Saturday, May 16, 2020

निष्पक्षता के भ्रम से बचो!


प्रायः सरकारी संस्थाएं, राजनीतिज्ञ, तथाकथित बुद्धिजीवी, तथाकथित न्यायाधीश, मीडिया आदि किसी मुद्दे पर कहते रहते हैं कि वो निष्पक्ष हैं। वो वर्गों, वर्णों, जातियों और धर्मों से 'ऊपर' उठकर कार्य करते हैं। परन्तु क्या वास्तव में 'सत्य' यही है?
सर्वप्रथम शोषितों से सम्बंधित निम्नलिखित कुछ घटनाओं और आंकड़ों पर का अध्ययन किया जाए:-
दिनांक 11 जुलाई 1997 को रमाबाई अम्बेडकर नगर, घाटकोपर, मुम्बई, महाराष्ट्र में मनुवादी पुलिस ने अनुसूचित जातियों के 11 व्यक्तियों को गोली से उड़ा दिया। बिहार राज्य के अरवल जिले के गांव में 1 दिसम्बर 1997 को मनुवादी वर्ग के लोगों द्वारा अनुसूचित जातियों के 58 लोगों का जनसंहार किया गया, जिनमें 27 महिलायें तथा 16 बच्चे भी थे, बिहार राज्य के जनपद भोजपुर के गांव बथानी टोला में 11 जुलाई 1996 को मनुवादी वर्ग के लोगों द्वारा अनुसूचित जातियों के 21 लोगों, जिनमें 11 महिलाएं, 6 बच्चे तथा 3 नवजात शिशु भी थे, का जनसंहार किया गया, महाराष्ट्र राज्य के भंडारा जनपद के खेरलांजी गांव में मनुवादी वर्ग के लोगों द्वारा अनुसूचित जातियों के चार व्यक्तियों की हत्या तथा उनके घर की महिलाओं को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र करके घुमाया गया तथा इसी जैसे अनगिनत जनसंहारों, बलात्कार सामूहिक बलात्कार के दोषी मनुवादी आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। भंवरी देवी सामूहिक बलात्कार मामला, एम0 मीना बलात्कार मामला, आर0 चित्रा बलात्कार मामला, मथुरा सामूहिक बलात्कार मामला, सुमन रानी बलात्कार मामला आदि मामलों में मनुवादी तथाकथित न्यायाधीशों द्वारा घोर पक्षपात करते हुए दोषियों को मुक्त कर दिया गया क्योंकि दोषी मनुवादी वर्ग के सदस्य थे।
9 सितम्बर 2012 को हरियाणा के गांव डबरा में अनुसूचित जाति की 16 वर्षीय बालिका के साथ मनुवादी वर्ग के 12 पुरूषों द्वारा तीन घंटे तक सामूहिक बलात्कार किया गया। दोषियो ने अपने मोबाइल फोन (Cell Phone) द्वारा उस कुकृत्य का वीडियो बनाकर वह वीडियो पीड़ित बालिका के पिता को दिखाया। जिसके कारण पीड़ित बालिका के पिता ने आत्महत्या कर ली। दोषियों ने पीड़ित बालिका को यह धमकी भी दी कि यदि उसने या उसके परिजनों ने पुलिस में सूचना दी तो उसके पूरे परिवार की हत्या कर दी जायेगी। पीड़ित बालिका के पिता द्वारा आत्महत्या करने के पश्चात् ही पुलिस ने इस घटना की प्राथमिकी रिपोर्ट लिखी। इसके पहले पुलिस पीड़िता और उसके परिवार को धमकाती रही। रिपोर्ट लिखने के पश्चात् भी पुलिस ने केवल 8 दोषियों को ही गिरफ्तार किया जिन्हें तुरन्त ही जमानत भी मिल गयी। परन्तु 12 में से 4 दोषी तो गिरफ्तार भी नहीं किये गये। लेकिन इस घटना को तो मीडिया में कोई विशेष जगह मिली तो तथाकथित बुद्धिजीवियों, ही समाज सुधारकों, ही महिला अधिकारों की पक्षधर महिला समाज-सुधारकों, ही महिला संगठनों और ही शोषित वर्ग के लिये संघर्ष करने का दावा करने वाले तथाकथित साम्यवादी ठगों ने ही कोई  आवाज  उठायी। चारों ओर घोर सन्नाटा पसरा रहा। ही मोमबत्ती जुलूस निकाले गये, ही दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की गयी। किसी भी महिला के साथ बलात्कार होना अत्यन्त जघन्य अपराध है, फिर वह चाहे किसी भी जाति, सम्प्रदाय और धर्म की हो, चाहे वह धनवान हो या निर्धन परन्तु शोषित जातियों की महिलाओं के साथ यह भेदभाव क्यों किया जाता है?
अभी हाल ही की एक घटना है कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सदस्य श्री दयाशंकर सिंह ने बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन जी सुश्री मायावती को अपशब्द कहे थे। क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया है कि श्री दयाशंकर सिंह द्वारा बहन जी सुश्री मायावती को अपशब्द कहने पर भी देश और उत्तर प्रदेश के महिला आयोगों ने अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया है? ना ही तथाकथित साम्यवादी ठगों ने ही कुछ कहा। ऐसा क्यों? जो राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्य महिला आयोग महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को रोकने के लिए ही बनाये गए है, उन्होंने कोई कार्यवाही क्यों नहीं की? इसके निम्न कारण हो सकते है:-
(1) महिला आयोगों को इसकी सूचना ही ना हो कि इस प्रकार का कोई अपराध हुआ है।
(2)  महिला आयोगों को ये लगा होगा कि यह कोई अपराध नहीं है और इसलिए इस पर संज्ञान लेने की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन जब देश की संसद में यह मामला उठाया गया है तो ऐसा असंभव है कि महिला आयोगों को इसकी सूचना ना हो पायी हो, इसलिए कोई कार्यवाही ना करने का यह कारण नहीं हो सकता कि महिला आयोगों को कोई सूचना ही नहीं मिली।
अब दूसरे कारण के विषय में विचार किया जाए, जब राष्ट्रीय महिला आयोग फिल्म अभिनेता सलमान खान द्वारा अभद्र टिप्पणी करने पर कार्यवाही कर सकता है, तो इस मामले में क्यों नहीं कर सकता। क्या महिला आयोग के शब्दकोष के अनुसार उक्त अपशब्द जिसका श्री दयाशंकर सिंह ने बहन जी सुश्री मायावती के विरुध्द उपयोग किया आपत्तिजनक नहीं है? इससे यही सिद्ध होता है कि राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्य महिला आयोग द्वारा इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं करने के पीछे कोई अन्य कारण होगा।
24 नवंबर 2017 की रात बिहार राज्य में भागलपुर जिले के बिहपुर के झंडापुर गांव में शोषित जाति के एक परिवार के तीन सदस्यों की बर्बर हत्या कर दी गयी। उनकी आंखें निकाल दी गयीं, किसी धारदार हथियार से उनका गला रेत दिया गया। मृतक कनिक राम और 10 साल के बच्चे छोटू का लिंग काट दिया गया, मृतक पत्नी मीना देवी का गला रेत दिया गया। खून से भरे फर्श पर उनकी 14 साल की बेटी तड़प रही थी। उसके बदन पर से कपड़े नोंचकर अलग कर दिये गये। उसके गुप्तांग पर गहरी चोट थी। उसका सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसके सिर पर लोहे के हथियार से हमला किया गया था। परन्तु तो पुलिस ने कुछ किया, ही तथाकथित न्यायपालिका ने कोई संज्ञान लिया और ही मीडिया ने कोई महत्व दिया।
इस तरह के असंख्य मामलों का उल्लेख किया जा सकता है जिनमें यह स्पष्टतः देखा जा सकता है कि राज्य की विभिन्न संस्थाएं घोर पक्षपात करते हुए कार्य करती हैं। ऐसा क्यों है?
इसका उत्तर जानने के लिये हम सबसे पहले तथाकथित भारतीय समाज का विश्लेषण करेंगे। भारतीय समाज की संरचना क्या है? हम सभी जानते हैं कि भारतीय समाज हजारों जातियों, धर्मों और सम्प्रदायों में विभाजित है। भारत में वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के कारण विभिन्न जातियां खान-पान, रीति-रिवाजों और विवाह संबंधों में पृथकता की नीति का पालन करती हैं। भारत में अंतर्जातीय विवाहों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। विभिन्न जातियों के बीच कटुता पायी जाती है। वास्तव में ब्राह्मणों ने सर्वप्रथम समाज को वर्ण व्यवस्था के अनुसार बांटा तत्पश्चात उन्होंने वर्ण व्यवस्था से जाति व्यवस्था का सृजन किया। अतः ब्राह्मणों ने समाज को विखंडित किया। तथाकथित हिन्दू धर्म और राज्य सत्ता का उपयोग करके ब्राह्मणों ने समाज के उत्पादन साधनों और सारी संपत्ति पर अपना और अपने सहयोगियों अर्थात ब्राह्मणवादियों या मनुवादियों का प्रभुत्व स्थापित कर दिया तथा समाज में अपने लिए लाभदायक स्थिति निर्मित कर ली। लेकिन क्योंकि ब्राह्मण समुदाय शोषित जातियों के शोषण पर ही निर्भर रहा इसलिये उन्होंने इन शोषित जातियों को समाज में निम्न स्तर पर बनाये रखने और अपनी प्रमुखता को स्थायी रखने के लिए भी तथाकथित हिन्दू धर्म और राज्य सत्ता का आश्रय लिया। इस कार्य में सहयोग के लिये ब्राह्मणों ने 'श्रेणीगत असमानता (Graded Inequality)' के सिद्धांत को जन्म दिया। जिसका अर्थ है कि वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर ब्राह्मण होगा तथा अन्य वर्ण और जातियाँ भले ही ब्राह्मणों से निम्न स्तर पर होंगी लेकिन वे निम्नता के समान स्तर पर नहीं होंगी बल्कि उनमें भी श्रेणीक्रम होगा। इस प्रकार जाति व्यवस्था में सर्वोच्च स्थान पर ब्राह्मण जातियाँ और निम्नतम स्थान पर अनुसूचित जातियाँ (जिन्हें अस्पृश्य जातियाँ भी कहा जाता है) होती हैं। अन्य जातियाँ इन दोनों सीमाओं के मध्य में आती हैं। इस प्रकार जाति व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य जातियाँ उनसे निम्न स्तर पर हैं किंतु वे निम्नता के समान स्तर पर नहीं हैं। इसी कारण जाति व्यवस्था से सभी जातियाँ समान रूप से पीड़ित भी नहीं हैं। इसी श्रेणीगत असमानता के सिद्धांत के अनुसार आर्थिक संसाधनों और सम्पत्ति का भी असमान वितरण किया गया। अनुसूचित जातियों को शिक्षा प्राप्त करने और सम्पति अर्जित करने के अधिकार से वंचित तो किया ही गया इसके साथ ही साथ उनको मानवीय स्तर से भी नीचे गिराया गया। उनको मानसिक दास बना दिया गया जिससे उनकी शारीरिक दासता स्थाई हो जाए। इस कार्य में ब्राह्मणों ने अन्य जातियों से भी सहयोग लिया और इसके बदले में उन जातियों को लाभ मिला। ब्राह्मणों द्वारा अपनी इस सर्वोच्च स्थिति को बनाये रखने हेतु प्रत्येक उपाय, प्रत्येक साधन, प्रत्येक छल-प्रपंच और धोखाधड़ी को अपनाया गया। ब्राह्मणों ने सदैव अपने स्वार्थों को समाज, राज्य और देश हित से ऊपर रखा। इससे स्पष्ट है कि ब्राह्मण और उनके सहयोगी अर्थात मनुवादी वर्ग समाज का प्रभुत्वशाली और सत्ताधारी वर्ग बन गया। जबकि अनुसूचित जातियाँ और अन्य शोषित लोग उत्पादक समूह होते हुए भी समाज का शोषित वर्ग बना दिया गया। यही स्थिति वर्तमान में भी है। मनुवादी वर्ग की इसी प्रभुत्वशाली स्थिति के कारण राज्य की प्रत्येक संस्था में भी मनुवादियों का ही वर्चस्व है। वर्तमान स्थिति में ये संस्थाएं कोई भी ऐसा कार्य नहीं करतीं जिससे मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के हितों को हानि पहुंचने की संभावना हो।
इसी स्थिति को स्पष्ट करते हुए महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा है कि:-
"आधुनिक राज्य का कार्यकारी मण्डल पूरे बुर्जुआ वर्ग (प्रभुत्वशाली वर्ग) के सम्मिलित हितों का प्रबन्ध करने वाली समिति के अलावा और कुछ नहीं है।"1
प्रभुत्वशाली वर्ग द्वारा शोषितों के शोषण को राज्य का उपयोग करके 'कानूनी' बना दिया जाता है। इसी का उल्लेख करते हुए महान क्रान्तिकारी व्लादिमीर इलिच 'लेनिन' ने कहा है कि:-
"मार्क्स के अनुसार राज्य वर्ग प्रभुत्व का निकाय है, एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न का निकाय है, ऐसी 'व्यवस्था' की सर्जना है, जो वर्गीय टकरावों को मद्धिम करके इस उत्पीड़न को कानूनी और सतत बनाती है।"2
इससे स्पष्ट है कि वर्ग विभाजित, वर्ण विभाजित और जाति विभाजित वर्तमान राज्य की विभिन्न संस्थाएं जैसे प्रशासन, पुलिस, तथाकथित न्यायपालिका, महिला संगठन आदि केवल उन्हीं कार्यों को करती हैं जिनको करने से शोषक मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था पर कोई आँच आये तथा मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग की प्रभुत्वशाली स्थिति बनी रहे। अब क्योंकि शोषित जातियों के उत्थान से मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन हो जाएगा इसीलिए मनुवादी-पूंजीवादी राज्य अपनी सभी संस्थाओं सहित शोषित जातियों का दमन करने में व्यस्त रहता है।
इसी कारण शोषित जातियों की महिलाओं के साथ मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के लोग प्रतिदिन बलात्कार और सामूहिक बलात्कार करते हैं लेकिन तो पुलिस, ही मीडिया और ही तथाकथित न्यायपालिका के कानों पर जूं रेंगती है। शोषित जातियों के लोगों की प्रतिदिन हत्या की जा रही हैं लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
इस प्रकार स्पष्ट है कि वर्तमान राज्य अपनी सभी संस्थाओं सहित 'पक्षपातपूर्ण' ढंग से 'मनुवादी-पूंजीवादी' वर्ग के हित में कार्य कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मनुवादी-पूंजीवादी राज्य और उसकी संस्थाओं द्वारा तथाकथित 'निष्पक्षता' केवल एक सफेद झूठ है। शोषित वर्ग को यह समझ लेना चाहिये कि 'कोई भी संस्था निष्पक्ष नहीं है' तथा 'जो शोषित वर्ग के पक्ष में कार्य नहीं कर रहा है वो मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के पक्ष का है!' शोषितों को जितनी जल्दी यह बातें समझ जाएंगी उतनी ही जल्दी वो पुलिस, प्रशासन, तथाकथित न्यायपालिका आदि अर्थात राज्य द्वारा ठगे जाने से सचेत हो जाएंगे और अपनी मुक्ति हेतु अर्थात समतामूलक और शोषणमुक्त समाज का निर्माण हेतु संघर्ष के लिये तैयार हो जाएंगे। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने शोषितों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि:-
"मेरे दृष्टिकोण में इस देश के श्रमिकों को दो शत्रुओं का मुकाबला करना होगा। वे दो शत्रु हैं 'ब्राह्मणवाद (अर्थात मनुवाद) और पूंजीवाद'"3
स्पष्ट है कि शोषितों को मनुवाद और पूंजीवाद दोनों से एक साथ लड़ना होगा तभी उनके शोषण का उन्मूलन सम्भव हो सकेगा। मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठग मनुवाद को स्पर्श भी नहीं करते तथा पूंजीवाद के विरुध्द ‘शाब्दिक युध्द करते हैं। इस तरह ये तथाकथित साम्यवादी ठग मनुवाद और पूंजीवाद दोनों की ही सुरक्षा करते हैं। शोषितों को इन ठगों से सावधान रहते हुए संघर्ष करना होगा।
-------------------------------------
सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.       कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र (Communist Manifesto), कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स, तीसरा संस्करण- जनवरी 2010, पृष्ठ- 40, प्रकाशक:- राहुल फाउंडेशन, लखनऊ,
Manifesto of the Communist Party, Karl Marx and Frederick Engels, Edition- March 2010, Page- 44, People's Publishing House, New Delhi.
2.       राज्य और क्रान्ति (The State and Revolution), लेनिन, संस्करण- 2002, पृष्ठ- 10, प्रकाशक:- राहुल फाउंडेशन, लखनऊ,
The State and Revolution, Lenin, First Edition- September, 2011,Page- 5, People's Publishing House, New Delhi.
3.       डॉ0 अम्बेडकर के भाषण, भाग 2, संस्करण 2009, पृष्ठ- 53, प्रकाशक:- गौतम बुक सेंटर, दिल्ली,
और Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 17, Part 3, Edition- 4 October 2003, Page- 177, Punisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.

No comments:

Post a Comment