Saturday, May 16, 2020

खामोश मनुवादी जनसंहार (PART-2)


मनुवादियों और उनके तत्कालीन चहेते राजनेता श्री मोहनदास करमचंद गांधी के मनुवादी षड़यंत्रों का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि:-
"हिन्दुओं का पवित्र कानून इस बात का आदेश देता है कि भंगी (Scavenger) की संतान के लिये भंगी का ही काम करना (Scavenging) अनिवार्य है। हिन्दू धर्म में भंगी का काम (Scavenging) पसन्द पर निर्भर नहीं करता वरन बलपूर्वक कराया जाता है। इस सम्बंध में गांधीवाद शास्त्रीय मर्यादा को चिरस्थायी बनाने के लिये भंगी के कार्य (Scavenging) को समाज की महानतम सेवा बतला कर उसे उसी गन्दे काम में लगाये रखना चाहता है। अस्पृश्यों की एक सभा का सभापतित्व करते हुए श्री गांधी ने कहा था (यंग इंडिया, 27 अप्रैल 1921):-
' मैं मोक्ष पाने की इच्छा करता हूँ। पुनर्जन्म की कामना करता हूँ। परन्तु मेरा पुनर्जन्म होना ही है तो मैं चाहूंगा कि मैं अस्पृश्य के रूप में पैदा होऊं, ताकि मैं उनके कष्टों, मुसीबतों और तिरस्कार का अनुभव कर, उनका साझीदार बन सकूं और उन्हें उस दयनीय दशा से उबारने का प्रयत्न कर सकूं। इसलिये मैं प्रार्थना करता हूँ कि यदि मेरा पुनर्जन्म हो, तो मेरा जन्म ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र के घर में होकर अतिशूद्र के रूप में हो।'
'मुझे भंगी के कार्य (Scavenging) से प्रेम है। मेरे आश्रम में एक 18 वर्ष का ब्राह्मण लड़का झाड़ू लगाने का काम कर रहा है, ताकि आश्रम का भंगी (Scavenger) उससे सीखे कि आश्रम में झाड़ू कैसे लगानी चाहिए। वह लड़का कोई सुधारक नहीं है। वह रूढ़िवादी हिन्दू परिवार में पैदा हुआ है और पला है। परन्तु उसने अनुभव किया कि उसकी सिद्धियां उस समय तक अधूरी रहेंगी, जब तक कि वह पूर्णरूपेण भंगी (Sweeper) नहीं बन जाता और इसलिए कि आश्रम का भंगी (Sweeper) ठीक से सफाई करे, तो स्वयं सफाई कार्य करके उसके सामने उदाहरण प्रस्तुत करना आवश्यक है।'
'तुम्हें यह समझना चाहिए कि तुम लोग हिन्दू समाज की सफाई कर रहे हो।'
क्या एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग पर बलपूर्वक थोपी गई इन परम्परागत बुराइयों को गांधीवाद द्वारा पुनर्जीवित करने के प्रयत्न से बढ़कर झूठा प्रचार करने का बदतर उदाहरण कहीं और मिल सकता है? यदि गांधीवाद सम्पत्ति का मोह त्यागने का उपदेश केवल शूद्रों को नहीं बल्कि पूरे समाज के सभी वर्गों को देता, तो बुरे से बुरा यही कहा जा सकता था कि भूल से ऐसा गलत विचार प्रकट कर दिया गया है। परन्तु केवल एक ही वर्ग के लिये इसे क्यों अच्छा कहा गया है? मानव की बदतर मनोवृत्तियों, दर्प और दम्भ को सिर झुका कर स्वीकार करने की वह सीख एक वर्ग विशेष को क्यों दी जाती है, जिसके बौद्धिक आधार पर निर्मम विषमता मानकर वह उस पर क्षोभ व्यक्त करता है? केवल भंगी (Scavenger) को ही यह कहने से क्या लाभ कि ब्राह्मण भी झाड़ू लगाने को तैयार है, जबकि यह स्पष्ट है कि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कोई ब्राह्मण झाड़ू लगाने का काम करने पर भी जन्मजात भंगी (Scavenger) के समान भंगी (Scavenger) नहीं हो जाएगा? क्योंकि भारत में कोई मनुष्य झाड़ू लगाने के काम के कारण ही भंगी (Scavenger) नहीं होता। वह जाति और जन्म से भंगी (Scavenger) होता है। इस बात का प्रश्न कहाँ उठता है कि वह भंगी का काम (Scavenging) करता है अथवा नहीं। यदि गांधीवाद इस आशंका से यह उपदेश देता है कि झाड़ू लगाना एक गौरवपूर्ण कार्य है कि कहीं लोग इस काम को छोड़ दें तो इसे समझा जा सकता है। परन्तु भंगियों (Scavengers) को ही सफाई कार्य करते रहने में ही गर्व करने की अपील यह कहते हुए (गांधीवाद) क्यों कहता है  कि यह सर्वोत्तम कार्य है और उसे करते रहने में किसी प्रकार की लज्जा का अनुभव नहीं करना चाहिए? इस प्रकार यह उपदेश कि सम्पत्ति का मोह त्याग गरीबी केवल शूद्रों के लिये उत्तम है और किसी के लिये नहीं तथा सफाई कार्य केवल अस्पृश्यों के लिये अच्छी बात है अन्य लोगों के लिये नहीं, यह उनके जीवन का स्वयंसेवी कार्य बतला कर ऐसा अपमानजनक कार्य उन पर थोपना उन निस्सहाय वर्गों के साथ क्रूर मजाक है और इस प्रकार का क्रूर मजाक समभाव के साथ और बिना पश्चाताप के श्री गांधी जैसा व्यक्ति ही कर सकता है। इस सम्बंध में वाल्टेयर के शब्द आज भी याद आते हैं जिन्होंने गांधीवाद के समान प्रचलित वाद का विरोध करते हुए कहा था:-
'यह कहना भौंडा मजाक है कि कुछ लोगों की पीड़ा से दूसरों को सुख मिलता है और संसार भर का इसमें कल्याण है। एक मरणासन्न व्यक्ति को इससे क्या सुकून मिल सकता है कि उसके रोगग्रस्त शरीर से हजारों कीड़ों का जन्म होगा?'
आलोचनाओं से दूर होते हुए, गांधीवाद की यह तकनीक है कि किसी को प्रताड़ित किया जाए और उसी पीड़ित से कहा जाए कि यह तुम्हारा विशेषाधिकार है। यदि कोई ऐसा वाद है, जो धर्म रूपी अफीम खिलाकर किसी को झूठे विश्वासों से अचेतन कर दे, तो वह गांधीवाद है। शेक्सपियर के कथन को यदि इस संदर्भ में लिया जाए, तो कहना पड़ेगा कि मक्कारी और धोखाधड़ी का नाम है गांधीवाद!"2
जिस तरह श्री मोहनदास करमचंद गांधी ने मानव मल उठाने को परोपकार करने वाला आध्यात्मिक कार्य बताया था उसी प्रकार आज के मनुवादी भी यही राग अलापते रहते हैं। मनुवादियों के हृदय सम्राट श्री नरेन्द्र मोदी भी यही विचार व्यक्त कर चुके हैं।
अपनी पुस्तक 'कर्मयोग' के पृष्ठ संख्या 48 पर श्री नरेन्द्र मोदी लिखते हैं, "आध्यात्मिकता के अलग-अलग अर्थ होते हैं। शमशान में काम करने वाले के लिए आध्यात्मिकता उसका रोज़ का काम है- मृत देह आएगी, मृत देह जलाएगा। जो शौचालय में काम करता है उसकी आध्यात्मिकता क्या? कभी उस वाल्मीकि समाज के आदमी, जो मैला साफ़ करता है, गंदगी दूर करता है, उसकी आध्यात्मिकता का अनुभव किया है?"
इसी पृष्ठ पर वे आगे लिखते हैं, "उसने सिर्फ़ पेट भरने के लिए यह काम स्वीकारा हो मैं यह नहीं मानता, क्योंकि तब वह लंबे समय तक नहीं कर पाता। पीढ़ी दर पीढ़ी तो नहीं ही कर पाता। एक ज़माने में किसी को ये संस्कार हुए होंगे कि संपूर्ण समाज और देवता की साफ़-सफ़ाई की ज़िम्मेदारी मेरी है और उसी के लिए यह काम मुझे करना है।"
श्री मोदी लिखते हैं,''इसी कारण सदियों से समाज को स्वच्छ रखना, उसके भीतर की आध्यात्मिकता होगी। ऐसा तो नहीं होगा कि उसके पूर्वजों को और कोई नौकरी या धंधा नहीं मिला होगा।"
अब यह इस लेख में पहले ही दिखाया जा चुका है कि मनुवादियों ने किस तरह शक्ति, सत्ता, वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था का प्रयोग करके शोषित जातियों को मानव मल उठाने का कार्य करने को विवश कर दिया। वास्तव में आज भी देश में इस प्रकार के कानून अस्तित्व में हैं कि यदि शोषित जातियों के सफाईकर्मी स्वेच्छा से यह कार्य छोड़ने का प्रयास भी करते हैं तो उनको विभिन्न कानूनी धाराएं लगाकर जेलों में ठूंस दिया जाता है। इसी का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि:-
"भारत के कुछ प्रान्तों ने ऐसे कानून बनाये गए हैं जिनके अनुसार सफाई कार्य करने से इन्कार करना अपराध करार दिया गया है और वैसा अपराध करने वाले अपराधी को फौजदारी मुकदमा चलाकर दण्डित किया जा सकता है।"3
इससे मनुवादियों का यह षड़यंत्र सामने जाता है कि एक ओर तो मनुवादी कहते हैं कि शोषित जातियों ने 'आध्यात्मिकता' के कारण मानव मल ढोने का कार्य नहीं छोड़ा और दूसरी ओर यदि शोषित जातियों के व्यक्ति इस कार्य को छोड़ने का प्रयास करते हैं तो उनको जेलों में ठूंसने का भी मनुवादियों ने पूरा इंतजाम कर रखा है! जिससे शोषित जातियां विवश होकर इन घृणित और गन्दे कार्य को करती रहें और इसी प्रकार शोषित जातियों का 'मनुवादी जनसंहार' चलता रहे!
शोषित जातियों को भ्रमित करने के लिये जिससे शोषित जातियां इन घृणित और गन्दे कार्यों में लगी रहें मनुवादी लोग प्रायः यह प्रचार करते रहते हैं कि "कोई भी कार्य छोटा नहीं होता!" परन्तु कभी भी कोई मनुवादी तथाकथित न्यायाधीश, उच्च प्रशासनिक अधिकारी (आई00एस0, आई0पी0एस0 आदि), मनुवादी सांसद- विधायक, मंत्री, उद्योगपति, व्यापारी आदि मनुवादी लोग अपने बच्चों को यह उपदेश नहीं देते कि कोई भी कार्य छोटा नहीं होता इसलिये तुम मानव मल उठाने का कार्य करो। क्या किसी ने आज तक किसी मनुवादी तथाकथित न्यायाधीश, उच्च प्रशासनिक अधिकारी (आई00एस0, आई0पी0एस0 आदि), मनुवादी सांसद-विधायक, मंत्री, उद्योगपति, व्यापारी आदि मनुवादियों के बच्चों को सीवर साफ करके, मानव मल हाथों से उठाने का कार्य करके 'आध्यात्मिकता' और 'पुण्य' बटोरते हुए देखा है? वास्तव ये सारे 'मनुवादी उपदेश' केवल शोषित जातियों को उसी गन्दगी में सड़ते हुए संतुष्ट रहने और विरोध तथा विद्रोह करने के लिये ही दिए जाते हैं।
इसी तरह के मनुवादी कुतर्कों का उत्तर देते हुए 15 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षाभूमि में बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने ऐतिहासिक भाषण दिया था जिसका एक अंश निम्नलिखित है :-
" ' महार-चमार मरी हुई गाय-भैंसों को उठाएं और मरी हुई गाय-भैसों का मांस ही खाएं।' इस बात का प्रचार मैंने आज से 30 वर्ष पूर्व किया था। इस प्रचार से सवर्ण हिन्दुओं को बड़ा आघात पहुंचा। मैंने उनसे पूछा कि गाय-भैंसों का दूध तुम पियो और मरने पर उसे उठाकर हम बाहर फेंके, ऐसा क्यों? अगर वे अपनी बूढ़ी माँ के मरने पर उसे खुद उठा ले जाते हैं, तो मरी हुई गाय और भैंस को स्वयं क्यों नहीं उठा ले जाना चाहते? जब मैंने ऐसे प्रश्न उनके सामने रखे तो ये लोग बहुत चिढ़ गए। मैंने उनसे कहा कि अगर तुम अपनी मरी हुई माँ को बाहर फेंकने के लिए हमें दे दो, तो हम अवश्य ही मरी हुई गाय को भी उठा ले जाएंगे। इस पर 'केसरी' (ब्राह्मणों का समाचार पत्र) में एक चित्तपावन ब्राह्मण ने कई पत्र प्रकाशित करके यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि प्रत्येक वर्ष मृत पशुओं को उठाने से महार-चमार को कितना नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके लिए उसने कई प्रकार के आंकड़े देकर अपनी बात को सिद्ध करने का प्रयत्न किया। उनका कहना था कि एक मरे हुए पशु की हड्डी, दांतों, सींगों, अंतड़ियों आदि को बेचने से हर चमार को 500 या 600 रुपयों का वार्षिक लाभ होता है। इसलिए मैं उनका नुकसान करा रहा हूँ। मेरे अस्पृश्य लोगों को ऐसा लगा कि आखिर मैं अपने लोगों के लिए यह क्या करने जा रहा हूँ? एक बार मैं संगमनेर गया हुआ था। जिसने 'केसरी' में पत्र प्रकाशित किये थे, वह मुझे वहाँ पर मिला। उसने वही प्रश्न दोहराये। मैंने उसको जवाब दिया कि तुम्हारे प्रश्नों का जवाब मैं समय आने पर दूंगा। मैंने 'केसरी' में प्रकाशित हुए सभी पत्रों के प्रश्नों का खुली सभा में यों जवाब दिया कि मेरे लोगों के पास खाने के लिए अन्न नहीं है। स्त्रियों के पास तन ढंकने के लिए कपड़ा नहीं है। रहने के लिए मकान नहीं है। उनके पास जोतने के लिए जमीन नहीं है। इसलिए वह शोषित हैं महादुखी हैं। मैंने सभी उपस्थित लोगों से इसके कारण पूछे। सभा में किसी ने उत्तर नहीं दिया। यहाँ तक कि 'केसरी' में पत्र लिखने वाले सज्जन ने भी जो उस समय सभा में मौजूद था, उसने भी जवाब नहीं दिया। तब मैंने कहा भले लोगों! हम अपने सम्बन्ध में खुद ही सोच लेंगे। अगर तुम्हें हमारे लाभ की चिंता है, तो तुम अपने सम्बन्धियों को एक-एक गाँव में भेज दो और उनसे कहो कि वे वहीं पर जाकर रहें और गाँव में मरे हुए पशुओं को उठाकर फेंकें, जिससे उन्हें 500 रुपये का वार्षिक लाभ हो सके। इसके अलावा ऐसा करने पर उन्हें 500 रुपये ईनाम मैं स्वयं भी दूंगा। इस प्रकार उन्हें दोगुना लाभ होगा। इस मौके को क्यों छोड़ते हो? हमारा नुकसान होगा पर तुम्हें तो लाभ होगा। लेकिन आज तक कोई भी सवर्ण हिन्दू इस काम के लिए आगे नहीं आया। आखिर इनके पेट का पानी हमारी उन्नति को देखकर क्यों हिलता है? क्यों इनके पेट में हमारी उन्नति की बात को सुनकर दर्द होता है।"4
बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने जब शोषित जातियों से इन घृणित कार्यों को छोड़ने के लिए कहा तो उनका उद्देश्य उनमें स्वाभिमान और आत्मविश्वास पैदा करना था जिससे वे अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें और अपने शोषण का अंत कर सकने में सक्षम हो सकें। यदि हमें आर्थिक और उनके अनुसार आध्यात्मिक हानि होती है तो उसकी चिंता मनुवादी करें। मनुवादियों को यदि खाल उतारने, पाखाना साफ करने और मानव मल ढोने में आर्थिक और आध्यात्मिक लाभ दिखाई देता है तो वे ये काम स्वयं करें तथा आर्थिक लाभ और पुण्य बटोर लें।
मनुवादी लोग ढोंग करके यह प्रचारित करते हैं कि समाज के हित में शोषित जातियों को ये घृणित कार्य करते रहना चाहिये। आज शोषित जातियों के जो लोग इन घृणित कार्यों को कर रहे हैं, वे केवल अपनी निर्धनता और जाति व्यवस्था से उपजी विकल्पहीनता के कारण ऐसा कर रहे हैं। जो लोग शोषित जातियों की घोर विपन्नता और विकल्पहीनता की ओर से आँखे मूँद कर उन्हें घृणित कार्यों को करने का उपदेश देते रहते हैं वे लोग शोषित समुदाय के घोर शत्रु हैं।
इसी तरह 'वाल्मीकि' का नाम लेकर भी मनुवादी लोग शोषित जातियों को भ्रमित करते रहते हैं। इस मनुवादी षड़यंत्र का पर्दाफाश करते हुए श्री भगवान दास ने लिखा है:-
"हिन्दुओं ने उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में जनगणना में मुसलमानों के मुकाबले में हिन्दुओं की जनसंख्या कम हो जाने के डर से अछूतों को बेवकूफ बनाने के लिये उनमें हिन्दू धर्म का प्रचार शुरू किया था। इसी प्रोपेगेंडे के प्रभाव में आकर पंजाब की चूहड़ा जाति के लोगों ने अपनी जाति का नाम वाल्मीकि लिखना शुरू किया। दुख की बात यह है कि उससे केवल उनकी मानसिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति रुक गई, बल्कि एक बहुत बड़ा नुकसान यह हो गया कि इस जाति के लेखक उसकी अन्य समस्याओं गरीबी, पिछड़ेपन, अंधविश्वास, सामाजिक बुराइयों, बेइंसाफी तथा इस जाति के लोगों पर होने वाले अत्याचारों के बारे में सोचने और उस पर लिखने की बजाए वाल्मीकि के पीछे पड़ गए, जिसका शायद भंगी जाति से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं।"5
इस विश्लेषण से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि आज तक देश में सफाई कार्य करते हुए शोषित जातियों के जितने लोगों की मृत्यु हो चुकी है और सतत रूप से प्रतिदिन हो रही है (लगभग 62 मौतें प्रतिदिन) उतनी तो आतंकवादियों की गोलियों से सैनिकों की मृत्यु भी नहीं हुई है। मनुवादी-पूंजीवादी दलाल मीडिया शोषित जातियों के इस 'मनुवादी जनसंहार' से सम्बंधित सूचनाओं को दबा देता है। क्योंकि शोषित जातियों का यह 'मनुवादी जनसंहार' मनुवादी वर्ग के लिए कोई महत्व नहीं रखता और वो इस 'खामोश मनुवादी जनसंहार' को 'आध्यात्मिकता, पुण्य, समाज सेवा' आदि चिकने-चुपड़े शब्दों से छिपाता रहता है।
अतः यदि शोषित जातियों को इस मनुवादी जनसंहार और मनुवादी शोषण से मुक्ति प्राप्त करनी है तो उनको बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के दिखाए मार्ग पर चलते हुए सर्वप्रथम मानव मल उठाने, सीवर की सफाई आदि घृणित और गन्दे कार्यों को तत्काल छोड़ देना चाहिये। मनुवादी कहते हैं कि हम अच्छे उपकरणों और मशीनों का इंतजाम कर देते हैं और तुम इस गन्दे कार्य में लगे रहो और मरते रहो! परन्तु मेरा सुझाव है कि शोषित जातियों को इन मनुवादी षड़यंत्रों में नहीं फंसना चाहिये और मनुवादियों को यह उत्तर देना चाहिये कि "इन अच्छे उपकरणों और मशीनों का उपयोग करके तुम मनुवादी लोग स्वयं ही मानव मल, सीवर की सफाई आदि कार्य करो और आध्यत्मिक और आर्थिक लाभ लो तथा समाज सेवा का पुण्य कमाओ!" शोषित जातियों को इन गन्दे कार्यों को त्याग कर यदि निकट ही सम्मानपूर्वक आजीविका कमाना सम्भव हो तो सैंकड़ों किलोमीटर दूर जाकर भी रिक्शा चलाना, मजदूरी करना आदि सम्मानजनक कार्य करने चाहिए और यह दृढ़ संकल्प कर लेना चाहिए कि 'भले ही हमें भूखा मरना पड़े लेकिन हम स्वयं को और अपने बच्चों को इन गन्दे और घृणित कार्यों को नहीं करने देंगे!' जब शोषित जातियों के लोग इन गन्दे कार्यों को छोड़कर कोई अन्य कार्य करेंगे तो उनमें स्वाभिमान और आत्मसम्मान की भावना जन्म लेगी क्योंकि हजारों वर्षों के मनुवादी शोषण के कारण गन्दे तथा घृणित कार्यों को करते रहने के कारण शोषित जातियों के लोगों में स्वाभिमान और आत्मसम्मान की भावना मर चुकी है। लेकिन जब शोषित जातियों के लोग इन घृणित और गन्दे कार्यों को त्याग देंगे तो उनमें स्वाभिमान और आत्मसम्मान की भावना जन्म लेगी जिसके पश्चात ही वो अपने शोषण के लिये उत्तरदायी वास्तविक कारण अर्थात मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को समझ सकेंगे और मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करके समतामूलक, शोषणमुक्त, वर्णहीन, जातिहीन और वर्गहीन समाज का निर्माण करने हेतु 'क्रान्तिकारी संघर्ष' करने में सक्षम हो पाएंगे।
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सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1.       मैं भंगी हूँ, लेखक- श्री भगवान दास, चतुर्थ संस्करण 2011, पृष्ठ- 71-72, प्रकाशक:- गौतम बुक सेन्टर, शाहदरा, दिल्ली।
2.       कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया (What Congress and Gandhi have done to the Untouchables), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, गांधी और अछूतों की विमुक्ति, संस्करण- 2008, पृष्ठ- 279-281 सम्यक प्रकाशन
और,
बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 16, तृतीय संस्करण 2013, पृष्ठ- 300-302, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 09, Edition- 26 January 1991, Reprint- May 2015, Page- 292, 293 Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
3.       कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया (What Congress and Gandhi have done to the Untouchables), बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर, गांधी और अछूतों की विमुक्ति, संस्करण- 2008, पृष्ठ- 281, सम्यक प्रकाशन
और,
बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड- 16, तृतीय संस्करण 2013, पृष्ठ- 302, प्रकाशक- डॉ0 अम्बेडकर प्रतिष्ठान, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार,
और
Dr. Baba Saheb Ambedkar Writings and Speeches, Volume 09, Edition- 26 January 1991, Reprint- May 2015, Page- 293 Publisher- Higher Education Department, Government of Maharashtra.
4.       बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर की संघर्ष यात्रा एवं सन्देश, लेखक- डॉ0 0ला0 शहारे एवं डॉ0 नलिनी अनिल, सम्यक प्रकाशन, संस्करण 2009, पृष्ठ 432-433.
5.       मैं भंगी हूँ, लेखक- श्री भगवान दास, चतुर्थ संस्करण 2011, भूमिका पृष्ठ- xi, प्रकाशक:- गौतम बुक सेन्टर, शाहदरा, दिल्ली।

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