Friday, May 8, 2020

बलात्कार: मनुवादी दमन का साधन


मनुवादियों द्वारा यह प्रचारित जाता है कि भारतीय समाज महिलाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर बहुत संवेदनशील है। सरकार ने महिला अधिकारों के संरक्षण के लिये एक राष्ट्रीय महिला आयोग और विभिन्न राज्यों में राज्य स्तरीय महिला आयोगों का गठन कर रखा है। इसके अतिरिक्त देश भर में हजारों की संख्या में ऐसे गैर-सरकारी संगठन (Non-government Organization) कार्य कर रहे हैं जो महिला अधिकारों के संरक्षण के लिये संघर्ष करने का दावा करते हैं। प्रायः शासन में महिला अधिकारों और महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु पृथक मंत्रालय का गठन भी किया जाता है। इस प्रकार ऐसा लगता है कि देश में महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिये तंत्रों की कोई कमी नहीं है। परन्तु इन महिला अधिकार संगठनों की कार्य प्रणाली में दोहरी मानसिकता का आभास होता है। शोषित जातियों की महिलाओं पर हुए अत्याचारों के संबंध में इन महिला संगठनों की कार्य प्रणाली घोर असंतोषजनक होती है। इसको स्पष्ट रूप से समझने के लिये विभिन्न महिला संगठनों के कार्यों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। सोलह दिसम्बर 2012 को दिल्ली में चिकित्सा विज्ञान की एक छात्रा के साथ बस में हुई बलात्कार की घटना के बाद मीडिया ने सम्पूर्ण देश में इस घटना को कई दिनों तक दिखाया और अभियान चलाकर दोषियों को सजा दिलवाने के लिए सरकार पर दबाव डाला। विभिन्न महिला संगठनों और गैर-सरकारी संगठनो ने भी कई दिनों तक दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया। तथाकथित बुद्धिजीवियों, महिला समाज-सुधारकों, तथाकथित साम्यवादियों और महिला हितों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले संगठनों ने महिला अधिकारों के पक्ष में लम्बे-लम्बे भाषण दिये। बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग के लिए मोमबत्ती लेकर जुलूस निकाले गये। देश में ऐसा वातावरण बनाया गया कि लगा भविष्य में देश की किसी भी महिला के साथ बलात्कार होने पर सदैव ऐसा ही विरोध प्रदर्शन और सरकारी कार्यवाही होगी। लेकिन क्या यही सच है? वास्तविकता यह नहीं है।
दिल्ली की 16 दिसम्बर 2012 की घटना से तीन महीने ही पहले 9 सितम्बर 2012 को हरियाणा के गांव डबरा में अनुसूचित जाति की 16 वर्षीय बालिका के साथ मनुवादी वर्ग के 12 पुरूषों द्वारा तीन घंटे तक सामूहिक बलात्कार किया गया। दोषियो ने अपने मोबाइल फोन (Cell Phone) द्वारा उस कुकृत्य का वीडियो बनाकर वह वीडियो पीड़ित बालिका के पिता को दिखाया। जिसके कारण पीड़ित बालिका के पिता ने आत्महत्या कर ली। दोषियों ने पीड़ित बालिका को यह धमकी भी दी कि यदि उसने या उसके परिवारवालों ने पुलिस में सूचना दी तो उसके पूरे परिवार की हत्या कर दी जायेगी। इसके बाद भी पीड़ित बालिका ने पुलिस में शिकायत की। परन्तु पुलिस ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया। बल्कि पुलिस पीड़ित बालिका पर ही दबाव बनाने लगी। पीड़ित बालिका के पिता द्वारा आत्महत्या करने के पश्चात् ही पुलिस ने इस घटना की प्राथमिकी रिपोर्ट लिखी। इसके पहले पुलिस पीड़िता और उसके परिवार को डराती-धमकाती रही। रिपोर्ट लिखने के पश्चात् भी पुलिस ने केवल 8 दोषियों को ही गिरफ्तार किया जिन्हें तुरन्त ही जमानत भी मिल गयी। परन्तु 12 में से 4 दोषी तो गिरफ्तार भी नहीं किये गये। लेकिन इस घटना को तो मीडिया में कोई विशेष जगह मिली तो तथाकथित बुद्धिजीवियों, ही समाज सुधारकों, ही महिला अधिकारों की पक्षधर महिला समाज-सुधारकों, ही महिला संगठनों और ही शोषित वर्ग के लिये संघर्ष करने का दावा करने वाले तथाकथित साम्यवादियों ने ही कोई आवाज उठायी। चारों ओर घोर सन्नाटा पसरा रहा। ही मोमबत्ती लेकर जुलूस निकाले गये, ही दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की गयी, क्यों?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जातियों की महिलाओं के साथ बलात्कार के पंजीकृत मामले सारणी 1 में दिये गए हैं:-


सारणी 1
विभिन्न वर्षो में अनुसूचित जातियों की महिलाओं के साथ बलात्कार के पंजीकृत मामले
वर्ष
बलात्कार के पंजीकृत मामले
बलात्कार के प्रतिदिन औसत पंजीकृत मामले
1981
604
2
1986
727
2
1991
784
2
1996
949
2
1997
1037
3
1998
923
2
1999
1000
3
2000
1034
3
2001
1316
3
2002
1331
3
2003
1089
3
2004
1157
3
2005
1172
3
2006
1217
3
2007
1349
3
2008
1457
4
2009
1346
3
2010
1349
3
2011
1557
4
2012
1576
4
2013
2073
6
2014
2233
6
2015
2326
7
2016
2541
7
                  (स्रोत:- राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्टो के आधार पर)
इस प्रकार सारणी 1 से स्पष्ट है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जातियों की महिलाओं के साथ वर्ष 2012 में 1576, वर्ष 2013 में 2073,  वर्ष 2014 में 2233, वर्ष 2015 में 2326 और वर्ष 2016 में 2541 बलात्कार के मामले पंजीकृत हुए। क्या इनके लिए त्वरित न्यायालयों (Fast Track Courts) का गठन करके इनकी त्वरित सुनवाई की व्यवस्था की गयी? क्या इनके लिए मोमबत्ती लेकर जुलूस निकले? राष्ट्रीय अपराध अभिलेख संस्थान (NCRB) की वर्ष 2016 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जातियों की औसतन 7 महिलाओं के साथ प्रतिदिन बलात्कार की घटना होती है। यहाँ यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि अनुसूचित जातियों की महिलाओं से हुए बलात्कार के कुल मामलों के एक प्रतिशत से भी कम मामले ही पुलिस द्वारा पंजीकृत किये जाते हैं। अतः अनुसूचित जातियों की महिलाओं से होने वाले बलात्कार के वास्तविक आंकड़े इन सरकारी आंकड़ों से अत्यधिक होते हैं।
किसी भी महिला के साथ बलात्कार होना अत्यन्त जघन्य अपराध है, फिर वह चाहे किसी भी जाति, सम्प्रदाय और धर्म की हो, चाहे वह धनवान हो या निर्धन परन्तु शोषित जातियों की महिलाओं के साथ यह भेदभाव क्यों किया जाता है? इसका कारण यह है कि मनुवादी-पूँजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करके अपने शोषण और दासता का अंत करने से शोषित जातियों को रोकने के लिये मनुवादी वर्ग प्रत्येक साधन अपनाता है और शोषित जातियों को कुचल डालना चाहता है। इस कार्य में मनुवादी वर्ग प्रत्येक संस्थान का शोषितों के विरुध्द प्रयोग करता है। मनुवादी प्रशासन, मनुवादी पुलिस, मनुवादी तथाकथित न्यायपालिका, मनुवादी-पूँजीवादी दलाल मीडिया आदि मनुवादी संस्थानों द्वारा मनुवादी वर्ग शोषितों का दमन करता है। मनुवादी वर्ग अपने विरुध्द उठने वाली प्रत्येक आवाज को दबाने के लिये नीचतापूर्ण कृत्यों को करने में भी नहीं हिचकिचाता। वास्तव में मनुवादी वर्ग शोषितों के दमन को संगठित संस्थान का रूप दे देता है। इसी मनुवादी सांस्थानिक दमन का एक रूप मनुवादी वर्ग द्वारा शोषित जातियों की महिलाओं से किये जाने वाले बलात्कार और सामूहिक बलात्कार हैं। वर्तमान मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादक वर्ग का मुख्य संघटक शोषित जातियों के लोग ही हैं। शोषित जातियों के लोग ही अपने श्रम से उत्पादन कर रहे हैं परन्तु प्रभुत्वशाली वर्ग अर्थात मनुवादी वर्ग शोषित जातियों का शोषण करके लाभान्वित हो रहा है। इसीलिए मनुवादी वर्ग अपनी लाभदायक स्थिति को बनाये रखने के लिए उत्पादक वर्ग यानि शोषित जातियों के विरोध का बलपूर्वक दमन करता है। मनुवादी वर्ग दमन के एक साधन के रूप में बलात्कार को अपनाता है, क्योंकि किसी भी समुदाय की महिलाओं का अपमान उस पूरे समुदाय के मनोबल को तोड़ता है तथा उनके  आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है।
यही कारण है कि शोषित जातियों की महिलाओं से मनुवादियों द्वारा बलात्कार और सामूहिक बलात्कार करने के बावजूद पुलिस, प्रशासन, तथाकथित न्यायपालिका, मीडिया, विभिन्न महिला आयोग, महिला संगठन, तथाकथित साम्यवादी आदि चुप्पी साधे रहते हैं। क्योंकि ये विभिन्न मनुवादी संस्थान जानते हैं कि शोषित जातियों की महिलाओं से बलात्कार और सामूहिक बलात्कार मनुवादी दमन नीति का ही हिस्सा है और यह मनुवादियों के हित के लिये ही किया जा रहा है।
इसलिये मनुवादियों के इन नीचतापूर्ण कृत्यों को समाप्त करने के लिये पहले मनुवादी-पूँजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करना आवश्यक है और मनुवादी-पूँजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करने के लिये शोषितों को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की शिक्षाओं को आत्मसात करके संगठित होकर संघर्ष करने की आवश्यकता है। शोषितों को इस संघर्ष में मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठगों से भी सावधान रहना होगा।
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