Friday, February 15, 2019

जाति का उन्मूलन

             कुछ तथाकथित 'दलित' बुद्धिजीवी, मनुवादी और उनके सगे भाई तथाकथित साम्यवादी यह दुष्प्रचार करते हैं कि बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने जाति के उन्मूलन हेतु कोई मार्ग नहीं दिखाया है।
             परन्तु बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखित ग्रन्थ 'जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste)' का अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने जाति उन्मूलन हेतु मार्ग बताया है। इस मार्ग का वर्णन करने से पूर्व जाति उन्मूलन से क्या तात्पर्य है इसे समझना अति आवश्यक है। वास्तव में जाति की प्रकृति और उसके उन्मूलन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा है कि:-
"जाति ईंटों की दीवार या कांटेदार तारों की बाड़ जैसी कोई भौतिक वस्तु नहीं है, जो हिन्दुओं को मेल-मिलाप से रोकती हो और इसलिए जिसे तोड़ दिया जाए। जाति तो एक धारणा है, यह एक मानसिक अवस्था है। अतः जाति को नष्ट करने का अर्थ भौतिक रुकावटों को नष्ट करना नहीं है। इसका अर्थ विचारात्मक परिवर्तन से है।"1
             इस प्रकार स्पष्ट है कि जाति एक वैचारिक धारणा है और इसके उन्मूलन से तात्पर्य इस वैचारिक धारणा का उन्मूलन करने से ही है। यहां यह प्रश्न किया जा सकता है कि एक वैचारिक धारणा इतनी शक्तिशाली कैसे हो गयी कि वह सैकड़ों वर्षों से जनसमूह के व्यवहार को नियंत्रित और निर्देशित करती आ रही है?
             लम्बे समय से अस्तित्वमान कोई विचार कैसे जनसमूह के व्यवहार को नियंत्रित और निर्देशित करने लगता है इसका ही उल्लेख करते हुए महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा था कि विचार लम्बी अवधि में लोगों के मस्तिष्क में जड़ीभूत होकर भौतिक वस्तु का रूप धारण कर लेते हैं। जिसके कारण कुछ समय बाद वह विचार जनसमूह के व्यवहार को स्वचालित ढंग से निर्देशित और नियंत्रित करने लगता है और लोगों के लिये उस विचार का उल्लंघन करना कठिन हो जाता है।
              परन्तु यह भी विचारणीय प्रश्न है कि एक वर्ग विभाजित, वर्ण विभाजित और जाति विभाजित समाज में कौन से विचार जनसमूह में जड़ीभूत होते हैं? इसका उल्लेख करते हुए महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा है कि:-
"सत्ताधारी वर्ग के विचार प्रत्येक युग में सत्ताधारी विचार होते हैं, अर्थात जो वर्ग समाज की सत्ताधारी भौतिक शक्ति होता है, वह साथ ही उसकी सत्ताधारी बौद्धिक शक्ति भी होता है। जिस वर्ग के पास भौतिक उत्पादन के साधन होते हैं, उनका साथ ही साथ बौद्धिक उत्पादन पर भी नियन्त्रण रहता है और इस तरह साधारणतया जिन लोगों के पास बौद्धिक उत्पादन के साधन नहीं होते, उनके विचार इस वर्ग के अधीन रखे जाते हैं।"2
              इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुवादी समाज में जाति और जाति व्यवस्था सत्ताधारी वर्ग या प्रभुत्वशाली वर्ग अर्थात मनुवादी वर्ग के विचार हैं। इसी का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा है कि:-
"जाति व्यवस्था एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जो हिन्दू समाज के ऐसे विकृत समुदाय के अहंकार और स्वार्थ की प्रतीक है, जो अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के अनुसार इतने समृद्ध थे कि उन्होंने इस जाति व्यवस्था को प्रचलित किया और इस व्यवस्था को अपनी शक्ति के बल पर अपने से निचले स्तर के लोगों पर बलपूर्वक लागू किया।"3
             इससे यह सिद्ध हो जाता है कि ब्राह्मणों ने सर्वप्रथम समाज को वर्ण व्यवस्था के अनुसार बांटा तत्पश्चात उन्होंने वर्ण व्यवस्था से जाति व्यवस्था का सृजन किया। अतः ब्राह्मणों ने समाज को विखंडित किया। तथाकथित हिन्दू धर्म और राज्य सत्ता का उपयोग करके ब्राह्मणों ने समाज के उत्पादन साधनों और सारी संपत्ति पर अपना और अपने सहयोगियों अर्थात ब्राह्मणवादियों या मनुवादियों का प्रभुत्व स्थापित कर दिया तथा समाज में अपने लिए लाभदायक स्थिति निर्मित कर ली। लेकिन क्योंकि ब्राह्मण समुदाय शोषित जातियों के शोषण पर ही निर्भर रहा इसलिये उन्होंने इन शोषित जातियों को समाज में निम्न स्तर पर बनाये रखने और अपनी प्रमुखता को स्थायी रखने के लिए भी तथाकथित हिन्दू धर्म और राज्य सत्ता का आश्रय लिया। इस कार्य में सहयोग के लिये ब्राह्मणों ने 'श्रेणीगत असमानता (Graded Inequality)' के सिद्धांत को जन्म दिया। जिसका अर्थ है कि वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर ब्राह्मण होगा तथा अन्य वर्ण और जातियाँ भले ही ब्राह्मणों से निम्न स्तर पर होंगी लेकिन वे निम्नता के समान स्तर पर नहीं होंगी बल्कि उनमें भी श्रेणीक्रम होगा। इस प्रकार जाति व्यवस्था में सर्वोच्च स्थान पर ब्राह्मण जातियाँ और निम्नतम स्थान पर अनुसूचित जातियाँ (जिन्हें अस्पृश्य जातियाँ भी कहा जाता है) होती हैं। अन्य जातियाँ इन दोनों सीमाओं के मध्य में आती हैं। इस प्रकार जाति व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य जातियाँ उनसे निम्न स्तर पर हैं किंतु वे निम्नता के समान स्तर पर नहीं हैं। इसी कारण जाति व्यवस्था से सभी जातियाँ समान रूप से पीड़ित भी नहीं हैं। इसी श्रेणीगत असमानता के सिद्धांत के अनुसार आर्थिक संसाधनों और सम्पत्ति का भी असमान वितरण किया गया। अनुसूचित जातियों को शिक्षा प्राप्त करने और सम्पति अर्जित करने के अधिकार से वंचित तो किया ही गया इसके साथ ही साथ उनको मानवीय स्तर से भी नीचे गिराया गया। उनको मानसिक दास बना दिया गया जिससे उनकी शारीरिक दासता स्थाई हो जाए। इस कार्य में ब्राह्मणों ने अन्य जातियों से भी सहयोग लिया और इसके बदले में उन जातियों को लाभ मिला। ब्राह्मणों द्वारा अपनी इस सर्वोच्च स्थिति को बनाये रखने हेतु प्रत्येक उपाय, प्रत्येक साधन, प्रत्येक छल-प्रपंच और धोखाधड़ी को अपनाया गया। ब्राह्मणों ने सदैव अपने स्वार्थों को समाज, राज्य और देश हित से ऊपर रखा।
              इस प्रकार मनुवादी वर्ग ने अपने स्वार्थ हेतु जाति को बलपूर्वक जनसमूह पर थोप दिया। जिस कारण सदियों से मनुवादी अत्याचारों को सहन करते हुए जनसमूह में जाति की धारणा जड़ीभूत होकर उनके व्यवहार को निर्देशित और नियंत्रित करने लगी।
             मनुवादी वर्ग आज भी जाति की धारणा को जीवित रखने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि सत्ताधारी वर्ग अर्थात मनुवादी वर्ग जाति की धारणा को जीवित रखने के लिये निरंतर प्रयत्नशील रहता है। इसका वर्णन करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने भी कहा है कि:-
"जाति के चारों तरफ बनाई गई दीवार अभेध है और जिस सामग्री से इसका निर्माण किया गया है उसमें तर्क और नैतिकता जैसी कोई ज्वलनशील वस्तु नहीं है। इसी दीवार के पीछे ब्राह्मणों की सेना खड़ी है- उन ब्राह्मणों की जो एक बुद्धिजीवी वर्ग है, उन ब्राह्मणों की जो हिन्दुओं के प्राकृतिक नेता हैं, उन ब्राह्मणों की जो वहां भाड़े के सैनिकों के रूप में नहीं बल्कि अपने देश के लिये लड़ती हुई सेना के रूप में हैं।"4
              यदि मनुवादी वर्ग जाति को जीवित रखने के लिये निरंतर प्रयत्नशील नहीं रहता तो यह प्रथा भी विश्व की हजारों अन्य प्राचीन प्रथाओं की तरह विलीन हो चुकी होती और 'भौतिक वस्तु' का रूप धारण नहीं कर पाती।
              जाति और जाति व्यवस्था की मूल प्रकृति को समझने के कारण ही बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि:-
"इस अवसर पर यह स्वीकार करना होगा कि हिन्दू समुदाय द्वारा जाति का पालन करने कारण यह नहीं है कि उनका व्यवहार अमानवीय और अन्यायपूर्ण है। वह जाति को इसलिए मानते हैं, क्योंकि वह अत्यधिक धार्मिक होते हैं। अतः जाति को मानने में लोग दोषी नहीं हैं। मेरे विचार से उनका धर्म दोषी है, जिसके कारण जाति की धारणा का जन्म हुआ है। यदि यह सही है तो यह स्पष्ट है कि वह शत्रु जिसके साथ आपको संघर्ष करना है, वे लोग नहीं हैं जो जाति को मानते हैं, बल्कि वे शास्त्र हैं जिन्होंने उनको जाति के धर्म की शिक्षा दी है।"5
              इसी कारण जाति के उन्मूलन हेतु अन्तर्जातीय भोज और अन्तर्जातीय विवाहों जैसे खोखले उपायों की निरर्थकता का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा है कि:-
"अन्तर्जातीय भोज और अन्तर्जातीय विवाह न करने या समय-समय पर अन्तर्जातीय भोज और अन्तर्जातीय विवाहों का आयोजन न करने के लिये लोगों की आलोचना या उनका उपहास करना वांछित उद्देश्य को प्राप्त करने का एक निरर्थक तरीका है। वास्तविक उपचार यह है कि शास्त्रों से लोगों के विश्वास को समाप्त किया जाए। यदि शास्त्रों ने लोगों के धर्म, विश्वास और विचारों को ढालना जारी रखा तो आप कैसे सफल होंगे? शास्त्रों की सत्ता का विरोध किये बिना,  लोगों को उनकी पवित्रता और दण्ड विधान में विश्वास करने के लिये अनुमति देना और फिर उनके अविवेकी और अमानवीय कार्यों के लिये उन्हें दोष देना और उनकी आलोचना करना सामाजिक सुधार करने का अनुपयुक्त तरीका है।"6
              बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर आगे कहते हैं कि:-
"अन्तर्जातीय भोज और अन्तर्जातीय विवाह के लिये आंदोलन करना और उनका आयोजन करना कृत्रिम साधनों से दिए जाने वाले बलपूर्वक भोजन कराने के समान है। प्रत्येक पुरुष और स्त्री को शास्त्रों के बंधन से मुक्त कराइये, शास्त्रों द्वारा प्रतिष्ठापित हानिकर धारणाओं से उनके मस्तिष्क का पिंड छुडाइये, फिर देखिए वह आपके कहे बिना अपने आप अन्तर्जातीय भोज और अन्तर्जातीय विवाह का आयोजन करेंगे।"7
             जबकि कुछ तथाकथित दलित चिंतक, तथाकथित मनुवादी बुद्धिजीवी और मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी जाति और जाति व्यवस्था के उन्मूलन हेतु अन्तर्जातीय भोज और अन्तर्जातीय विवाह को ही उपाय बताकर चुप्पी साध लेते हैं। ऐसा ये लोग इसलिए करते हैं क्योंकि ये लोग जाति उन्मूलन हेतु बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिये गए वास्तविक समाधान को छुपाना चाहते हैं।
              जाति की वास्तविक प्रकृति को समझते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने इसके उन्मूलन हेतु जो उपाय बताया है, उनके ही शब्दों में:-
"जाति को नष्ट करना, यह सुधार तीसरे वर्ग के अन्तर्गत आता है। लोगों से जांत-पांत त्यागने के लिये कहने का अर्थ- उनको मूल धार्मिक धारणाओं के विपरीत चलने के लिये कहना है। यह स्पष्ट है कि सुधार का पहला और दूसरा मार्ग सरल है। लेकिन तीसरे मार्ग के सुधार में अत्यधिक कार्य करना होगा, जो प्रायः असम्भव-सा है। हिन्दू सामाजिक व्यवस्था को पवित्र मानते हैं। जाति का आधार ईश्वरीय है। अतः आपको उस पवित्रता और देवत्व को नष्ट करना होगा, जो जाति में समाया हुआ है। अंतिम विश्लेषण के रूप में इसका अर्थ यह है कि आपको शास्त्रों और वेदों की सत्ता समाप्त करनी होगी।"8
               बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर आगे कहते हैं कि:-
"लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि आप जाति व्यवस्था में दरार डालना चाहते हैं तो इसके लिये आपको हर हालत में वेदों और शास्त्रों में डायनामाइट लगाना होगा, क्योंकि वेद और शास्त्र किसी भी तर्क को अस्वीकार करते हैं और वेद तथा शास्त्र किसी भी नैतिकता से वंचित करते हैं। आपको 'श्रुति' और 'स्मृति' के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ हितसाधक नहीं होगा।"9
              इसको स्पष्ट करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर कहते हैं कि:-
"इसका तात्पर्य है कि जीवन की मूलभूत धारणाओं में पूर्ण परिवर्तन। इसका तात्पर्य है जीवन के मूल्यों में पूर्ण परिवर्तन। इसका तात्पर्य है कि मनुष्यों और वस्तुओं के प्रति दृष्टिकोण तथा प्रवृत्ति में पूर्ण परिवर्तन। इसका अर्थ है धर्म-परिवर्तन, परन्तु यदि आप इस शब्द को पसन्द नहीं करते तो मैं कहूंगा इसका अर्थ है- नया जीवन। लेकिन एक नया जीवन मृत शरीर में प्रवेश नहीं कर सकता। नया जीवन नए शरीर में ही प्रवेश कर सकता है। इससे पहले कि नया शरीर अस्तित्व में आये और उसमें नया जीवन प्रवेश कर सके, पुराने शरीर को प्रत्येक स्थिति में मरना चाहिए। साधारण शब्दों में, इससे पहले कि नया जीवन आरम्भ हो सके और उसमें स्पंदन हो, पुराने को नष्ट होना चाहिए। यही मेरे कहने का अर्थ है, जब मैंने कहा था कि शास्त्रों की सत्ता को हटाओ और शास्त्रों का धर्म नष्ट कर दो।"10
              इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि जाति का उन्मूलन करना है तो उन कारणों का उन्मूलन करना होगा जिन्होंने जाति को जन्म दिया है और इसकी रक्षा के लिये सतत रूप से प्रयत्नशील हैं। उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि जाति सत्ताधारी वर्ग अर्थात मनुवादी वर्ग का 'विचार' हैं जिसको उसने अपने स्वार्थ के लिये जनसमूह पर थोप दिया है। इन विचारों की तथाकथित हिन्दू धर्म के द्वारा मनुवादी वर्ग निरंतर रक्षा करता रहता है। इसलिए इन विचारों अर्थात इनके प्रतीकों वेद, शास्त्रों और स्मृति पर आधारित तथाकथित हिन्दू धर्म की सत्ता को नष्ट करने के लिये इन विचारों से लाभान्वित हो रहे मनुवादी वर्ग की सत्ता को नष्ट करना होगा। जब तक सत्ताधारी वर्ग अर्थात मनुवादी वर्ग का उन्मूलन नहीं किया जाएगा तब तक सत्ताधारी वर्ग अर्थात मनुवादी वर्ग के सत्ताधारी विचारों का उन्मूलन भी सम्भव नहीं है और तब तक  जाति का उन्मूलन भी नहीं हो सकता।
            परन्तु इसके लिये एक चेतनशील और संगठित शोषित वर्ग की आवश्यकता है जो क्रान्ति द्वारा मनुवादी वर्ग की सत्ता को उखाड़ दे! बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर इस तथ्य को जानते थे परन्तु क्योंकि उस समय शोषित जातियां जो कि शोषित वर्ग का बहुसंख्यक भाग हैं, चेतनशील और संगठित नहीं थीं और क्योंकि एक चेतनाशून्य, स्वाभिमानहीन और असंगठित वर्ग क्रान्ति नहीं कर सकता इसीलिए उन्होंने कहा था कि जाति उन्मूलन का कार्य असम्भव नहीं तो अत्यधिक कठिन अवश्य है।
             इसीलिए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने शोषितों की मनुवादी अत्याचारों से तत्काल मुक्ति हेतु तथाकथित हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धम्म अपनाने का निर्णय किया।
            अतः यह सिद्ध हो जाता है कि जाति के उन्मूलन हेतु बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिये गए इस क्रान्तिकारी उपाय को छुपाने के लिये ही टुकडखोर तथाकथित दलित चिंतक, तथाकथित मनुवादी बुद्धिजीवी और मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठग यह दुष्प्रचार करते हैं कि बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने जाति के उन्मूलन हेतु कोई उपाय नहीं बताया और तथाकथित 'धर्मपरिवर्तन' कर लिया। जबकि यह पूर्णतः असत्य है।
                                         ------------ मैत्रेय
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सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 91, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 68,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
2.जर्मन विचारधारा (The German Ideology), कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स, मार्क्स-एंगेल्स साहित्य और कला, प्रथम संस्करण जनवरी 2006, पृष्ठ- 71, प्रकाशक- राहुल फाउंडेशन, लखनऊ, उत्तर प्रदेश,
और,
The German Ideology, Karl Marx and Frederick Engels, Third Revised Edition 1976, Page- 67, Progress Publishers Moscow.
3.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 69, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 50,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
4.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 99, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 74,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
5.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 91, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 68,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
6.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 91, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 68,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
7.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 92, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 68-69,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
8.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 92-93, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 69,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
9.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 99, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 75,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
10.जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 103, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 78,
Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.

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