Thursday, May 21, 2020

पथप्रदर्शक दल की आवश्यकता


कोरोना वायरस संक्रमण महामारी को कारण बता कर मनुवादी-पूंजीवादी सरकार द्वारा घोषित किये गए तथाकथित लॉकडाउन के कारण पहले से ही विपत्ति में पड़े हुए देश के शोषित वर्ग पर और अधिक विपत्ति गई है। वास्तविकता यह है कि शोषित वर्ग के लोगों के कोरोना वायरस संक्रमण महामारी से संक्रमित होने की सूचनाएं तो कम मिल रही हैं परन्तु तथाकथित लॉकडाउन के दुष्प्रभावों के कारण उनके मारे जाने की सूचनाएं अधिक रही हैं। यह स्थिति इसलिए और अधिक गंभीर हो गई है क्योंकि केंद्र राज्यों की मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों से शोषित वर्ग को कोई सहायता नहीं मिल रही है। इसके विपरीत मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें शोषितों को और अधिक प्रताड़ित ही कर रही हैं। वास्तव में अपने गांवों को छोड़कर देश के विभिन्न शहरों में मजदूरी करने गए शोषित वर्ग के लोगों को तथाकथित लॉकडाउन के दिनों में मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों ने तो भोजन अन्य आवश्यक सहायता ही दी और ही उन्हें अपने गाँव जाने के लिए यातायात के कोई साधन ही उपलब्ध करवाए। बल्कि आंसू गैस के गोलों, लाठीचार्ज अन्य तरीकों से बलपूर्वक उनको रोके रखने के प्रयास किये।
इतने अधिक अमानवीय उत्पीड़न के बाद भी जब शोषित वर्ग के करोड़ों लोग बेरोजगारी भूख से परेशान होकर सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित अपने गाँव जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े तो मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें मनुवादी पुलिस लगाकर अत्यधिक बल के प्रयोग द्वारा शोषित वर्ग के लोगों को अपने गाँव जाने से रोकने का प्रयास कर रही हैं। इसी बीच मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों ने अपनी झूठी कल्याणकारी छवि बनाये रखने के लिए ताकि उनको चुनावों में शोषित वर्ग के वोट मिल सकें, कुछ रेलगाड़ियां बसें चलवा दीं हैं। परन्तु इसमें भी मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों ने शोषित वर्ग के साथ धोखाधड़ी ही की है। दिनांक 03 मई 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए पत्र संख्या डी..40-10/2020-डी एम-आई() के प्रस्तर 2 के अंतर्गत स्पष्ट रूप से लिखा है कि केवल उन्हीं लोगों को लाया जाए जो तथाकथित लॉकडाउन लगने के कुछ ही समय पूर्व गए और तथाकथित लॉकडाउन के कारण अब उन स्थानों पर फंस गए हैं। परन्तु जो लोग उन स्थानों पर किसी रोजगार या अन्य कार्यों के कारण सामान्य रूप से निवास कर रहे थे, वह इसमें सम्मिलित नहीं हैं। इससे स्पष्ट है कि मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों ने जो तथाकथित 'श्रमिक स्पेशल' रेलगाड़ियां और बसें चलवाई हैं वे शोषित वर्ग के सभी लोगों के लिए नहीं हैं बल्कि रत्ती भर लोगों के लिए ही हैं। मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों की धोखाधड़ी का दूसरा पक्ष यह है कि शोषित वर्ग के इन रत्ती भर लोगों को रेलगाड़ियों और बसों द्वारा उनके गाँव पहुंचा कर वे शोषितों पर कोई एहसान नहीं कर रहे हैं बल्कि इन रेलगाड़ियों और बसों को मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों ने शोषितों को लूटने का साधन बना लिया है। वास्तव में मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें इन रेलगाड़ियों और बसों में यात्रा करने वाले शोषित वर्ग के लोगों से सामान्य किराए से कई गुना अधिक किराया ले रही हैं तथा इस कार्य हेतु मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों ने कई सरकारी और गैरसरकारी दलाल नियुक्त कर रखे हैं जो शोषित वर्ग के लोगों से कई गुना अधिक धन वसूल कर रहे हैं जो लोग इतना अधिक धन दे पाने में असमर्थ हैं उन्हें यात्रा नहीं करने दिया जा रहा। यही स्थिति बसों द्वारा यात्रा करने पर भी है।
इन्हीं सब कारणों से शोषित वर्ग के अधिकांश लोग पैदल ही या अन्य साधनों से अपने गाँव जाने के लिए विवश हो गए हैं। जिस कारण भूखे-प्यासे पैदल चलने, मनुवादी पुलिस द्वारा पीटने विभिन्न दुर्घटनाओं द्वारा अब तक शोषित वर्ग के हजारों लोग मारे जा चुके हैं। परन्तु मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें मनुवादी-पूंजीवादी दलाल मीडिया इन सूचनाओं को छिपा रहे हैं। दूसरी ओर यही मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें मनुवादी वर्ग के लोगों को वातानुकूलित बसों से उनके घर तक पहुंचा रही हैं विदेशों से भी हवाई जहाजों से ला रही हैं। इन सबमें उसी शोषित वर्ग के खून-पसीने की कमाई खर्च की जा रही है जिसे यही मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें कीड़े-मकोड़ों से भी बदतर समझती हैं।
इसी के साथ शोषित वर्ग के लोगों द्वारा लाखों की संख्या में अपने गाँवों को चले जाने के कारण उनके शोषण पर ही जीवित रहने वाले मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग को यह चिंता सताने लगी है कि यदि शोषित वर्ग के अधिकांश लोग वापस अपने गाँव चले जाएंगे तो श्रमिकों की अत्यधिक कमी हो जाएगी जिस कारण मजदूरी में वृद्धि हो जाएगी। यह स्थिति मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के लिए हानिकारक होगी। क्योंकि मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग कम से कम मजदूरी देकर अधिक से अधिक कार्य करवाता है और इस तरह शोषितों द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त मूल्य को हड़प कर अपनी तिजोरियां भरता है।
यही कारण है कि मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के हित में मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें बलपूर्वक शोषित वर्ग के लोगों को उनके गाँवों को जाने से रोक रही हैं साथ ही असंवैधानिक तरीके से श्रम कानूनों में परिवर्तन करके मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग को शोषित वर्ग का और अधिक शोषण करने का अधिकार दे रही हैं। इस प्रकार मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें स्पष्ट रूप से शोषित वर्ग से कह रही हैं कि हम तो तुम्हें भोजन देंगे और ही तुम्हें अपने गाँव जाने देंगे यदि तुम पैदल या अन्य साधनों से जाने का प्रयास करोगे तो मनुवादी पुलिस द्वारा तुम्हारी चमड़ी उधेड़वा देंगे। इसके अलावा तुमसे कम मजदूरी में अधिक कार्य भी करवाएंगे यदि मना करोगे तो धक्के मार कर काम से निकाल देंगे।
इस तरह तथाकथित लॉकडाउन में शोषित वर्ग के साथ मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों द्वारा किये जा रहे घोर उपेक्षापूर्ण दमनात्मक व्यवहार ने पुनः सिद्ध कर दिया है कि देश में मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग की ही सत्ता स्थापित है और इस सत्ता के समस्त कार्य केवल मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के हित के लिए ही हैं। इसलिए इन मनुवादी-पूंजीवादी सरकारों से शोषित वर्ग द्वारा कोई भी आशा करना स्वयं को धोखा देने के समान है। इसी स्थिति को स्पष्ट करते हुए महान क्रान्तिकारी दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा है कि:-
"आधुनिक राज्य का कार्यकारी मण्डल पूरे बुर्जुआ वर्ग (प्रभुत्वशाली वर्ग) के सम्मिलित हितों का प्रबन्ध करने वाली समिति के अलावा और कुछ नहीं है।"1
प्रभुत्वशाली वर्ग द्वारा शोषितों का शोषण करने को राज्य का उपयोग करके 'कानूनी' बना दिया जाता है। इसी का उल्लेख करते हुए रूस बोल्शेविक क्रान्ति के जनक महान क्रान्तिकारी व्लादिमीर इलिच 'लेनिन' ने कहा है कि:-
"मार्क्स के अनुसार राज्य वर्ग प्रभुत्व का निकाय है, एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न का निकाय है, ऐसी 'व्यवस्था' की सर्जना है, जो वर्गीय टकरावों को मद्धिम करके इस उत्पीड़न को कानूनी और सतत बनाती है।"2
इससे स्पष्ट है कि वर्ग विभाजित, वर्ण विभाजित और जाति विभाजित वर्तमान राज्य की विभिन्न संस्थाएं जैसे प्रशासन, पुलिस तथाकथित न्यायपालिका आदि केवल उन्हीं कार्यों को करती हैं जिनको करने से मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था पर कोई आँच आये तथा मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग की प्रभुत्वशाली स्थिति बनी रहे। यही कारण है कि तथाकथित लॉकडाउन में शोषित वर्ग को किसी भी सरकारी संस्था से कोई सहायता नहीं मिल रही तथाकथित न्यायपालिका, प्रशासन, पुलिस मनुवादी-पूंजीवादी सरकारें मिल कर शोषित वर्ग के शोषण में संलिप्त हैं।
अब यह प्रश्न उठता है कि शोषित वर्ग का घोर उत्पीड़न करने के पश्चात भी बार-बार मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग राजनीतिक सत्ता कैसे प्राप्त कर लेता है? लोकसभा या राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों के समय शोषित वर्ग के अधिकांश लोग उन्हीं मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दलों को वोट दे देते हैं जो सत्ता में आने के बाद शोषित वर्ग के लिए कुछ भी नहीं करते बल्कि उनका और अधिक शोषण ही करते हैं? यहां तक कि आज तथाकथित लॉकडाउन के समय शोषित वर्ग के जो लाखों लोग भूखे-प्यासे पैदल ही हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं उनमें से अधिकांश लोगों ने पिछले चुनावों में उन्हीं मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दलों को वोट दिए थे जो आज सत्ता में आने के बाद उनकी सहायता करने की बजाय पुलिस द्वारा उनकी चमड़ी उधेड़वा रहे हैं। इसका कारण यह है कि हजारों वर्षों की दासता के कारण शोषित वर्ग के अधिकांश लोग अज्ञानी चेतनाहीन हो चुके हैं तथा अपने शोषण दुर्दशा को अपनी नियति मान बैठा है। शोषित वर्ग के अधिकांश लोगों के पास तो इतना ज्ञान है कि वह समझ सकें कि उनकी दुर्दशा का कारण क्या है और ही इतना समय है कि वे उस ज्ञान को प्राप्त कर सकें? वास्तव में जब शोषित वर्ग के अज्ञानी और चेतनाशून्य लोग मनुवादी-पूंजीवादी राजनीतिक दलों को वोट देते हैं तो इसमें उनका दोष नहीं होता बल्कि इसमें शोषित वर्ग के जागृत और चेतनाशील लोगों का दोष होता है कि वे उन अज्ञानी लोगों को आज तक चेतनाशील नहीं बना पाए।
सत्य यह है कि सैकड़ों वर्षों की दासता, घोर निर्धनता अशिक्षा के कारण शोषित वर्ग के अधिकांश लोग स्वयंस्फूर्त ढंग से चेतनाशील हो पाने में असमर्थ हो चुके हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो शोषित वर्ग के अधिकांश लोग प्रतिदिन 10 से 12 घण्टे तक दैनिक मजदूरी करके या अन्य शारीरिक श्रम वाले कार्य करके अपना अपने परिवार का पेट मुश्किल से भर पाते हैं। जबकि शोषित वर्ग की दासता शोषण के कारणों को समझने के लिए वृहद स्तर के अध्ययन की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में यह सोचना ही अव्यवहारिक है कि शोषित वर्ग के करोड़ों लोग प्रतिदिन 10 से 12 घण्टे तक मजदूरी या अन्य शारीरिक श्रम करने के बाद इस स्थिति में होंगे कि वे अपने शोषण को समझने के लिए अध्ययन कर सकेंगे! जिनके सामने दो वक्त की रोटी जुटाना ही उनके जीवन का सबसे कठिन कार्य हो उनसे यह अपेक्षा करना ही उनके साथ अन्याय है कि वे लोग बिना किसी की सहायता के स्वयंस्फूर्त तरीके से अपने शोषण के कारणों को समझ सकेंगे! रूस की बोल्शेविक क्रान्ति के जनक महान क्रान्तिकारी व्लादिमीर इलिच लेनिन ने भी कहा है कि शोषित वर्ग स्वयंस्फूर्त रूप से चेतनाशील बन पाने में असमर्थ होता है। वास्तव में शोषित वर्ग में चेतना बाहर से प्रयास करके लायी जाती है और इसके लिए एक क्रान्तिकारी दल की आवश्यकता होती है। इसलिए भारत के शोषित वर्ग की मुक्ति के लिए भी एक ऐसे पथप्रदर्शक दल की आवश्यकता है जो शोषित वर्ग के बीच राजनीतिक सामाजिक दोनों मोर्चों पर कार्य करे। वह पथप्रदर्शक दल उनमें जागृति उत्पन्न करे उन्हें यह समझने में सक्षम बनाये कि उनके शोषण का कारण मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था है इसके लिए शोषित वर्ग में 'आंबेडकरवाद' की शिक्षा दे। वास्तव में जो कार्य रूस में 'मार्क्सवाद' और 'बोल्शेविक दल' ने किया था उसी तरह शोषितों को जागृत करने का कार्य भारतीय परिस्थितियों को देखते हुए यहां 'आंबेडकरवाद' शोषितों के एक पथप्रदर्शक दल को करना होगा। भारत के शोषित वर्ग की दासता के वास्तविक कारणों का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी कहा था कि:-
"मेरे दृष्टिकोण में इस देश के श्रमिकों को दो शत्रुओं का मुकाबला करना होगा। वे दो शत्रु हैं 'ब्राह्मणवाद (अर्थात मनुवाद) और पूंजीवाद'"3
स्पष्ट है कि शोषितों को मनुवाद और पूंजीवाद दोनों से एक साथ लड़ना होगा तभी उनके शोषण का उन्मूलन सम्भव हो सकेगा।
अतः वर्तमान समय में शोषित वर्ग के जागरूक और चेतनाशील लोगों के एक पथप्रदर्शक दल की आवश्यकता है जो निःस्वार्थ होकर शोषित वर्ग का पथप्रदर्शन कर सके! परन्तु इसी के साथ शोषित वर्ग को मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठगों से भी सावधान रहने की आवश्यकता है। मनुवादियों के सगे भाई तथाकथित साम्यवादी ठग मनुवाद को स्पर्श भी नहीं करते तथा पूंजीवाद के विरुद्धशाब्दिक युद्धकरते हैं। इस तरह ये तथाकथित साम्यवादी ठग मनुवाद और पूंजीवाद दोनों की ही सुरक्षा करते हैं। वर्तमान समय में इन तथाकथित साम्यवादी ठगों का असली चेहरा एक बार फिर सबके सामने गया है। प्रायः क्रान्ति और सर्वहारा अर्थात शोषितों की बात करने वाले तथाकथित साम्यवादी ठगों को पिछले 50 से अधिक दिनों से सड़कों पर भूखे-प्यासे सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते और पुलिस की लाठियां खाते लोग दिखाई ही नहीं दे रहे। इन तथाकथित साम्यवादी ठगों के मुंह से अब तक उनके लिए एक शब्द तक नहीं निकला है। शोषितों को इन तथाकथित साम्यवादी ठगों की असलियत को ध्यान में रखते हुए ही अपनी मुक्ति हेतु संघर्ष करना है।

----------------------------
सन्दर्भ और टिप्पणियां
1- कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र (Communist Manifesto), कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स, तीसरा संस्करण- जनवरी 2010, पृष्ठ- 40, प्रकाशक:- राहुल फाउंडेशन, लखनऊ,
Manifesto of the Communist Party, Karl Marx and Frederick Engels, Edition- March 2010, Page- 44, People's Publishing House, New Delhi.
2- राज्य और क्रान्ति (The State and Revolution), लेनिन, संस्करण- 2002, पृष्ठ- 10, प्रकाशक:- राहुल फाउंडेशन, लखनऊ,
The State and Revolution, Lenin, First Edition- September, 2011,Page- 5, People's Publishing House, New Delhi.
3- डॉ. आंबेडकर के भाषण, भाग 2, संस्करण 2009, पृष्ठ- 53, प्रकाशक:- गौतम बुक सेंटर, दिल्ली,
और Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 17, Part 3, Edition- 4 October 2003, Page- 177, Punisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.

No comments:

Post a Comment