के स्थान पर अब चमार लखपति बन जाए। मैंने कहा कि इसमें क्या हर्ज है? रूस को जूता बेचकर मिले लाभ से हाथ से काम करने वाले दस्तकार फायदा उठाएंगे। आपकी पार्टी तो इन श्रमिकों, दस्तकारों के लिये ही झण्डा उठाये हुये है। उस ब्राह्मण साम्यवादी नेता ने साफ-साफ उत्तर दिया कि चमार को लखपति बनाने के लिये वह इसकी रूस से सिफारिश नहीं कर सकते। मैंने क्रुद्ध होकर उत्तर दिया कि ब्राह्मण साम्यवादी होकर भी अछूत के लिये काला नाग ही सिद्ध होता है। वह बनिये को मालदार बना देख सकता है किन्तु चमार को हरगिज नहीं।"
              ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में आज तक जो लोग साम्यवाद का 'लाल' झंडा उठाये हुए घूमते रहे हैं वास्तव में उनके हृदय 'भगवा' रंग में रंगे हुए हैं। वास्तव में इनका तथाकथित साम्यवाद, मनुवाद के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इनके तथाकथित साम्यवाद की परिभाषा सरल, स्पष्ट और संक्षिप्त शब्दों में निम्नलिखित है:-
"मनुवादियों द्वारा मनुवादियों के हित के लिए, मनुवादियों में समानता (जाति व्यवस्था के नियमों के अनुसार एक ही जाति के सदस्यों के बीच केवल मनुवादियों की सामाजिक समानता), स्वतंत्रता (शोषित वर्ग का बिना किसी बाधा के शोषण करने की स्वतंत्रता) और बंधुत्व (मनुवादियों में जाति व्यवस्था के नियमों के अनुसार) के लिए समाज के उत्पादन के साधनों को पूर्णतः मनुवादियों के एकाअधिकार में लाने (वर्तमान में जो अतिसूक्ष्म परिमाण में शोषित वर्ग के अधिकार में भूमि, नौकरियां आदि हैं उनको भी हड़पने के लिए) और इस उत्पादन से प्राप्त सम्पूर्ण लाभों को मनुवादियों के हित में ही उपयोग करने हेतु शोषित वर्ग का निर्बाध शोषण करने के लिये मनुवादियों की चातुर्वर्ण्य व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर आधारित मनुवादी वर्ग की तानाशाही की स्थापना ही 'तथाकथित (मनुवादी) साम्यवाद' है।"
                इस प्रकार सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विभिन्न तथाकथित साम्यवादी दल और इनके जैसे ही अन्य मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दलों की मूल विचारधारा 'मनुवाद' ही है। वास्तव में ये सभी आपस में रक्त संबंधी हैं। इनका एक ही उद्देश्य है कि भारत में मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करना। जब जनता इनके एक रूप से ऊब जाती है तब ये मनुवादी-पूंजीवादी लोग दूसरे रूप में सत्ता पर कब्ज़ा जमा लेते हैं। कांग्रेस, भाजपा या तथाकथित साम्यवादी और इन्ही जैसे मनुवादी राजनीतिक दल बारी-बारी से सत्ता में आते रहते हैं और मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को बचाये रहते हैं।
               अतः निष्कर्ष है कि मनुवादी और उनके सगे भाई तथाकथित साम्यवादी दलों द्वारा बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का नाम, केवल अपने राजनीतिक स्वार्थो को पूरा करने हेतु शोषित वर्ग को भ्रमित करके चुनावों में उनके मत (VOTE) प्राप्त करने के लिये ही प्रयोग किया जा रहा है। वास्तव में ये मनुवादी और उनके सगे भाई तथाकथित साम्यवादी राजनीतिक दल बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की पूजा करने का ढोंग करके बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के विचारों की हत्या करने का षड़यंत्र कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि शोषित वर्ग द्वारा समतामूलक और शोषणमुक्त समाज के निर्माण हेतु चलाये जा रहे संघर्ष में शोषित वर्ग अकेला है और उसे स्वयं अपना नेतृत्व करना है। इस संघर्ष में 'अम्बेडकरवाद' ही उसका मार्गदर्शक है। शोषित वर्ग को इन मनुवादियों से किसी नेतृत्व की आशा नहीं करनी चाहिये। यदि कोई तथाकथित उच्च जाति का व्यक्ति शोषित वर्ग का हितैषी बन रहा है तो अधिकांशतः वह ऐसा केवल मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने के लिए कर रहा है। वास्तव में शोषित वर्ग को दो शत्रुओं से लड़ना है पहला तो मनुवादी वर्ग का वह भाग है जो शोषित वर्ग के विरुद्ध अत्याचारों में प्रत्यक्षतः संलग्न रहता है, इसे रूढ़िवादी मनुवादी भी कह सकते हैं। जबकि दूसरा शत्रु वह है जो शोषित वर्ग पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रहार करता है। ये लोग अपने को 'साम्यवादी' कहते हैं। ये तथाकथित साम्यवादी लोग शोषित वर्ग की पीठ में छुरा भोंकते है। शोषित वर्ग को इन ढोंगियों के मायाजाल में ना फंसते हुए अपना संघर्ष जारी रखने की आवश्यकता है।
                                             ----------- मैत्रेय
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सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वांग्मय, खण्ड-1, पृष्ठ-92, पाँचवां संस्करण 2013, प्रकाशक:- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।
2.डॉ0 अम्बेडकर के पत्र, अनुवादक- डॉ0 वामनराव ढोके, पृष्ठ-22, प्रथम संस्करण- 2015, प्रकाशक- गौतम बुक सेन्टर, दिल्ली।
3.संविधान सभा में डॉ0 अम्बेडकर, संकलनकर्ता- श्याम सिंह, तृतीय संस्करण- 2012, पृष्ठ- 196, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली।
4.कांगेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया, डॉ0 बी0 आर0 अम्बेडकर, पृष्ठ- 208-209, प्रथम संस्करण 2008, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली।
5.बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर की संघर्षयात्रा एवं सन्देश, लेखक- डॉ0 महादेव लालजी शहारे और डॉ0 नलिनी अनिल गजभिये, पृष्ठ- 375, तृतीय संस्करण 2009, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली।
6.जाति, बुद्ध व अम्बेडकर जरूरी, मार्क्स फालतू, लेखक- डॉ0 सुरेन्द्र अज्ञात, संस्करण- 2013, प्रकाशक- सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ- 22.

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