‘‘क्या अंधेरे वक्त में भी,
गीत गाये जायेंगे?
हाँ, अंधेरे के बारे में भी
गीत गाये जायेंगे।’’
----------- बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
बलात्कार किसी महिला के साथ किया गया जघन्यतम अपराध है। बलात्कार पीड़ित महिला जीवनभर इस अपमान और दुख को सहती रहती है। अत्यधिक मानसिक पीड़ा और सामाजिक अपमान से टूटकर कई बलात्कार पीड़ित महिलायें अपना जीवन भी समाप्त कर लेती हैं।
यहाँ पर बलात्कार के उन रूपों पर विचार करने की अत्यन्त आवश्यकता है जिन्हें कानून और तथाकथित न्यायपालिका की दृष्टि में बलात्कार माना ही नहीं जाता और ऐसे मामलों पर षड़यन्त्रकारी चुप्पी साध ली जाती है। वेश्यावृत्ति ऐसा ही क्षेत्र है जिसमें बलात्कार एक सामान्य घटना है क्योंकि वेश्यावृत्ति की नींव ही महिला के शारीरिक, मानसिक शोषण और बलात्कार पर टिकी है। वेश्यावृत्ति को बलात्कार मानना तो दूर की बात है भारतीय समाज में वेश्यावृत्ति को अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक और कानूनी स्वीकृति मिली हुयी है। कानूनी रूप से वेश्या के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने को अपराध माना ही नहीं जाता। बलात्कार का ही एक रूप मनुवादी धार्मिक बलात्कार है। इस प्रकार के बलात्कार को मनुवादी धर्म की स्वीकृति प्राप्त है और एक धार्मिक प्रथा के रूप में सदियों से शोषित जातियों की महिलाओं के साथ मनुवादियों द्वारा बलात्कार किया जा रहा है। यह प्रथा दिखाती है कि किस प्रकार मनुवादी वर्ग, शोषित जातियों यानि उत्पादक वर्ग को दास बनाकर रखने व उनका शोषण करने के लिए मनुवादी धर्म का उपयोग करता है। इस प्रथा को देवदासी, जोगिनी आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। देवदासी प्रथा में मनुवादी लोग धर्म का उपयोग करके शोषित जातियों विशेषकर अनुसूचित जातियों की अवयस्क लड़कियों को तथाकथित भगवान की सेवा करने के नाम पर मन्दिरों में स्थायी रूप से रख लेते हैं। परन्तु वास्तव में शोषित जातियों की इन 8 या 10 वर्षीय लड़कियों को मनुवादी वर्ग के पुरुषों की शारीरिक वासना की पूर्ति का साधन बनाया जाता है। इस प्रकार मनुवादी धर्म के नाम पर इन मासूम लड़कियों से बलात्कार किया जाता है। मनुवादी धर्म की आढ़ में मनुवादी लोग शोषित जातियों विशेषकर अनुसूचित जातियों की महिलाओं के विरुद्ध संगठित रूप से बलात्कार करते हैं, यही देवदासी प्रथा की वास्तविकता है।
आंकड़ों के अनुसार आन्ध्र प्रदेश में लगभग 17000 तथा कर्नाटक राज्य में लगभग 23000 देवदासियाँ है।1 एक अन्य अध्ययन के अनुसार देश में 250000 (दो लाख पचास हजार) देवदासियां है तथा इनमें से 99 प्रतिशत देवदासियाँ अनुसूचित जातियों से है। एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 93 प्रतिशत देवदासियां अनुसूचित जातियों से थीं और केवल 7 प्रतिशत देवदासियां अनुसूचित जनजातियों से थीं, परन्तु एक भी देवदासी तथाकथित उच्च जातियों से नहीं थी। यह तथ्य भी साफ-साफ दिखाते हैं कि देवदासी प्रथा अनुसूचित जातियों की महिलाओं के विरुद्ध मनुवादियों द्वारा किया गया संगठित बलात्कार है।
अज्ञानता के कारण अनुसूचित जातियां इसका विरोध नहीं कर पातीं और उनकी आँखों के सामने मनुवादियों द्वारा उनकी अवयस्क बहनों, बेटियों आदि को बलपूर्वक इस कीचड़ में धकेल दिया जाता है। यहाँ यह प्रश्न किया जा सकता है कि देवदासियां इसका विरोध क्यों नहीं करती? तो यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिये कि शोषण का विरोध करने के लिए यह भी आवश्यक है कि शोषण सहने वाले व्यक्ति को इसकी चेतना हो कि उसका शोषण हो रहा है। यदि यह चेतना नहीं होगी तो शोषित लोग कभी भी अपने शोषण का विरोध नहीं करेंगे। वे मानसिक दास बन जायेंगे। मनुवादियों द्वारा अनुसूचित जातियों को शिक्षा प्राप्त करने और सम्पति अर्जित करने के अधिकार से वंचित तो किया ही गया है इसके साथ ही साथ उनको मानवीय स्तर से भी नीचे गिराया गया। उनको मानसिक दास बना दिया गया जिससे उनकी शारीरिक दासता स्थायी हो जाए। इसके साथ ही मनुवादियों ने देवदासी प्रथा को मनुवादी धर्म के आवरण में लपेट कर प्रस्तुत किया। देवदासी बनने वाली स्त्रियों और उनके परिजनों को मनुवादियों द्वारा परलोक में अलौकिक सुख प्राप्त होने के स्वप्न दिखाये जाते हैं और देवदासी बनने को अत्यंत पवित्र कार्य बताया जाता है। अब सरलता से समझा जा सकता है कि सदियों से मानसिक और शारीरिक दासता में जकड़े हुए अज्ञानी, अशिक्षित और अंधविश्वासों में जकड़े अनुसूचित जातियों के लोग यदि देवदासी बनने पर मनुवादियों द्वारा किये जा रहे अपने शोषण को समझने में असमर्थ रहते है तो इससे यह नहीं कहा जा सकता कि उनका शोषण हो ही नहीं रहा है।
यह भी ध्यान देने की बात है कि समाज सुधार का दावा करने वाले तथाकथित समाज सुधारक, विकास का दावा करने वाले विभिन्न राजनीतिक दल और सर्वहारा क्रान्ति का दावा करने वाले तथा देश भर में कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए तथाकथित साम्यवादी दल और मीडिया सैकड़ों वर्षों से चली आ रही बलात्कार की मनुवादी प्रथा अर्थात देवदासी प्रथा के उन्मूलन हेतु एक शब्द भी मुंह से नहीं निकालते। क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दल जैसे भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय कांग्रेस, तथाकथित समाजवादी पार्टी और तथाकथित साम्यवादी पार्टियां आदि मनुवादी राजनीतिक संगठन ही हैं। जो शोषित वर्ग को धोखा देने के लिए विभिन्न मुखौटे लगाए हुए हैं। इसी प्रकार क्योंकि देवदासी प्रथा केवल शोषित जातियों की महिलाओं के शोषण का साधन है, इसलिये शासन, पुलिस, प्रशासन, मीडिया व तथाकथित न्यायपालिका जो कि मनुवादियों के ही नियन्त्रण में है, इसे रोकने हेतु कोई कार्यवाही नहीं करते। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय महिला आयोगों और देश भर में फैले सैकड़ों महिला गैर-सरकारी संगठनों की भी यही स्थिति है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुवादी संगठनों और मनुवादी सरकारों को देवदासी प्रथा के कारण शोषित हो रही शोषित जातियों की लाखों महिलाओं की कोई चिंता ही नहीं है। हजारों वर्षों से मनुवादियों द्वारा किये जा रहे शोषण के कारण शोषित जातियां शक्तिहीन हो गयी हैं। शिक्षा और सही नेतृत्व के अभाव में शोषित जातियां संगठित होकर शक्तिशाली नहीं बन पा रही हैं जिससे वे अपने शोषण का उन्मूलन करने हेतु प्रभावी संघर्ष करने में असमर्थ हैं।
इसलिए शोषित जातियां स्वयं अपना नेतृत्व करते हुए संगठित होकर संघर्ष करके ही अपने शोषण का उन्मूलन कर सकेंगी और तभी बलात्कार की मनुवादी प्रथा अर्थात देवदासी प्रथा का भी उन्मूलन सम्भव हो पायेगा। इस संघर्ष में 'अम्बेडकरवाद' ही शोषितों का मार्गदर्शन कर सकता है।
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सन्दर्भ और टिप्पणियां
1. Anti Slavery
International 2007, Maggie Black, ‘Women in
Ritual Slavery: Devdasi, Jogini and Mathamma in Karnataka and Andhra Pradesh,
Southern Indian’.
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