Saturday, May 16, 2020

राजनीतिक क्रान्ति से पहले वैचारिक क्रान्ति!


जिस समाज की 'गैर-राजनीतिक' जड़े मजबूत नहीं होतीं हैं उस समाज की राजनीति भी सफल नहीं हो सकती।
------------ मान्यवर श्री कांसीराम साहब
शोषित वर्ग के किसी व्यक्ति से पूछ लीजिये कि "आपके शोषण का उन्मूलन कैसे हो सकता है?" अधिकांश लोग इस प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे पाएंगे। परन्तु इसमें उन व्यक्तियों की कोई गलती नहीं है, जानते हैं क्यों? बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि "दास को उसकी दासता की अनुभूति करा दो, तो वह दास अपनी दासता की बेड़ियों को तोड़ने के लिये स्वतः उठ खड़ा होगा।" इससे स्पष्ट है कि यदि शोषित वर्ग के लोग इस प्रश्न का उत्तर कि उनके शोषण का उन्मूलन कैसे हो सकता है, नहीं दे पाते हैं तो इसका कारण यह है कि उन्हें अपने शोषण के कारणों और फलस्वरूप उसके निवारण के मार्ग का ज्ञान ही नहीं है। इसका यह अर्थ नहीं है कि उनका शोषण नहीं हो रहा है बल्कि इसका अर्थ है कि वे शोषण सहन तो कर रहे हैं लेकिन उनको इस बात का संज्ञान नहीं है कि उनका शोषण किया जा रहा है क्योंकि वे इसको 'नियति', 'पूर्वजन्मों का फल', 'भगवान की मर्जी' आदि समझते हैं। शोषित वर्ग के लोग यह जानते ही नहीं हैं कि यह मनुवादी-पूँजीवादी व्यवस्था क्या है और यह किस प्रकार उनका शोषण कर रही है? यह किस प्रकार शोषित वर्ग की निर्धनता, अशिक्षा, अज्ञानता, बेरोजगारी आदि के लिये उत्तरदायी है? इसलिये जब तक शोषित वर्ग को उनके शोषण के वास्तविक कारणों का ज्ञान नहीं कराया जायेगा तब तक वे 'व्यवस्था' के स्थान पर 'व्यक्ति' को ही अपने शोषण के लिये उत्तरदायी मानते रहेंगे और यह निश्चित नहीं कर पाएंगे कि उन्हें अपने शोषण के उन्मूलन हेतु क्या करना चाहिये।
अतः शोषित वर्ग के उत्थान हेतु समर्पित लोगों और संगठनों को सर्वप्रथम शोषितों को उनके शोषण हेतु उत्तरदायी कारणों अर्थात मनुवादी-पूँजीवादी व्यवस्था का ज्ञान देकर अपनी 'गैर-राजनीतिक' जड़ें मजबूत करने की आवश्यकता है। इसके लिये शोषित वर्ग को बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की शिक्षाओं अर्थात 'अम्बेडकरवाद' को घुट्टी की तरह पिलाना होगा। इसके साथ ही सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ आर्थिक समस्याओं पर भी समान रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है और व्यावहारिक घटनाओं का विश्लेषण करके इनको शोषित वर्ग को समझाना होगा कि मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था किस तरह, किन तरीकों और किन साधनों को अपना कर उनका शोषण कर रही है। अम्बेडकरवाद के द्वारा उत्पन्न सैद्धांतिक और वैचारिक मजबूती के द्वारा ही शोषित वर्ग मनुवादी षड़यंत्र अर्थात तथाकथित मनुवादी धर्म की दलदल से, जो उसकी दासता को स्थायी बनाये रखने का ही दूसरा नाम है, निकल सकेगा।
इस प्रकार जब हम शोषित वर्ग को सैध्दांतिक और वैचारिक रूप से शक्तिशाली बना देंगे अर्थात उसकी 'गैर-राजनीतिक' जड़ों को मजबूत कर देंगे तब शोषित वर्ग की राजनीति को स्थायी सफलताएं मिल सकेंगी और तब ही शोषणमुक्त और समतामूलक समाज का निर्माण भी सम्भव हो सकेगा। इस कार्य में यदि हमें दस या बीस वर्ष लगें तब भी हमें घबराना नहीं चाहिये क्योंकि शोषित वर्ग की हजारों वर्षों की मानसिक और शारीरिक दासता के कारण उसमें उत्पन्न अंधविश्वासों, रूढ़ियों और हीनता की भावना को समाप्त करने में समय और परिश्रम तो लगेगा ही।
विश्व इतिहास भी बताता है कि मानव समाज में आमूल-चूल परिवर्तन लाने वाली विभिन्न क्रान्तियों उदाहरणार्थ 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति, 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति और 1949 की चीनी क्रान्ति से पहले उन देशों में 'वैचारिक क्रान्तियाँ' हुई थीं। इन वैचारिक क्रान्तियों ने उन देशों के शोषित वर्ग को सैद्धांतिक और वैचारिक रूप से इतना सशक्त बना दिया कि वो शोषक व्यवस्था को सूक्ष्मता से समझ कर उस शोषक व्यवस्था का उन्मूलन करने में सफलता प्राप्त कर सके। इसलिये भारत में भी 'बहुजन क्रान्ति' की सफलता के लिये पहले 'बहुजन वैचारिक क्रान्ति' की अत्यंत आवयश्कता है।
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