Thursday, May 21, 2020

मनुवादी प्रशासकों का वास्तविक चेहरा


जब मनुवादी लोग उच्च प्रशासनिक सेवाओं जैसे अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), अखिल भारतीय पुलिस सेवा (IPS), प्रान्तीय प्रशासनिक सेवा (PCS), प्रान्तीय पुलिस सेवा (PPS), न्यायिक सेवा आदि के लिये साक्षात्कार देते हैं तब उनसे प्रायः पूछा जाता है कि वे इन सेवाओं में क्यों आना चाहते हैं? तब उन मनुवादी प्रत्याशियों द्वारा तोते की तरह रटे-रटाये उत्तर दिए जाते हैं कि "देश की सेवा के लिये!" यहां यह स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है कि जिस 'देश' की ये लोग बात करते हैं वास्तव में उससे आशय 'मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था' होता है। जिसमें शोषित वर्ग को शोषण और दमन के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता। इन मनुवादी प्रशासकों द्वारा अपना ज्ञान, अपनी तथाकथित नैतिकता, अपनी तथाकथित देशभक्ति आदि सभी कुछ मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिये प्रयोग की जाती है। इसलिये इन मनुवादी प्रशासकों के अनुसार शोषित वर्ग का अस्तित्व केवल शोषण, दमन, बलात्कार आदि अत्याचार सहने के लिए ही है। लेखक ने इन मनुवादी प्रशासकों को अत्यंत निकट से देखा है। इनकी कार्यप्रणाली यह होती है कि ये लोग अपने मनुवादी-पूंजीवादी स्वामियों के तलवे चाटते हैं, उनके जूते पोंछते हैं और शोषित वर्ग की खाल बेच कर भी धन बटोरने में संकोच नहीं करते। ये मनुवादी प्रशासक मुंह से तो देशभक्ति, नैतिकता, मानवीय मूल्यों में निरन्तर रहे ह्रास, भाईचारे की बातें करते हैं परन्तु शोषित वर्ग की बहन-बेटियों को देखकर वासना से इनकी लार टपकने लगती है, एक दिन भी यदि इनको रिश्वत ना मिले तो इनको रात को नींद नहीं आती और उस दिन की भरपाई अगले दिन अधिक-से-अधिक रिश्वत लेकर करते हैं। क्योंकि इनकी देशभक्ति, नैतिकता, मानवता, भाईचारा केवल मनुवादियों के स्वार्थ लाभ द्वारा ही परिभाषित होते हैं। जब ये लोग समानता और भाईचारे की बातें करतें हैं तो इसका अर्थ वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था और मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करके सामाजिक, आर्थिक समानता और उससे उत्पन्न भाईचारे से नहीं होता बल्कि उसका अर्थ मनुवादियों के बीच वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था पर आधारित श्रेणीगत असामनता से प्रेरित सामाजिक व्यवहार से होता है। जिससे वे लोग शोषित वर्ग की खाल उधेड़ कर विलासिता कर सकें।
जब ये मनुवादी प्रशासक मानवीय मूल्यों में रहे ह्रास पर घड़ियाली आंसू बहाते हैं तो इनका आशय वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था द्वारा हजारों वर्षों से शोषित जातियों में बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के संघर्ष के फलस्वरूप रही चेतना और अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करने के कारण मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था पर बढ़ रहे संकटों से होता है। इस प्रकार ये मनुवादी प्रशासक अपने पूर्वजों के उस स्वर्ण युग की पुनः स्थापना करना चाहते हैं जब शोषित जातियों द्वारा इनकी अवहेलना करने पर शोषित जातियों के लोगों की जीभ काट ली जाती थी और उनके कानों में सीसा पिघला कर डाल दिया जाता था।
यहाँ जो बातें कही गयीं हैं वो सभी मनुवादी प्रशासकों के लिये सत्य हैं चाहे वो स्त्री हो या पुरूष क्योंकि यह मनुवादी-पूंजीवादी व्यवस्था मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग के हित में कार्य करती है और मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग में उनके वर्ग के सभी सदस्य सम्मिलित हैं चाहे वो किसी भी लिंग के हों। मनुवादी-पूंजीवादी वर्ग की स्त्रियां भी शोषित वर्ग का शोषण और उत्पीड़न करने में किसी तरह से भी अपने वर्ग के पुरुषों से कम नहीं होतीं।
यही इस पूरे मनुवादी प्रशासक समूह का चरित्र है। ये लोग भ्रष्टाचार के दलदल में सिर से लेकर पैर तक डूबे हुए हैं परन्तु फिर भी सबसे बड़े स्वघोषित ईमानदार बने रहते हैं। ये लोग अपने मनुवादी-पूंजीवादी स्वामियों की कृपा से सदैव 'मलाईदार' स्थानों पर तैनात रहते हैं, शोषितों के हित में रत्ती-भर भी कार्य नहीं करते बल्कि उनका ही खून चूसकर अपनी तोंद फुलाते हैं, इनके ऊपर भ्रष्टाचार में लिप्त होने की कितनी भी जांचें चल रही हों परन्तु अपने मनुवादी-पूंजीवादी स्वामियों की कृपा के कारण अंत में निर्दोष और ईमानदार घोषित कर दिए जाते हैं, ये जितने भी भ्रष्टाचार, कामचोरी और घोटालों में लिप्त हों परन्तु इनकी वार्षिक गोपनीय चरित्र प्रवृष्टि में 'सर्वोत्कृष्ट' ही लिखा जाता है जिससे इनकी समयानुसार पदोन्नति हो जाती है। यही इन लोगों की तथाकथित योग्यता है।
इस प्रकार शोषित वर्ग को इस बात से भ्रमित नहीं होना चाहिये कि ये मनुवादी प्रशासक उच्च शिक्षित हैं, विद्वतापूर्ण बातें करतें हैं तो ये लोग ईमानदार, मानवतावादी, उदार, प्रगतिशील और शोषितों के लिये कल्याणकारी भी होंगे। बल्कि वास्तविकता यह है कि शोषितों का खून चूसकर ही ये मनुवादी प्रशासक रुपी पिस्सू जीवित रहते हैं। वास्तव में इनकी उच्च शिक्षा और बुद्धि इन मनुवादी प्रशासकों को शोषितों का शोषण करने में ही सहायक होती है।
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