Sunday, May 24, 2020

टुकड़खोर या चमचा

वर्ष 2016 में ऊना, गुजरात में शोषित जातियों के युवकों पर हुए अत्याचार, वर्ष 2017 में सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में मनुवादियों द्वारा शोषित जातियों के किये गए जनसंहार और वर्ष 2018 में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में छात्र दिलीप सरोज की मनुवादियों द्वारा की गई जघन्य हत्या आदि घटनाओं द्वारा मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के दलालों के चेहरों से एक बार फिर मुखौटे उतर गए हैं और उनके असली मनुवादी चेहरे सामने गए हैं। यह भी ध्यान देने की बात है कि सहारनपुर में मनुवादी महिलाओं ने मनुवादी पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर शोषित जातियों के घर जलाये, उनकी हत्याएं की, शोषित जातियों की महिलाओं से मनुवादी पुरुषों द्वारा सामूहिक बलात्कार करवाने में सहयोग किया। लेकिन ना तो महिलाओं के अधिकारों की बात झाड़ने वाले लोग और ना ही तथाकथित साम्यवादी ठग सामने आए।  इसके साथ ही अनुसूचित जातियों के टुकड़खोर राजनीतिज्ञ और तथाकथित दलित चिन्तक भी गायब रहे। वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जातियों के 42 सांसदों और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जातियों के 66 विधायकों में से कितने लोगों ने सहारनपुर का दौरा किया? भारतीय संविधान के अनुसार लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिये कुल 84 सीटें आरक्षित हैं। वर्ष 2014 में हुये लोकसभा के निर्वाचनों में भारतीय जनता पार्टी को अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित सीटों में कुल 42 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। जबकि वर्तमान समय मे भाजपा की कुल 271 सीटें हैं। इस प्रकार कुल 271 सीटों में से अनुसूचित जातियों की सीटें 42 हैं जो कि 15.50 प्रतिशत है। जबकि देखा जाए तो कुल 84 सीटों का 50 प्रतिशत अर्थात 42 सीटें भाजपा को मिली। इस प्रकार दोनों ही दृष्टियों से भाजपा को मिली सीटों में अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित सीटों का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश विधान सभा में अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित सीटों की कुल संख्या 86 है। इन 86 सीटों में से भाजपा के हिस्से में 66 सीटें हैं। इसी के साथ भाजपा के सहयोगी दलों अपना दल (सोनेलाल) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को मिली क्रमशः 3 2 सीटों को मिलाने पर यह स्पष्ट है कि अनुसूचित जातियों के 71 विधायक राज्य में वर्तमान में सत्ता पक्ष में हैं। जो कि भाजपा की वर्तमान में कुल सीटों अर्थात 311 में से 66 या 21.15 प्रतिशत है।

इस प्रकार केंद्र सरकार में 42 सांसद और उत्तर प्रदेश सरकार में 71 विधायक अनुसूचित जातियों के हैं। परन्तु इन 113 (42 और 71 का योग) लोगों को क्या किसी ने कभी अनुसूचित जातियों पर प्रतिदिन हो रहे अत्याचारों के विरोध में बोलते हुए देखा या सुना है? ऐसा क्यों है कि अनुसूचित जातियों के इतने अधिक सांसद और विधायक होने पर भी अनुसूचित जातियों पर मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के अत्याचारों में वृद्धि हो रही है? जबकि मनुवादी इन सांसदों और विधायकों को ही अनुसूचित जातियों के वास्तविक प्रतिनिधि कह कर प्रचारित करते हैं। इसी प्रकार अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के सांसदों और विधायकों को मिलाकर देखा जाए तो शोषित वर्ग के प्रतिनिधियों की संख्या बहुत अधिक प्रतीत होती है। परन्तु शोषित वर्ग के ये तथाकथित प्रतिनिधि शोषित वर्ग के लिये नहीं बल्कि मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के हित में कार्य करते हैं और शोषित वर्ग का शोषण करने में मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के दलालों की भूमिका निभाते हैं।

ये तथाकथित प्रतिनिधि शोषित वर्ग के बीच में ही स्थित वे लोग हैं जिनका जन्म तो शोषित वर्ग में ही होता है और ये लोग शोषित वर्ग के हितैषी होने का ढोंग भी करते हैं परन्तु वास्तव में यह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिये मनुवादियों-पूंजीवादियों के तलवे चाटते हैं। इनकोटुकड़खोर, चमचा और मनुवादियों-पूंजीवादियों के तलवे चाटने वालेकहा जा सकता है। शोषित वर्ग के इस शत्रु अर्थात टुकड़खोरों या चमचों का जन्म तो शोषित वर्ग में ही होता है परन्तु ये लोग अपने स्वार्थ और व्यक्तिगत लाभ के लिये शोषित वर्ग से ही विश्वासघात करते हैं। यदि शोषित वर्ग का कोई व्यक्ति शोषितों के लिये समर्पित होकर कार्य कर रहा होता है तो यह टुकड़खोर उसका ही विरोध करते हैं और शोषित वर्ग में भ्रम फैलाते हैं। ऐसे टुकड़खोर प्रत्येक काल में पाए जाते हैं। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के समय में ये टुकड़खोर लोग बाबा साहेब का ही विरोध करते थे और मनुवादियों के तलवे चाटते थे। उसी तरह आज भी ये टुकड़खोर शोषित वर्ग के सच्चे नेताओं का विरोध कर रहे हैं। ये टुकड़खोर शोषित वर्ग के सच्चे नेताओं पर झूठा आरोप लगाते हैं कि उन्होंने शोषित वर्ग के लिये कुछ नहीं किया, परन्तु जब इन टुकड़खोरों से पूछा जाता है कि तुमने शोषित वर्ग के लिये क्या किया? तब ये टुकड़खोर चुप्पी साध लेते हैं।

वर्तमान समय में इन टुकड़खोरों की कार्यप्रणाली पर विचार करने से ज्ञात होता है कि अब ये लोग शोषित वर्ग को भ्रमित करने के लिये बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का नाम तो जपते हैं परन्तु बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के विचारों का पालन नहीं करते। इनकी कार्यप्रणाली यह है कि ये टुकड़खोर जिस जाति विशेष के होते हैं उस जाति विशेष और क्षेत्र के नाम पर अपना समूह बनाते हैं। उस जाति विशेष के लोग इनको अपनी जाति का जानकर इन पर सहज विश्वास कर लेते हैं। परन्तु यहीं पर ये टुकड़खोर विश्वासघाती नीति अपनाते हैं। ये टुकड़खोर इस तरह संगठित किये गए लोगों को शोषित वर्ग के शत्रु अर्थात मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के विरुध्द संघर्ष करने के लिये प्रेरित नहीं करते बल्कि इसके स्थान पर इन लोगों को शोषित वर्ग की ही अन्य जातियों से लड़ा देते हैं। इस प्रकार शोषित वर्ग की विभिन्न जातियों को आपस में ही लड़ा कर ये टुकड़खोर अपनी-अपनी जाति विशेष के 'मुखिया' बन जाते हैं। ये टुकड़खोर लोग शोषित वर्ग के बीच में यह दुष्प्रचार करते हैं कि शोषित वर्ग की अमुक-अमुक जातियों ने अमुक-अमुक जातियों का हिस्सा हड़प लिया है। इस प्रकार जहाँ शोषित वर्ग को संगठित होकर मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के विरुध्द संघर्ष करना चाहिये था उसके स्थान पर ये टुकड़खोर लोग शोषित वर्ग की विभिन्न जातियों के बीच आपसी विवादों को जन्म देते हैं और उनको आपस में ही लड़ा देते हैं। इससे अंतिम रूप से सत्ताधारी वर्ग अर्थात मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग को ही लाभ होता है। क्योंकि ये टुकड़खोर इस तरह शोषित वर्ग में फूट पैदा करके संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में अपने-अपने समूहों के लोगों के मत (VOTE) मनुवादियों-पूंजीवादियों को ही दिलवा देते हैं और इसके पुरस्कारस्वरुप मनुवादियों-पूंजीवादियों से व्यक्तिगत लाभ आदि प्राप्त करते हैं। ये टुकड़खोर जिन जातियों के उद्धारक बनने का दावा करते हैं उन जातियों को कुछ भी लाभ नहीं मिलता, ना ही उनमें अपने शोषण के प्रति चेतना जागृत हो पाती है और ना ही वे अपनी दुर्दशा के लिये जिम्मेदार शत्रुओं अर्थात मनुवादियों-पूंजीवादियों को ही पहचान पाते हैं। इसके विपरीत वे मनुवादियों-पूंजीवादियों को अपना हितैषी समझने लगते हैं और शोषित वर्ग की अन्य जातियों को अपना शत्रु समझते हैं। इससे मनुवादियों-पूंजीवादियों को ही लाभ होता है। ये टुकड़खोर तो अपने स्वार्थों के वशीभूत होकर बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर पर भी जाति विशेष के लिये ही काम करने का आरोप लगाने में भी लज्जा का अनुभव नहीं करते। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने 'महार' नामक जाति में जन्म लिया था। परन्तु बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने जो संघर्ष किया वह किसी जाति विशेष के हित के लिये नहीं बल्कि सम्पूर्ण शोषित वर्ग के हित के लिये किया था। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर द्वारा किये गए संघर्ष का लाभ सम्पूर्ण शोषित वर्ग को प्राप्त हुआ। इसलिये जो टुकड़खोर लोग बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर पर जाति विशेष के हित में पक्षपात करने का आरोप लगाते हैं वो अत्यन्त निकृष्ट मानसिकता के लोग होते हैं।

बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के संघर्ष के परिणामस्वरुप अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों को लोकसभा में, राज्य विधानसभाओं में तथा अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन सरकारी सेवाओं में आरक्षण प्राप्त हुआ। यह आरक्षण किसी जाति विशेष को नहीं बल्कि जातियों के समूहों अर्थात अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग को प्राप्त हुआ। संविधान में किसी जाति विशेष का उल्लेख नहीं किया गया है बल्कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग नामक समूहों का उल्लेख किया गया है, जिनमें हजारों जातियाँ सम्मिलित हैं। परन्तु ये टुकड़खोर इस तथ्य से जानबूझकर आँख मूँद लेते हैं और शोषित जातियों में दुष्प्रचार करते हैं कि आरक्षण में उनका हिस्सा अमुक-अमुक जातियों ने हड़प लिया है। जबकि ये टुकड़खोर यह भी जानते हैं कि सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ लेने की सर्वप्रथम आवश्यकता न्यूनतम शैक्षिक योग्यता अर्जित करने की होती है। यह न्यूनतम शैक्षिक योग्यता शिक्षा प्राप्त करके अर्जित की जाती है। यह सर्वविदित है कि शोषित वर्ग में शिक्षा की स्थिति अत्यंत दयनीय है। इसलिये यदि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों के लोग शिक्षित ही नहीं हो पाएंगे तो वे आरक्षण का लाभ कैसे ले पाएंगे? सत्ताधारी वर्ग अर्थात मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है जिससे शोषित जातियाँ शिक्षित ही हो पाएं जिसके परिणामस्वरूप वे आरक्षण का लाभ भी ले पाएं। वर्तमान समय में केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के सभी संस्थानों में आरक्षित श्रेणी के लाखों पद वर्षों से रिक्त पड़े हुए हैं। शोषित वर्ग के जो लोग कठिनाईयों का सामना करते हुए शिक्षित हो जाते हैं तो मनुवादी पक्षपात के कारण अधिकांशतः बेरोजगार ही रह जाते हैं।

इसी तरह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में आरक्षित स्थानों पर पहुँचने के लिये शोषित जातियों को चुनावों में विजयी होना आवश्यक है। परन्तु चुनावों में विजयी होना असंभव नहीं तो भी अत्यंत कठिन अवश्य है। सर्वप्रथम तो चुनाव लड़ने के लिये धन की आवश्यकता होती है। पर्याप्त धन के अभाव में कोई भी राजनीतिक संगठन कार्य नहीं कर सकता। धन के बिना प्रचार और जनसंपर्क नहीं किया जा सकता। शोषित वर्ग अत्यंत विपन्न वर्ग है। उसके पास जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं जुटाने के लिये भी पर्याप्त धन नहीं है तो वह चुनाव लड़ने के लिये धन कहाँ से लाएगा और भारत में चुनावों में जिस तरह पानी की तरह धन बहाया जाता है उसकी बराबरी करने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। धन के बाद दूसरी कठिनाई जनसमर्थन की आती है। अब यह सत्य तो प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि जब तक वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था का अस्तित्व है तब तक भारतीय समाज में ऐसे व्यक्ति का जन्म लेना असम्भव है जिसकी कोई जाति हो। इसलिये शोषित वर्ग यदि आपसी सहयोग द्वारा धन एकत्रित करके चुनाव लड़ता है तो जो लोग चुनाव में प्रत्याशी बनेंगे वे किसी किसी जाति के तो होंगे ही। परन्तु मनुवादी मानसिकता के कारण उस प्रत्याशी से भिन्न जातियों के शोषित वर्ग के ही लोग उस प्रत्याशी को समर्थन देने में सशंकित रहते हैं। इस स्थिति में टुकड़खोर लोग उस प्रत्याशी से भिन्न जातियों के शोषित वर्ग के लोगों में उस प्रत्याशी के विरुध्द दुष्प्रचार करते हैं जिससे उस प्रत्याशी को शोषित वर्ग की अन्य जातियों के मत मिलना कठिन हो जाता है। यहाँ यह रोचक तथ्य भी है कि शोषित वर्ग की विभिन्न जातियाँ ही शोषित वर्ग के विभिन्न जातियों के प्रत्याशियों को सहजता से मत नहीं देतीं जबकि यही लोग मनुवादियों-पूंजीवादियों को सहजता से मत दे देते हैं परन्तु मनुवादी-पूंजीवादी लोग शोषित जातियों के प्रत्याशियों को कभी भी अपना मत नहीं देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि शोषित वर्ग के प्रत्याशियों का चुनाव जीतना अत्यन्त कठिन हो जाता है। परन्तु मनुवादी-पूंजीवादी लोग धन और सामाजिक व्यवस्था से लाभ उठाकर अपने तलवे चाटने वाले टुकड़खोरों को सरलता से चुनाव में विजयी बना देते हैं। इस प्रकार ये टुकड़खोर लोग शोषित वर्ग को मनुवादियों-पूंजीवादियों के विरुध्द संगठित होने से रोकते हैं और इसके पुरस्कारस्वरूप अपने मनुवादी स्वामियों द्वारा फेंके गए व्यक्तिगत लाभ रुपी टुकड़े प्राप्त करते हैं।

अतः टुकड़खोर लोग शोषित वर्ग को दीमक की तरह अन्दर से खोखला कर रहे हैं। इन टुकडखोरों को पहचानने का तरीका यह है कि शोषितों को यह देखना चाहिए कि जो व्यक्ति शोषित वर्ग का हितैषी होने और उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है उसके कार्यों से किन लोगों को लाभ मिल रहा है? क्या उनके कार्यों से शोषित वर्ग को लाभ मिल रहा है या मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग को। यदि वो व्यक्ति बातें तो शोषित वर्ग के हित की करता है परन्तु उसके कार्यों से मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग को लाभ होता है तो इसका अर्थ है कि वो व्यक्ति शोषित वर्ग का शत्रु यानि 'टुकडखोर' है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का नाम जपता है, उनकी प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाता है या अम्बेडकरवादी होने ढिंढोरा पीटता है परन्तु कार्य सदैव बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की शिक्षाओं के विपरीत करता है तो इसका अर्थ है कि वो व्यक्ति 'टुकडखोर' है। इस प्रकार ये कुछ कसौटियां हैं जिनसे शोषित वर्ग अपने 'सच्चे नेताओं' और 'टुकडखोरों' में पहचान कर सकता है। वास्तव में शोषित वर्ग का सच्चा नेता वही हो सकता है जो बातों से नहीं बल्कि कार्यों से अम्बेडकरवादी हो।

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