Saturday, May 30, 2020

बांटो और राज करो नीति के जनक

यदि मनुवादियों के व्यवहार और उनकी मानसिकता का अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्ट दिखाई देगा कि मनुवादियों ने केवल एक ही शिक्षा ग्रहण की है और वो है अपने अतिरिक्त अन्य सभी जातियों, सम्प्रदायों, धर्मों आदि से घृणा करना। जिस तरह आज मनुवादी लोग मुसलमानों को लक्षित करके साम्प्रदायिक राजनीति कर रहे हैं पहले यही मनुवादी लोग बौद्धों के विरुध्द घृणा का प्रचार किया करते थे। शुंग वंश के ब्राह्मण शासक पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा की थी कि "जो मुझे एक भिक्खु का सिर देगा उसे मैं 100 स्वर्ण मुद्राएं दूंगा!" पुष्यमित्र शुंग ने लाखों बौद्धों का भीषण जनसंहार किया था। पुष्यमित्र शुंग ने ही मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए 84000 स्तूपों को नष्ट कर दिया था। बंगाल के गौड़ वंश के ब्राह्मण राजा शशांक ने विश्व प्रसिद्ध बोधगया के बोधिवृक्ष को कटवा दिया था और बौद्धों का घोर उत्पीड़न किया था। मनुवादी लोग आदि शंकराचार्य के गुण गाते रहते हैं परन्तु उसने ही पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में घूम-घूमकर स्थानीय मनुवादी राजाओं के द्वारा बौद्धों का जनसंहार करवाया तथा बौद्ध विहारों और चैत्यों को नष्ट करवाया। आज भी बौद्धों के प्रति मनुवादियों की घृणा में कोई कमी नहीं आयी है। आज भी देश में बौद्ध स्थलों और बौद्धों पर मनुवादी अत्याचार हो रहे हैं परन्तु मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया इन सूचनाओं को दबा देता है। इस प्रकार मनुवादियों का इतिहास ही अन्य समुदायों से घृणा करने का रहा है। वास्तव में 'मनुवाद' लोगों को जन्म लेते ही अपने अतिरिक्त अन्य सभी व्यक्तियों, समुदायों आदि से 'अत्यधिक घृणा' करने की शिक्षा देता है। ऐसा क्यों है? इसका उत्तर जानने के लिये हमें भारतीय समाजिक व्यवस्था का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।

भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर आधारित मनुवादी समाज है। जाति व्यवस्था मनुष्यों को क्षैतिज ढंग से ही नहीं बल्कि उर्ध्वाधर ढंग से भी विभाजित करती है। प्रत्येक जाति अन्य जातियों से श्रेणीक्रम में ऊपर या नीचे होती है। इस श्रेणीक्रम के अनुसार ही उनके सामाजिक सम्मान, अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का निर्धारण किया गया है। इस श्रेणीक्रम में नीचे से ऊपर जाने पर सम्मान और अधिकारों में वृध्दि होती जाती है जबकि ऊपर से नीचे जाने पर तिरस्कार और कर्तव्यों में वृध्दि तथा सम्मान और अधिकारों में कमी होती जाती है। इसे ही श्रेणीगत असमानता कहा जाता है। मनुवाद जनित वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था और श्रेणीगत असमानता के कारण प्रत्येक मनुवादी व्यक्ति अपने और अपनी जाति के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों और जातियों से घृणा करता है। मनुवादियों के लिये अपने स्वार्थ और अपने जातीय हित ही सर्वोपरि हैं। मनुवादियों की समाज विरोधी मानसिकता के विषय में बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि:-

"हिन्दुओं में उस चेतना का सर्वथा अभाव है, जिसे समाजविज्ञानी 'समग्र वर्ग की चेतना' कहते हैं। उनकी चेतना समग्र वर्ग से सम्बंधित नहीं है। प्रत्येक हिन्दू में जो चेतना पायी जाती है, वह उसकी अपनी ही जाति के बारे में होती है।"1

मनुवादियों ने वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था द्वारा समाज को परस्पर संघर्षरत अनेक टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जाति व्यवस्था के कारण मनुवादी लोगों की मानसिकता किस प्रकार विकृत हो चुकी है इसका वर्णन करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है:-

"जाति प्रथा का हिन्दुओं की नैतिकता पर प्रभाव सामान्यतया सोचनीय है। जाति प्रथा ने सामूहिक चेतना को मार दिया है। जाति प्रथा ने सामूहिक कल्याण की भावना को नष्ट कर दिया है। जाति प्रथा के कारण किसी भी विषय पर सार्वजनिक सहमति का होना असम्भव हो गया है। हिन्दुओं के लिए उनकी जाति ही जनता है। उनका उत्तरदायित्व अपनी जाति तक सीमित है। उनकी निष्ठा अपनी जाति तक सीमित है। गुणों का आधार भी जाति ही है और नैतिकता का आधार भी जाति ही है। सही व्यक्ति के प्रति (अगर वह उनकी अपनी जाति का नहीं है) उनकी सहानुभूति नहीं होती। गुणों की कोई सराहना नहीं है, जरूरतमंद के लिये सहायता नहीं है। दुखियों की पुकार का कोई जवाब नहीं है। अगर सहायता है तो वह केवल जाति मात्र तक सीमित है। सहानुभूति है लेकिन अन्य जातियों के लोगों के लिए नहीं।"2

मनुवादियों ने सत्ताधारी प्रभुत्व वर्ग बनने के लिये ही समाज को विखंडित करके सामाजिक एकता को असम्भव बना दिया। मनुवादी वर्ग यद्यपि सत्ताधारी वर्ग है परन्तु वह एक अल्पसंख्यक वर्ग है जबकि शोषित वर्ग यद्यपि शासित वर्ग है तथापि बहुसंख्यक वर्ग है। मनुवादियों ने समाज को विखंडित करके उसे शत्रु समुदायों के संघर्षरत समूह में परिवर्तित कर दिया। क्योंकि यदि बहुसंख्यक शोषित वर्ग संगठित हो जाएगा तो वह मनुवादियों की सत्ता को उखाड़ कर फेंक देगा। यही कारण है कि मनुवादी वर्ग समाज में विरोधी हितों वाले अन्य सभी समुदायों से घृणा करता है तथा सामाजिक एकता को असम्भव बनाने अर्थात समाज को विखंडित रखने के लिये घृणा का प्रचार करता रहता है। इस प्रकार "बांटो और राज करो" नीति के वास्तविक जनक मनुवादी ही हैं और मनुवादियों की घृणा फैलाने की नीति का मूल उद्देश्य भी लोगों को बांट कर राज करना ही है। यहां इस प्रश्न पर विचार करना भी उचित होगा कि क्या मनुवादियों के 'हृदय परिवर्तन' द्वारा शोषित वर्ग के शोषण का उन्मूलन किया जा सकता है? इसका उत्तर है नहीं। क्योंकि जिस प्रकार खून चूसने वाली जोंक का अस्तित्व ही खून चूसने पर निर्भर है और उसे इसका कोई संज्ञान नहीं है कि जिस प्राणी का खून चूसा जा रहा है उसको कितनी पीड़ा हो रही होगी, उसी प्रकार मनुवादी वर्ग का अस्तित्व भी शोषित वर्ग के शोषण करने पर ही आधारित है और मनुवाद ने मनुवादियों की मानसिकता को इतना विकृत कर दिया है कि उसे इस बात का आभास ही नहीं होता कि उसके स्वार्थों के कारण करोड़ों लोगों का अत्यधिक शोषण हो रहा है। समाज में अपना वर्चस्व बनाये रखने और सत्ताधारी वर्ग बने रहने के लिये ही मनुवादी वर्ग सुनियोजित साम्प्रदायिक और जातीय दंगे करवाता है, शोषित वर्ग की स्त्रियों से बलात्कार और सामूहिक बलात्कार करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुवादियों को समझाकर या उनका हृदय परिवर्तन करके शोषित वर्ग के शोषण का उन्मूलन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार वर्तमान व्यवस्था अर्थात मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन किये बिना शोषित वर्ग के शोषण का अंत नहीं किया जा सकता तथा समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण भी नहीं किया जा सकता।

वास्तव में समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की शिक्षाओं को अपनाकर ही किया जा सकता है। इसलिए शोषितों को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के दिखाए मार्ग पर चलते हुए मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ कर समतामूलक और शोषणमुक्त समाज के सपने को साकार करने के लिये संघर्ष करना चाहिये।

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सन्दर्भ और टिप्पणियां

1.       जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर,

बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड-1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 70, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,

और

Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 50, Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.

2.       जाति का उन्मूलन (The Annihilation of Caste), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर,

बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड-1, पंचम संस्करण 2013, पृष्ठ- 77-78, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,

और

Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 1, Third Edition 2016, Page- 56-57,

Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.


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