विभिन्न सामाजिक समूहों की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करने पर इन समूहों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति अधिक स्पष्ट होगी। आंकड़ों के अनुसार निर्धनता रेखा से नीचे विभिन्न समूहों के लोगों की प्रतिशत स्थिति निम्न प्रकार हैः-
सारणी-113
सामाजिक समूहों में निर्धनता 1993-94 से 2011-12
सामाजिक समूह
|
कुल जनसँख्या में प्रतिशत
|
तेंदुलकर
रेखा से नीचे जनसँख्या का प्रतिशत
|
निर्धनता
में प्रतिशत कमी
|
|||||
|
2011-12
|
1993-
94
|
2004-
05
|
2009-
10
|
2011-
12
|
1993-94 to
2004-05
|
2004-05 to
2011-12
|
|
|
ग्रामीण
|
|||||||
ST
|
11.1
|
65.9
|
62.3
|
47.4
|
45.3
|
3.7
|
16.9
|
|
SC
|
20.8
|
62.4
|
53.5
|
42.3
|
31.5
|
8.9
|
22.0
|
|
OBC
|
45.0
|
44.0
|
39.8
|
31.9
|
22.7
|
9.0*
|
17.1
|
|
FC (अगड़ी जातियां)
|
23.0
|
27.1
|
21.0
|
15.5
|
11.6
|
|||
All
|
100.0
|
50.3
|
41.8
|
33.3
|
25.4
|
8.5
|
16.4
|
|
|
नगरीय
|
|||||||
ST
|
3.5
|
41.1
|
35.5
|
30.4
|
24.1
|
5.6
|
11.4
|
|
SC
|
14.6
|
51.7
|
40.6
|
34.1
|
21.7
|
11.1
|
18.8
|
|
OBC
|
41.6
|
28.2
|
30.6
|
24.3
|
15.4
|
5.8*
|
15.2
|
|
FC
(अगड़ी जातियां)
|
40.3
|
16.1
|
12.4
|
8.1
|
8.0
|
|||
All
|
100.0
|
31.9
|
25.7
|
20.9
|
13.7
|
6.2
|
12.0
|
|
|
ग्रामीण
+ नगरीय
|
|||||||
ST
|
8.9
|
63.7
|
60.0
|
45.6
|
43.0
|
3.7
|
17.0
|
|
SC
|
19.0
|
60.5
|
50.9
|
40.6
|
29.4
|
9.6
|
21.5
|
|
OBC
|
44.1
|
39.5
|
37.8
|
30.0
|
20.7
|
8.1*
|
17.1
|
|
FC
(अगड़ी जातियां)
|
28.0
|
23.0
|
17.6
|
12.5
|
10.5
|
|||
All
|
100.0
|
45.7
|
37.7
|
29.9
|
22.0
|
8.0
|
15.7
|
|
* Estimated
using comparable estimates of poverty among the OBC and FC combined in
2004-05,
which came down to 35% (Rural), 22.5% (Urban) and 31.4% (Rural + Urban)
in 2004-05.
इस प्रकार आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि देश की अधिकांश जनसंख्या निर्धन है और इस निर्धन जनसंख्या का अधिकांश भाग अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लोगों में से हैं। परन्तु अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की इस स्थिति में कुछ मूलभूत अन्तर हैं, जो उनकी सामाजिक स्थिति को प्रभावित करते हैं। अनुसूचित जनजातियों तथा अनुसूचित जातियों की स्थिति के विषय में यह अन्तर है कि अनुसूचित जनजातियों की वर्तमान निम्न आर्थिक स्थिति का कारण यह है कि अनुसूचित जनजातियों का अधिकांश भाग आज भी पृथक क्षेत्रों में निवास करता है। आज भी अधिकांश अनुसूचित जनजातियों के लोगों का गैर-अनुसूचित जनजाति के लोगों से कम सम्पर्क होता है। परन्तु अनुसूचित जातियों की स्थिति इससे पूरी तरह भिन्न है। चाहे गाँव हो या नगर, अनुसूचित जातियों के लोगों की जनसंख्या सदैव गैर-अनुसूचित जातियों के लोगों से घिरी रहती है। इसलिए मनुवादियों का अनुसूचित जातियों पर दबाव सदैव बना रहता है। यद्यपि गैर-अनुसूचित जातियों के लोगों में भी आपसी मतभेद होते हैं परन्तु मनुवादी मानसिकता के कारण अनुसूचित जातियों का शोषण करने और उनको दबा कर रखने में गैर-अनुसूचित जातियों और समुदायों के लोग मनुवादियों का ही साथ देते हैं। मनुवादी मानसिकता के कारण तथाकथित हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के लोग अर्थात मुस्लिम आदि भी अनुसूचित जातियों से घृणा करते हैं। इस प्रकार अनुसूचित जनजातियों तथा अनुसूचित जातियों की निर्धनता के कारणों में भी भिन्नता है। अनुसूचित जनजातियों की वर्तमान निम्न आर्थिक स्थिति का कारण है कि अपनी पृथकता के कारण वे आधुनिक शिक्षा, वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान से वंचित कर दिए गए। जिस कारण उनकी सभ्यता पिछड़ी रह गयी। जब मनुवादी लोग उनके क्षेत्रों में गए तो उन्होंने उनके क्षेत्रों और संसाधनों पर सत्ता का प्रयोग करके अधिकार कर लिया। जिस कारण अधिकांश अनुसूचित जनजातियां अपने संसाधनों से वंचित कर दी गईं।
जबकि अनुसूचित जातियों के विकास को मनुवादी वर्ग द्वारा योजनाबद्ध तरीके से रोका गया है। प्राचीन काल से ही अनुसूचित जातियों को शिक्षा के अधिकार, स्वतन्त्रता के अधिकार व सम्पत्ति अर्जित करने के अधिकार आदि मानवाधिकारों से वंचित रखा गया। यदि किसी ने विरोध किया तो उसके कानों में सीसा पिघलाकर डाला गया और जीभ काट ली गयी आदि अत्याचार किये गये। इस विषय में अधिक जानने के लिये मनुवादियों के तथाकथित धर्मग्रंथों, मनुस्मति और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया जा सकता है। इस प्रकार सदियों से योजनाबद्ध तरीके से अनुसूचित जातियों को दास और निर्धन बनाकर रखा गया। इसी कारण भारतीय संविधान लागू होने के पश्चात् भी उनकी आर्थिक स्थिति में आशानुरूप परिवर्तन नहीं आया है।
इससे स्पष्ट है कि देश की कुल निर्धन जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग अनुसूचित जातियों में से ही है। इसी के साथ अनुसूचित जनजातियों, धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे- मुस्लिमों, सिखों और ईसाईयों आदि की तथाकथित निम्न जातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग की अधिकांश जातियों के लोगों को भी लेने पर स्पष्ट हो जाता है कि समाज का शोषित वर्ग घोर निर्धनता में जीवनयापन कर रहा है। जबकि शोषित वर्ग की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का अधिकांश भाग है। इस प्रकार शोषित वर्ग के पास मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु धन नहीं है तो फिर उसके पास तथाकथित 'काला धन' कैसे हो सकता है? तो तथाकथित काला धन किसके पास है? क्योंकि जिस वर्ग या व्यक्ति के पास 'काला धन' होगा वो वर्ग या व्यक्ति ही आर्थिक भ्रष्टाचार में लिप्त होगा। वास्तव में जो वर्ग या व्यक्ति किसी अन्य वर्ग या व्यक्ति के श्रम का शोषण करता है अर्थात जो उत्पादक वर्ग नहीं है, उसके पास ही 'काला धन' संचित हो सकता है। परिणामस्वरूप वही वर्ग या व्यक्ति आर्थिक भ्रष्टाचार में लिप्त होगा।
आज तक के ज्ञात इतिहास में सभी वर्ग विभाजित समाजों में एक वर्ग होता है जो शारीरिक श्रम द्वारा समाज के लिये उत्पादन करता है जबकि एक वर्ग होता है जो उत्पादक श्रम नहीं करता परन्तु सामाजिक उत्पादन पर नियंत्रण का अधिकार रखता है। इस प्रकार यह वर्ग उत्पादक श्रम करने वाले वर्ग के शोषण पर जीवित रहने वाला परजीवी वर्ग होता है। विभिन्न छल-प्रपंचों के द्वारा दूसरों के शोषण पर जीवित रहने वाला यह परजीवी वर्ग ही सत्ताधारी वर्ग होता है। मनुवादी समाज में उत्पादक श्रम करने वाला वर्ग अर्थात शोषित वर्ग अधिकांशतः शोषित जातियों से निर्मित है। जबकि शोषित जातियों के श्रम के शोषण पर जीवित रहने वाला वर्ग मनुवादी वर्ग है। वर्तमान समय में मनुवादी व्यवस्था तथा पूँजीवादी व्यवस्था के गठजोड़ के कारण यह मनुवादी वर्ग ही पूंजीपति वर्ग भी बन चुका है। जबकि श्रमिक वर्ग अर्थात शोषित वर्ग में अधिकांशतः शोषित जातियां हैं। अब यह तो स्पष्ट है कि उत्पादक श्रम करने वाला व्यक्ति और वर्ग भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। भ्रष्टाचार वही व्यक्ति और वर्ग कर सकता है तो उत्पादक श्रम नहीं करता है। इस प्रकार श्रमिक और कृषक समूह ही ऐसे समूह हैं जो अर्थव्यवस्था में उत्पादक श्रम करते हैं। यहां यह ध्यान रखने की बात है कि यदि किसान स्वयं बिना किसी श्रमिक की सहायता के कृषि करता है तो वो भ्रष्टाचार नहीं कर सकता परन्तु यदि वो किसी श्रमिक या श्रमिकों की सहायता से कृषि करता है तब यदि वो उन श्रमिकों को उनके श्रम का उचित प्रतिफल नहीं देता है और इस प्रकार उनके श्रम का शोषण करता है तो इसका अर्थ है कि वो किसान भी भ्रष्टाचार में लिप्त है।
इस प्रकार जो व्यक्ति और वर्ग किसी अन्य व्यक्ति और वर्ग के श्रम का प्रत्यक्ष या परोक्ष शोषण करता है या शोषण में मध्यस्थ की भूमिका निभाता है, वही व्यक्ति और वर्ग भ्रष्टाचार कर सकता है। वर्तमान भारतीय मनुवादी समाज में शोषित वर्ग के श्रम का शोषण करने वाला वर्ग मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग है। इसीलिए मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग ही 'आर्थिक भ्रष्टाचारी वर्ग' भी है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र के अधिकांश स्थानों पर ये मनुवादी-पूंजीवादी ही बैठे हुए दिखाई देते हैं। किसी भी सरकारी या निजी कम्पनी के कार्यालय में चले जाईये अधिकांश स्थानों पर यही मनुवादी-पूंजीवादी लोग दिखाई देंगे। भ्रष्टाचार के सार्वजनिक स्थानों, मन्दिरों, मठों आदि में भी यही मनुवादी-पूंजीवादी ही दिखाई देंगे। बैकों के बड़े-बड़े ऋण हड़प कर जाने वालों की सूची में भी यही मनुवादी-पूंजीवादी लोग ही हैं। लगभग 9000 करोड़ रुपये हड़प जाने वाले श्री विजय माल्या मनुवादी-पूंजीवादी ही है।
अब तक केवल आर्थिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार का ही विश्लेषण किया गया है। परन्तु ऊपर भ्रष्टाचार की व्यापक परिभाषा में स्पष्ट कर ही दिया गया है कि प्रत्येक वो व्यक्ति और वर्ग जो समानता, स्वतंत्रता और मैत्री के आदर्श का उल्लंघन करता है, भ्रष्टाचारी है। इस
परिभाषा के अनुसार भी सिध्द हो जाता है कि भारत में मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग ही 'भ्रष्टाचारी वर्ग' भी है। क्योंकि मनुवादियों ने विश्व की सर्वाधिक घृणित और शोषक प्रथाओं उदाहरणार्थ वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था आदि को जन्म दिया। इसके कारण समाज के करोड़ों लोग हजारों वर्षों से पशुओं से भी निकृष्ट जीवन जीने को बलपूर्वक विवश कर दिए गए। देवदासी प्रथा और वेश्यावृत्ति को जातिगत पेशा मनुवादियों ने ही बनाया और शोषित जातियों की स्त्रियों का शोषण किया। स्वार्थ के लिये साम्प्रदायिक और जातीय दंगे करवाना, सरकारी तथा निजी क्षेत्र में नियुक्तियों में शोषित वर्ग के प्रत्याशियों को दुर्भावनावश नियुक्त नहीं करना, शोषित वर्ग के प्रत्याशियों को दुर्भावनावश अनुत्तीर्ण कर देना, शोषित वर्ग की महिलाओं से मनुवादियों द्वारा बलात्कार और सामूहिक बलात्कार करना, राजनीतिक चुनावों के समय शोषित वर्ग के मतों को विभिन्न साधनों से अपने पक्ष में डलवाना आदि इस मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के सामाजिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण हैं। वास्तव में जिस वर्ग का उत्पादन साधनों पर अधिकार होता है वो वर्ग ही सत्ताधारी वर्ग होता है। फलस्वरूप उस वर्ग के हाथों में ही आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शक्ति होती है। इसी कारण वो वर्ग ही अपने स्वार्थवश भ्रष्टाचार को जन्म देता है।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक, किसी भी क्षेत्र को लिया जाए तो मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग ही भ्रष्टाचारी वर्ग सिद्ध होता है। इसलिये समग्र रूप में यह कहा जा सकता है कि भारत में मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग ही शोषित वर्ग के श्रम का शोषण कर रहा है और इस प्रकार सार्वभौमिक आदर्श और मूल्यों का उल्लंघन कर रहा है अतः मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग ही भ्रष्टाचारी वर्ग है।
उपरोक्त विश्लेषण से यह तथ्य भी प्रकट हो जाता है कि भ्रष्टाचार की समस्या को 'व्यक्ति आधारित' नहीं बल्कि 'वर्ग आधारित' दृष्टि से देखने की आवश्यकता है क्योंकि भ्रष्टाचार व्यक्तिजनित नहीं बल्कि व्यवस्थाजनित होता है और इसी कारण भ्रष्टाचार का उन्मूलन तब तक नहीं हो सकता जब तक एक वर्ग दूसरे वर्ग के श्रम का शोषण करने की स्थिति में रहेगा। इसलिये भ्रष्टाचार का उन्मूलन करने के लिये शोषित वर्ग के शोषण पर आधारित मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग की सत्ता अर्थात मनुवादी-पूँजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करना होगा। तत्पश्चात निर्मित वर्गहीन, वर्णहीन, जातिहीन, समतामूलक और शोषणमुक्त समाज में ही भ्रष्टाचार का अस्तित्व नहीं होगा।
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सन्दर्भ और टिप्पणियां
1. Report on
Employment and Unemployment Survey (2012-2013), Bureau of Labour Statistics,
Indian Government.
2. Planning
Commission of India, 'Labour Laws and other Labour Regulation'. The Government
of India.
3. Economic
Survey 2010- 2011,The Government of India, 2012.
4. 'योजना', अक्टूबर अंक 2014, 'भारतीय असंगठित अर्थव्यवस्था की भूमिका' बारबरा हैरिस व्हाइट।
5. 'योजना', अक्टूबर अंक 2014, 'हाशिये से उठकर अर्थव्यवस्था का केंद्र बनने की क्षमता' प्रवीण शुक्ला।
6. 'Number and
Percentage of Population Below Poverty Line' Reserve Bank of India 2012.
7. Policy
Research working paper, 4620, 'Dollar a day revisited Martin Ravallion, Shaohua
Chan, Prem Sangrah lai, The World Bank Development Research Group, May 2008.
8. कृषि जनगणना 2005- 06 और 2010-11, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार।
9. Reuters,
'Nearly 80 percent of India Lives on half Dollar a day' August 10, 2007.
10. राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ, बिगुल पुस्तिका-14, "बोलते आँकड़े, चीखती सच्चाइयां" पृष्ठ- 05.
11. राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ, बिगुल पुस्तिका-14, "बोलते आँकड़े, चीखती सच्चाइयां" पृष्ठ- 10-11.
12. राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ, बिगुल पुस्तिका-14, "बोलते आँकड़े, चीखती सच्चाइयां" पृष्ठ- 04-05.
13. Poverty by
Social, Religious and Economic Groups in India and Its Largest States 1993-94
to 2011-12, Arvind Panagariya and Vishal More, School of International and
Public Affairs ISERP, Institute for Social and Economic Research and Policy
Working Paper No 2013-02, Page-06-07, Publisher- Program on Indian Economic
Policies, Columbia University.
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